UP Lok Sabha Chunav 2024: मुलायम के गढ़ में बीजेपी क्या लगा पाएगी हैट्रिक, इटावा में अखिलेश के PDA की अग्निपरीक्षा
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UP Lok Sabha Chunav 2024: मुलायम के गढ़ में बीजेपी क्या लगा पाएगी हैट्रिक, इटावा में अखिलेश के PDA की अग्निपरीक्षा

UP Lok Sabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां बढ़ी हुई हैं. यूपी की इटावा लोकसभा सीट को लेकर भी राजनीतिक दल तैयारियों में जुटे हैं. इसकी गिनती सपा के प्रभाव वाली सीट में होती है. आइए जानते हैं इस सीट के सियासी समीकरण क्या हैं. 

 

UP Lok Sabha Chunav 2024: मुलायम के गढ़ में बीजेपी क्या लगा पाएगी हैट्रिक, इटावा में अखिलेश के PDA की अग्निपरीक्षा

Etawah Lok Sabha Chunav 2024: सत्ता पर काबिज बीजेपी हो या विपक्षी दल, सभी ने आगामी लोकसभा चुनाव में ताकत झोंकना शुरू कर दिया है. यूपी में भी सियासी माहौल गरमाया हुया है. सपा नेता मुलायम सिंह यादव की कर्मस्थली के तौर पर जानी जाने वाली इटावा लोकसभा सीट पर परचम लहराने को लेकर भी नेता एक्टिव मोड में हैं. सपा के प्रभाव वाली इस सीट पर 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बाजी मारी थी. बसपा संस्थापक कांशीराम समेत कई बड़े नेताओं को इटावा ने संसद का रास्ता दिखाया है. आइए जानते हैं इस सीट के सियासी समीकरण क्या हैं. 

2024 लोकसभा चुनाव में कौन प्रत्याशी 
सपा-कांग्रेस गठबंधन - जितेंद्र दोहरे
बीजेपी - रामशंकर कठेरिया
बसपा -  सारिका सिंह 

कौन-कौन बना सांसद
1957 में इस सीट से सोशलिस्ट पार्टी के अर्जुन सिंह भदौरिया चुनाव जीते. इके बाद 1962 में कांग्रेस के टिकट पर गोपीनाथ दीक्षित सांसद बने. 1967 में  संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़े अर्जुन सिंह भदौरिया एक बार फिर चुनाव जीते.  इसके बाद 1971 में कांग्रेस से श्रीशंकर तिवारी एमपी बने. 1977 में अर्जुन सिंह भदौरिया ने जनता पार्टी से चुनाव लड़कर जीत की हैट्रिक लगाई. 1980 में  जनता पार्टी से राम सिंह शाक्य सांसद बने. 1984 में कांग्रेस के रघुराज सिंह ने जीत का परचम लहराया. 1989 में यहां से जनता पार्टी के राम सिंह शाक्य चुनाव जीते. 

1991 में कांशीराम इटावा से जीते चुनाव
साल 1991 में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम कई जगह से चुनाव लड़े थे लेकिन उनको इटावा की जनता ने ही चुनाव जिताकर संसद पहुंचा. 1996 में यह सीट पहली बार समाजवादी पार्टी के खाते में गई. जब राम सिंह शाक्य साइकिल के सिंबल पर चुनाव जीते. इसके बाद 1998 में बीजेपी की सुखदा मिश्रा सांसद बनीं. इसके बाद 1999 से 2014 तक सीट सपा के कब्जे में रही. 1999 और 2004 में लगातार दो बार रघुराज सिंह चुनाव जीते. इसके बाद 2009 में सपा के प्रेमदास कठेरिया सांसद बने. 

2014 में बीजेपी की वापसी
मोदी लहर में साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी की इस सीट पर करीब 16 सालों का वनवास खत्म हुआ. यहां से भाजपा के टिकट पर अशोक दोहरे सांसद बने. वहीं, 2019 में भाजपा ने अशोक दोहरे की जगह डॉ. रामशंकर कठेरिया को चुनावी मैदान में उतारा और उन्होंने जीत दर्ज की. अब देखना होगा 2024 में इस सीट पर बीजपी हैट्रिक लगाने में कामयाब होती है या सपा वापसी करती है. 

क्या हैं जातिगत समीकरण
इटावा में अनुमानित जातिगत आंकड़ों की बात करें तो यहां दलित वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है.  ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है. इसके अलावा यादव, लोधी और शाक्य वोटर भी चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं. 

यहां दलित वोटर करीब 4.50 लाख, ब्राह्म्ण वोटर 2 लाख 50 हजार, यादव मतदात 2 लाख 25 हजार, लोधी 1 लाख 20 हजार, शाक्य 1 लाख 25 हजार, पाल बघेल 1 लाख 10 हजार, अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या करीब 1 लाख 25 हजार है. 

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इटावा की मुख्य बातें
इटावा लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें से 3 पर भाजपा जबकि दो पर सपा का कब्जा है. बता दें कि इटावा लोकसभा सीट में आने वाले जसवंतनगर सीट से मुलायम सिंह यादव 7 बार जबकि शिवपाल यादव चार बार विधानसभा पहुंचे. शहर में कपास और रेशम बुनाई के उद्योग और तिलहन मिलें हैं. यहां पर शेरों के संरक्षण के लिए इटावा सफारी अभ्‍यारण्‍य है. जिला कृषि आधारित है. 

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