UP Alliance: यूपी में क्यों नहीं चली दो लड़कों की दोस्ती, सपा, रालोद और कांग्रेस की दोस्ती टूटने की पूरी कहानी
Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले भाजपा और रालोद के गठबंधन की खबरों से सबसे बड़ा झटका सपा को लगने वाला है. यहां आगे जानें आखिर क्यों यूपी में कांग्रेस, सपा और रालोद की दोस्ती नहीं चल पाई. विपक्षी गठबंधन के पिछले 10 सालों के गठबंधन की पूरी कहनी....
Loksabha Chunav 2024: लोकसभा चुनाव जैसे- जैसे पास आ रही है इसके लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं. यूपी में भाजपा और रालोद की बढ़ती नजदीकियों का सबसे बड़ा झटका सपा को पश्निमी यूपी में लगेगा. सपा,रालोद के साथ मिलकर जाट, यादव व मुस्लिम मतों को अपने पाले में करना चाहती थी. बीजेपी और रालोद के गठबंधन की खबरों ने सपा और 'INDIA' गठबंधन के सपनों पर पानी फेर दिया है. इस बदलती राजनीतिक समीकरण से सपा की राह कठीन होने वाली है. सपा को दूसरा झटका तब लगा जब सुभासपा भी सपा का साथ छोड़ NDA में शामिल हो गई. सपा अब इन बदली परिस्थितियों में नए सिरे से यूपी के चुनाव की रणनीति पर काम कर रही है. आगे जानें क्यों यूपी में बीजेपी के सामने नहीं चल पा रहा विपक्ष का गठबंधन. जानें पिछले 10 साल में विपक्ष के गठबंधन का पूरा ब्योरा....
कांग्रेस और सपा का गठबंधन
2017 में विधानसभा चुनाव के लिए सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, लेकिन इस गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा था. इस विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों पार्टियों ने दावा किया कि अखिलेश यादव और राहुल गांधी अच्छे दोस्त बन गए हैं और यह गठबंधन लबे समय तक जारी रहेगा, लेकिन उसके बाद ऐसा नहीं देखा गया. 2019 लोकसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव ने मायावती की पार्टी बसपा के साथ गठबंधन कर लिया. इस चुनाव में सपा को तो भारी नुकसान झेलना पड़ा लेकिन बसपा को इस गठबंधन का बड़ा फायदा मिला. 2019 में मायावती को सपा-बसपा गठबंधन का पूरा फायदा मिला था, और BSP एक झटके में 10 लोक सभा सीटें जीतने में सफल रही, लेकिन समाजवादी पार्टी को बिलकुल भी फायदा नहीं मिला.
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कांग्रेस को बाय और रालोद से दोस्ती
सपा व रालोद की नजदीकियां वर्ष 2018 में कैराना लोकसभा सीट के उपचुनाव में बढ़ी थीं, इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन में रालोद भी शामिल हो गई थी. वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव भी सपा व रालोद ने मिलकर लड़ा था. जाट, यादव व मुस्लिम मतों की एकजुटता से रालोद को आठ सीटों पर सफलता मिली थी. सपा भी वहां पर मजबूत हुई थी. रालोद ने विधानसभा के उपचुनाव में भी एक सीट जीती थी. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद को सिर्फ एक सीट पर सफलता मिली थी. रालोद की बड़ी हार के बाद भी अखिलेश ने दोस्ती निभाते हुए जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजा था.
क्यों खत्म बुआ-भतीजे का गठबंधन
2019 लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को हराने के लिए यूपी में राजनीति के धूर विरोधी माने जाने वाले सपा औऱ बसपा में भी दोस्ती हो गई. इस लोकसभा में इस गठबंधन ने जीत के लिए सीट बंटवारे का यह फॉर्मूला अपनाया. यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से बीएसपी 38 पर, समाजवादी पार्टी 37 पर और अजित सिंह की पार्टी आरएलडी 3 सीटों पर लड़ेगी. कांग्रेस के लिए इतनी रियायत हुई है कि रायबरेली में सोनिया गांधी के खिलाफ और अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा जाएगा. कांग्रेस चाहे तो इसे गठबंधन में अपना हिस्सा मान सकती थी. 2019 में बने इस गठबंधन का सिर्फ बसपा को लाभ मिला. बसपा को इस चुनाव में 10 सीटों पर जीत मिली. लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम आने के महज एक महीने बाद मायावती ने सपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया. आज एक के बाद एक ट्वीट कर मायावती ने अखिलेश का जमकर घेराव करते हुए ऐलान किया कि बीएसपी हर छोटे-बड़े चुनाव अकेले लड़ेगी.
2024 आते-आते दोस्ती खत्म होने के कगार पर
सपा ने रालोद के साथ लोकसभा चुनाव में गठबंधन की घोषणा 19 जनवरी को करते हुए सात सीटें देने पर सहमति जताई थी. रालोद के साथ रहने से पश्चिम यूपी को लेकर अखिलेश निश्चिंत दिखाई दे रहे थे. अब जयंत के बदले रुख से करीब छह वर्ष पुरानी दोस्ती टूटने के कगार पर है. ऐसे में पश्चिमी यूपी के प्रमुख नेताओं को लेकर अखिलेश नए सिरे से रणनीति बनाने में जुट गए हैं. रालोद को दी जाने वाली सात सीटों में से अब ज्यादातर पर सपा खुद लड़ेगी. 'INDIA' गठबंधन में शामिल कांग्रेस को भी इसमें से एक-दो सीट मिल सकती है.