Kannauj Lok Sabha Seat: वो 5 बड़ी वजहें, जिसने अखिलेश को 15 साल बाद कन्नौज से लड़ने को किया मजबूर
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Kannauj Lok Sabha Seat: वो 5 बड़ी वजहें, जिसने अखिलेश को 15 साल बाद कन्नौज से लड़ने को किया मजबूर

Lok saha Election 2024: ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि उम्मीदवारी बदलकर कन्नौज सीट की कमान अपने हाथों में लेने को अखिलेश यादव मजबूर हो गए. जिसके कई कारण स्पष्ट दिखाई देते हैं. आइए कुछ कारणों पर गौर करते हैं.

Akhilesh Yadav

Lok saha Election 2024: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आखिरकार उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट से अपना नामांकन भर ही दिया. उनकी यहां से उम्मीदवारी घोषित होने और इस सीट से नामांकन करने के फैसले को लेकर कई सवाल भी उठते हैं. एक सवाल तो यही है कि अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ने के लिए आखिर कन्नौज को ही क्यों चुना? ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि अपने खुद के भतीजे तेज प्रताप यादव की उम्मीदवारी बदलकर इस सीट की कमान अपने हाथों में लेने को अखिलेश यादव मजबूर हो गए. इसके कई कारण स्पष्ट दिखाई देते हैं. आइए कुछ कारणों पर विस्तार से प्रकाश डालें. 

समाजवादी पार्टी के लिए बहुत विशेष
कन्नौज लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी के लिए बहुत विशेष है. दरअसल, यह सीट कभी समाजवादी पार्टी के सिद्धांत पुरुष रहे राममनोहर लोहिया की कर्मभूमि रही है. यहां से खुद को उम्मीदवार बनाकर शायद अखिलेश इस सवाल को ही खत्म कर देना चाहते थे कि सपा अध्यक्ष खुद ही लोकसभा चुनाव की लड़ाई से क्यों दूर हैं? दूसरी बात ये है कि कहीं समाजवादी पार्टी की परंपरागत पारिवारिक सीट पर कोई कमी बेसी न रह जाए या फिर किसी तरह का कोई संशय न रह जाए इस सोच के साथ ही अध्यक्ष साहब ने खुद ही सीट की कमान अपने हाथ में ले लिया.

कन्नौज सपा की परंपरागत सीट
यहां समझना होगा कि कैसे कन्नौज समाजवादी पार्टी की पारंपरिक सीट है. दशकों से समाजवादी पार्टी की सीट के तौर पर कन्नौज लोकसभा सीट की पहचान होती रही है. साल 1967 में राम मनोहर लोहिया ने यहां से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव में जीत हासिल की थी. फिर दो दफा जनता पार्टी ने सीट अपने नाम किया और आगे चलकर वर्ष 1998 से तत्कालीन सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने जीत दर्ज की. यहां से कन्नौज सपा की परंपरागत सीट के तौर पर जानी जाने लगी. 

माहौल बनाने में खासा परेशानी 
यहां से साल 2000 में अखिलेश यादव की जीत हुई और फिर समाजवादी पार्टी के खिलाफ करीब करीब हर पार्टी ने अपनी जमीन बनाने की कोशिश की पर कामयाबी नहीं मिली. हालांकि, लगभग 21 साल के दबदबे के बाद साल 2019 आया और सपा को झुकना ही पड़ा. सुब्रत पाठक ने बीजेपी की उम्मीदवारी में डिंपल यादव को हरा दिया. करीब एक फीसदी से भी कम वोटों से डिंपल यादव को हारना पड़ा. अब सपा के सामने कन्नौज को फिर से साधने की चुनौती है. जिसके लिए पार्टी की ओर से जी-जान लगाई जा रही है. ऐसे में अखिलेश यादव खुद कन्नौज की भूमि पर उम्मीदवारी के साथ मैदान में उतरे हैं. एक कारण पार्टी पर दबाव होना भी माना जा सकता है. दरअसल, अखिलेश यादव अगर चुनाव नहीं लड़ेंगे तो राजनीतिक माहौल बनाने में खासा परेशानी आ सकती है. इन सभी दबावों को मद्देनजर रखते हुए खुद अखिलेश ने ही आगे आकर मोर्चा संभाल लिया. 

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आसपास की सीटों पर रहेगा असर
एक कारण प्रभाव का भी है. दरअसल, सपा पार्टी मानती रही है कि अखिलेश यादव के कन्नौज से उतरने की वजह से आसपास की लोकसभा सीटों पर भी इसका विशेष असर पड़ेगा. दरअसल, कन्नौज की सीमावर्ती लोकसभा सीटें है- इटावा, अकबरपुर, हरदोई, मिश्रिख, मैनपुरी और फरुर्खाबाद. इन लोकसभा सीटों पर अखिलेश की उम्मीदवारी का अच्छा माहौल बन सकता है. 

यादव परिवार के उम्मीदवार 
फिरोजाबाद से अक्षय यादव उम्मीदवार हैं.
मैनपुरी डिंपल यादव उम्मीदवार हैं.
बदायूं आदित्य यादव उम्मीदवार हैं.
कन्नौज अखिलेश यादव उम्मीदवार हैं.
आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव उम्मीदवार हैं.

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