Nainital udhamsingh Nagar Lok Sabha Chunav 2024: उत्तराखंड की सबसे हॉट लोकसभा सीट नैनीताल उधम सिंह नगर सीट का राजनैतिक समीकरण और इतिहास बहुत ही रोचक है. क्या आप जानते हैं यह लोकसभा सीट देश को एक प्रधानमंत्री देते- देते रह गई थी. इस सीट की इस प्रकार की पूरी जानकारी के लिए आगे जरूर पढ़ें.....
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Nainital, Udhamsingh Nagar: उत्तराखंड में सबसे विविधताओं वाली सीट है नैनीताल- उधमसिंह नगर लोकसभा सीट. यहां पहाड़ औऱ भाबर का वोटर मिलकर उम्मीदवार तय करता है. इस सीट का अधिकांश क्षेत्र मैदानी होने की वजह से तराई का वोटर ही अंतिम लड़ाई में निर्णायक साबित होता है. दो जिलों और 15 विधानसभाओं के मिलाकर इस लोकसभा सीट को बनाया गया है. इस सीट पर 20 लाख से अधिक वोटर हैं इसलिए यह सीट उत्तराखंड की सबसे बड़ी सीट में से है.
नैनीताल उधमसिंह नगर लोकसभा सीट
तालों की नगर कही जाने वाली सरोवरी नगरी नैनीताल के दूरस्थ क्षेत्र ओखलकांडा से लेकर एक तरफ नेपाल सीमा से सटा इलाका खटीमा और दूसरी ओर उत्तर प्रदेश से सटा काशीपुर का क्षेत्र इस सीट के पहाड़ और भाबर वाले मिलेजुले समीकरण को बयां करता है. उत्तर प्रदेश के अलग होने के बाद तेजी से हुए औद्योगिक विस्तार ने ऊधमसिंह नगर जिले की पहचान ही बदल दी है. सिडकुल रुद्रपुर, सितारगंज व पंतनगर में स्थापित 900 से अधिक इकाइयां जिले के औद्योगिक विकास को बताती हैं कि यहां हजारों लोगों को रोजगार मिला है. नैनीताल जिले की दो विधानसभा सीट नैनीताल और भीमताल पूर्णतया पहाड़ी क्षेत्र की हैं तो हल्द्वानी, रामनगर, लालकुआं एवं कालाढूंगी मैदान यानी भाबर का इलाका है. वहीं ऊधमसिंह नगर जिले की सभी नौ सीटें तराई बेल्ट में गिनी जाती हैं. 25 लाख की आबादी वाली इस सीट का भूगोल 2017 की मतदाता गणना के लिहाज से देखें तो नैनीताल जिले में 7 लाख 12 हजार मतदाता हैं तो ऊधमसिंह नगर जिले में 10 लाख 20 हजार. ऐसे में अधिक विधानसभा क्षेत्र व अधिक वोटर संख्या के लिहाज से भी इस सीट में तराई का दबदबा नजर आता रहा है.
2 जनपद और 14 विधानसभाएं
नैनीताल-ऊधमसिंह नगर लोकसभा सीट में दो जिलों की कुल 14 विधानसभा सीटें शामिल हैं. इनमें नैनीताल जिले की पांच सीटें- भीमताल, हल्द्वानी, कालाढुंगी, लालकुआं, नैनीताल विधानसभा और ऊधम सिंह नगर जिले की नौ विधानसभा सीटें- बाजपुर, गदरपुर, जसपुर, काशीपुर, खटीमा, किच्छा, नानकमत्ता, रुद्रपुर और सितारगंज शामिल हैं. वर्तमान में नैनीताल लोकसभा की 14 विधान सभा सीटों में से 11 सीटों पर भाजपा का कब्जा है. नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा सीट उत्तराखण्ड के 543 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है. इस सीट पर 8,62,426 पुरुष वोटर हैं. महिला मतदाताओं की संख्या 9,65,981 हैं. थर्ड जेंडर के मतदाता 26 हैं.2019 में कुल वोटरों की संख्या 12,58,570 थी. जिनमें से कुल पुरुष मतदाता 6,47,658 और महिला मतदाता 6,01,589 थीं. 2019 में कुल मतदान प्रतिशत 68.83% था. इस चुनाव में अजय भट्ट को वोटों 7,72,195 से जीत हासिल हुई थी.
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कब कौन जीता-
1951 सीडी पांडे कांग्रेस
1957 सीडी पांडे कांग्रेस
1962 केसी पंत कांग्रेस
1967 केसी पंत कांग्रेस
1971 केसी पत कांग्रेस
1977 भारत भूषण जनता पार्टी
1980 एनडी तिवारी कांग्रेस
1984 सत्येंद्र गुडिया कांग्रेस
1989 डॉ महेंद्र पाल जनता दल
1991 बलराज पासी भाजपा
1996 एनडी तिवारी कांग्रेस
1998 इला पंत भाजपा
1999 एनडी तिवारी कांग्रेस
2002 डॉ. महेंद्र पाल कांग्रेस
2004 केसी सिंह बाबा कांग्रेस
2009 केसी सिंह बाबा कांग्रेस
2014 भगत सिंह कोश्यारी भाजपा
2019 अजय भट्ट भाजापा
2024 में भाजपा ने एक बार फिर अपने मौजूदा सांसद अजय भट्ट पर भरोसा किया है और उनको टिकट दिया है. भाजपा ने एक बार फिर अजय भट्ट पर दांव खेला है.
2024 लोकसभा चुनाव के समीकरण
इस सीट पर अब तक हुए लोकसभा चुनाव में से कांग्रेस ने 10, भाजपा ने 4 बार और 1 बार जनता दल ने इस सीट पर जीत हासिल की है. बात पिछले चुनाव 2019 लोकसभा की करें तो कांग्रेस ने इस सीट पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को मैदान में उतारा. हरीश रावत को भाजपा के अजय भट्ट ने 3.39 लाख वोटों से हार का स्वाद चखाया था. 2024 में बीजेपी ने अजय भट्ट को टिकट दिया तो कांग्रेस के खेमें में खलबली मच गई है. सूत्रों के हवाले से खबर है कि मौजूदा हालातों के देखते हुए कांग्रेस इस बार अजय भट्ट के सामने किसी नए चेहरे को सामने ला सकती है. खबर है कि कांग्रेस की ओर से आलाकमान को जो नाम भेजे थे उनमें पूर्व सांसद महेंद्र पाल को छोड़कर सभी नाम नए हैं. पूर्व सीएम हरीश रावत हरिद्वार की सीट पर मेहनत कर रहे हैं. उम्मीद है कि इस बार हरीश रावत हरिद्वार से चुनाव लड़ेंगे. सूत्रों के हवाले से खबर है कि इस बार उधम सिंह नगर सीट से पूर्व सांसद महेंद्र पाल, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल, कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता दीपक बल्यूटिया, प्रदेश महामंत्री गणेश उपाध्याय के नामों पर चर्चा हो रहा है.इसके अलावा खटीमा से विधायक भुवन कापड़ी और पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत के नामों पर भी चर्चा हो रही है.
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क्या मुस्लिम समाज करेगा गेम चेंज
नैनीताल-ऊधमसिंह नगर लोकसभा क्षेत्र राज्य के दो अहम जिलों में है. इसमें दो विधानसभा क्षेत्रों का हिस्सा पर्वतीय क्षेत्र का है और बाकी हिस्सा मैदानी. पलायन के बाद कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों के लोग इन्हीं दो जिलों के मैदानी शहरों में बसे हैं. 19 लाख वोटरों में इनकी संख्या लगभग पांच लाख है. जातीय आधार पर देखें तो लोकसभा क्षेत्र की आबादी 25 लाख है. इसमें 15 फीसद मुस्लिम हैं. 17-18 फीसद ओबीसी और 15 से 18 फीसद ब्राह्मण और क्षत्रिय हैं. इसके अलावा अन्य जातियों के लोग हैं. खास बात यह है कि हल्द्वानी एवं रुद्रपुर दो ऐसे बड़े शहर हैं जो पलायन का प्रमुख अड़़डा भी माने जाते हैं. पर्वतीय जिलों से मैदान में आकर बसने वालों की प्राथमिकता यही दो शहर हैं. ऐसे में नैनीताल व ऊधमसिंह नगर दोनों जिलों में जातिगत व क्षेत्र के आधार पर वोटर भी मिश्रित है. पहाड़ और मैदान का विषय भले ही खुले रूप में यहां सामने न आता हो, लेकिन राजनीति के लिहाज से चुनाव के वक्त यह फैक्टर अंदरूनी तौर से अधिक मुखर होने लगता है. वोटरों की संख्या के लिहाज से मुस्लिम मत भी यहां निर्णायक रहते हैं. बावजूद इसके ब्राहमण एवं क्षत्रिय वर्ग प्रतिनिधित्व के लिहाज से इस सीट पर काबिज रहा है.
कैस प्रधानमंत्री देते- देते रह गई यह सीट
यह सीट पहली बार तब चर्चा में आई थी, जब 1991 में भाजपा के बलराज पासी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी को हराया था. तब चर्चा थी कि तिवारी प्रधानमंत्री बन सकते हैं. वर्ष 1952 से 2008 तक नैनीताल लोकसभा क्षेत्र था. वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद इसे नैनीताल-ऊधमसिंह नगर के नाम से जाना गया. इससे पूर्व के इतिहास को देखें तो आजादी के बाद से ही यह सीट कुछ खास रही है. यहां दिग्गज भी चुनाव हारे हैं तो नए चेहरों को भी जनता ने मौका दिया है. भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की यह कर्मस्थली रही है. यही वजह भी रही कि आजादी के बाद तीन दशक तक सीट उनके परिवार में ही रही. वर्ष 1951 व 1957 में लगातार दो बाद उनके दामाद सीडी पंत नैनीताल सीट से सांसद रहे. 1962, 67 व 71 में पंत के पुत्र केसी पंत ने यहां से हैट्रिक बनाते हुए कांग्रेस को मजबूत किया. 1977 में भारतीय लोक दल के भारत भूषण ने पंत परिवार के विजय रथ को रोका. इसके बाद 1980 में एनडी तिवारी ने भारत भूषण को हराया. 1984 में तिवारी अपने करीब सत्येंद्र चंद्र गुडि़या को यहां से जिता ले गए. 1989 में जनता दल के डॉ महेंद्र पाल जीते. बड़ा बदलाव दिखा 1991 में, जब राम लहर चल रही थी और भाजपा के बलराज पासी ने दिग्गज नेता एनडी तिवारी को हरा दिया. फिर 1998 में भाजपा की इला पंत ने एनडी तिवारी को शिकस्त दे अपनी पारिवारिक सीट को बचा लिया. 2002 में डॉ महेंद्र पाल ने कांग्रेस से इस सीट पर जीत दर्ज की.