Tehri garhwa Lok Sabha Chunav 2024: क्या चौथी बार चलेगा बीजेपी की महारानी का जादू, जानें टिहरी लोकसभा सीट का पूरा इतिहास और समीकरण
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Tehri garhwa Lok Sabha Chunav 2024: क्या चौथी बार चलेगा बीजेपी की महारानी का जादू, जानें टिहरी लोकसभा सीट का पूरा इतिहास और समीकरण

Tehri garhwa Lok Sabha Chunav 2024: उत्तराखंड की इस लोकसभा सीट का संबंध यहां के राजाओं से है. आगे जानें इस सीट का पूरा इतिहास? क्यों आम चुनाव में भी राजा के सामने कोई प्रत्याशी नहीं लड़ता था चुनाव? टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट की संपूर्ण जानकारी के लिए आगे जरूर पढ़ें....

 

Tehri garhwa Lok Sabha Chunav 2024

Tehri Garhwal: उत्तराखंड की टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट को राजशाही सीट के नाम से भी जाना जाता है. टिहरी लोकसभा सीट उत्तराखंड के 3 जनपदों में फैली है. विधानसभा सीटों की बात की जाए तो 14 विधानसभा सीटों को मिलकर टिहरी लोकसभा सीट बनी है. इस सीट का धार्मिक और ऐतिहासिकता को लेकर विशेष महत्व है. इस लोकसभा क्षेत्र में लाखमंडल, गंगा का उद्गम स्थल गोमुख, गंगोत्री, यमुनोत्री धाम तथा दुनियां का आठवां सबसे बड़ा टिहरी बांध स्थित हैं.  स्वामी रामतीर्थ की तप स्थली और श्रीदेव सुमन की कर्मस्थली टिहरी ही रही है.  इस सीट की सीमा भारत-चीन सीमा से लगी है.

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टिहरी राज्य का भारत में विलय होने के बाद लोस चुनाव में इस सीट पर राजशाही का दबदबा रहा. 10 बार के आम चुनावों में राजशाही परिवार के सदस्य ही सांसद चुने गए. सन् 2011 की जनगणना के आधार पर इस सीट की जनसंख्या 1923454 थी. इस सीट पर साक्षरता दर 78.2 फीसद है. इस सीट पर हमेशा से ही स्थानीय मुद्दों में विस्थापन, ईकोसेंसिटिव जोन, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे मुद्दे शामिल रहे हैं. आजादी के बाद 1957 में यह संसदीय क्षेत्र पहली बार अस्तित्व में आया था. इस लोकसभा सीट को उत्तरकाशी, देहरादून और टिहरी गढ़वाल जिले के कुछ हिस्सों को शामिल कर बनाया गया. टिहरी और गढ़वाल दो अलग नामों को मिलाकर इस सीट का नाम रखा गया है. टिहरी में राजा सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी बनाई. fallback

टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट का इतिहास
टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट की राजनीति तौर पर हमेशा भाजपा और कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही घुमती रही है. इस सीट पर अब तक 18 बार (चुनाव और उपचुनाव)मतदान करवाया गया है. इसमें जनता ने 10 बार कांग्रेस को चुना, जबकि 7 बार भाजपा को मौका मिला. 1977 में इस सीट पर जनता पार्टी को जीत मिली थी. वर्तमान में बीजेपी का इस सीट पर कब्जा है. माला राज्य लक्ष्मी शाह मौजूदा सांसद है. 

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उत्तराखंड की पहली महिला सांसद
टिहरी गढ़वाल सीट से भाजपा की माला राज्य लक्ष्मी शाह मौजूदा समय में सांसद हैं. माला राज्यलक्ष्मी का जन्म नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुआ था. उत्तराखंड भाजपा की प्रमुख महिला नेताओं में शुमार राज्य लक्ष्मी शाह के नाम उत्तराखंड की पहली महिला लोकसभा सांसद होने का खिताब भी हैं.  वे टिहरी के पूर्व शाही परिवार के वंशज मानवेंद्र शाह की बहू हैं. मानवेंद्र शाह ने कांग्रेस और भाजपा के टिकटों पर इस सीट पर रिकॉर्ड आठ बार जीत हासिल की. 

जनगणना के अनुसार
2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की जनसंख्या 19 लाख 23 हजार 454 थी. यहां की आबादी का लगभग 62 फीसदी आबादी गांवों में रहती है, जबकि 38 फीसदी हिस्सा शहरों में निवास करती है. इलाके में अनुसूचित जाति का आंकड़ा 17.15 प्रतिशत है, जबकि अनुसूचित जनजाति का हिस्सा 5.8 प्रतिशत है. पिछले लोकसभा चुनाव में यहां कुल 7 लाख 12 हजार 39 पुरुष मतदाता थे, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 6 लाख 40 हजार 806 थी. कुल  13 लाख 52 हजार 845 मतदाता थे.  2017 में हुए विधानसभा चुनाव के मुताबिक इस सीट पर 14 लाख 51 हजार 457 मतदाता हैं. 

टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट का चुनावी सफर
टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट देश में पहली बार 1952 में अस्तित्व में आई. पहली बार हुए चुनाव में राज परिवार से राजमाता कमलेंदुमति शाह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा सिंह को हराया था. इसके बाद 1957 में पहली बार स्वतंत्र रूप से हुए चुनाव में यहां कांग्रेस के टिकट पर कमलेंदुमति शाह के बेटे मानवेंद्र शाह ने जीत दर्ज की. 1962 और 1967 में हुए लोकसभा चुनावों में मानवेंद्र शाह ने लगातार जीत हासिल की. 1971 में कांग्रेस ने नए उम्मीदवार पर दांव खेला और अपने टिकट पर परिपूर्णानंद पैन्यूली को यहां से उतारा.उन्होंने भी कांग्रेस को निराश नहीं किया और जीत दिला दी. इस चुनाव में मानवेंद्र शाह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ा था. 

1977 के बाद का इतिहास
1977 में पहली बार किसी नई पार्टी ने यहां जीत मिली. बीएलडी उम्मीदवार त्रेपन सिंह नेगी ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की. इसके बाद 1980 में त्रेपन सिंह नेगी ने कांग्रेस के टिकट से जीत दर्ज की. 1984 के चुनाव में त्रेपन सिंह कांग्रेस का साथ छोड़कर लोकदल में शामिल हो गए और कांग्रेस ने यहां से नए उम्मीदवार को टिकट दिया. कांग्रेस ने बृह्मदत्त को मैदान में उतारा. कांग्रेस के टिकट पर ब्रह्मदत्त ने त्रेपन को 14 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराकर यहां से बड़ी जीत पाई और सांसद चुने गए. इसके बाद 1989 में भी वह दोबारा जीतेfallback1991 के बाद का इतिहास
1991 में पहली बार बीजेपी ने इस सीट पर अपने पैस जमाए. बीजेपी में शामिल हो चुके मानबेंद्र शाह ने कांग्रेस प्रत्याशी बृह्मदत्त को भारी मतों से हराकर सबको चौंका दिया.   इसके बाद 1996, 1998, 1999 और 2004 में भी मानबेंद्र शाह ने बीजेपी के टिकट से लगातार जीत दर्ज की और कांग्रेस लगातार हारती चली गई. मानबेंद्र शाह के निधन के बाद 2007 में यहां उपचुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने बाजी मार ली.  कांग्रेस उम्मीदवार विजय बहुगुणा ने लंबे अर्से बाद कांग्रेस को यहां से जीत दिलाई.2009 के आम चुनाव में भी विजय बहुगुणा जीते. 2012 के उपचुनाव में बीजेपी ने फिर इस सीट पर कब्जा कर लिया और पार्टी के टिकट पर महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह यहां से चुनाव जीतीं. इसके बाद 2014 और 2019 में बीजेपी ने राज्यलक्ष्मी को ही इस सीट से उतारा, दोनों बार इस सीट पर उनकी जीत हुई. 

माला राज्यलक्ष्मी शाह फिर मैदान में
उत्तराखंड की टिहरी लोकसभा सीट पर बीजेपी ने एक बार फिर राजशाही परिवार से नाता रखने वाली माला राज्यलक्ष्मी को टिकट दिया है. कांग्रेस की बात करें तो पार्टी की ओर से टिकट को लेकर अभी कोई जानकारी नहीं दी गई. टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट राजपरिवार की परंपरागत सीट रही है. यानी, इसकी नुमाइंदगी राज परिवार ही करता आया है. टिहरी व उत्तरकाशी में राज परिवार के प्रति अनवरत आस्था रही है. वर्ष 2012 के उपचुनाव से इस सीट का प्रतिनिधित्व टिहरी राजपरिवार की माला राज्य लक्ष्मी शाह कर रही हैं. माला राज्यलक्ष्मी को स्वच्छ और बेदाग छवि का नेता माना जाता है. 

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