UP Politics: भले ही बसपा लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमट गई, लेकिन पार्टी उपचुनाव की तैयारियों को धार देने में जुट गई है. भले ही अभी यूपी विधानसभा उपचुनाव की तारीखों का ऐलान न हुआ हो, मगर सभी 10 सीटों पर बसपा की निगाह है. जिला और विधानसभा कमेटियों का गठन पूरा किया जा चुका है. अब सेक्टर और बूथ कमेटियों की समीक्षा की जा रही है. साथ ही प्रत्याशियों के पैनल भी लगभग तैयार हैं. इन तैयारियों की समीक्षा जल्द ही बसपा सुप्रीमो मायावती करेंगी.


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उपचुनाव में साख बचाने की तैयारी
2012 के बाद से बसपा का प्रदर्शन लगातार गिरता जा रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में उसे एक सीट मिली थी और वोट प्रतिशत महज 12.8 प्रतिशत रह गया था. इस लोकसभा चुनाव में वह एक भी सीट नहीं जीत सकी. वोट प्रतिशत गिरकर 9.39 प्रतिशत रह गया. इसके बावजूद चुनाव खत्म होते ही बसपा ने उपचुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया और तैयारियों में जुट गई. बसपा सुप्रीमो के निर्देश के बाद जोन प्रभारी से लेकर बूथ स्तर तक पदाधिकारी चुनाव की तैयारी में पूरी ताकत से जुटे हैं. यहां तक कि प्रत्याशियों के पैनल भी लगभग तैयार हैं.


बुआ और भतीजा करेंगे समीक्षा
इस वक्त बसपा सुप्रीमो मायावती और उनके उत्तराधिकारी व राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद दिल्ली में हैं और दूसरे प्रदेशों में संगठन की समीक्षा कर रहे हैं. उसके बाद मायावती जल्द ही लखनऊ लौटेंगी. यहां पर वह सभी तैयारियों की समीक्षा करेंगी. बसपा सुप्रीमो प्रत्याशियों के नामों पर अंतिम मुहर भी वही लगाएंगी. उपचुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद जातीय समीकरण को देखते हुए प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया जाएगा. जानकारी के मुताबिक, मायावती के साथ आकाश आनंद भी इन समीक्षा बैठकों में शामिल होंगे. 


पहली बार पूरे दमखम से उपचुनाव लड़ेगी बसपा
लोकसभा चुनाव 2024 के साथ हुए विधानसभा उपचुनाव में यूपी की 4 सीटों पर पार्टी ने अपने प्रत्याशी उतारे थे और इसी तरह से कुछ सालों में एक आधी सीटों पर हुए बाई इलेक्शन की बात छोड़ दी जाए तो बसपा पहली बार पूरे दमखम के साथ उपचुनाव लड़ने जा रही है. यानी अपने 40 साल के इतिहास में पहली बार बसपा फुल फ्लेज उपचुनाव में अपने प्रत्याशी उतारेगी. दरअसल, लोकसभा चुनाव में यूपी समेत कई राज्यों में विधायक जीतकर सांसद बने हैं. ऐसे में अब उनकी विधानसभा सीट खाली हैं. जिनपर उपचुनाव होना है. हालांकि, चुनाव आयोग ने अभी इसकी तारीख की घोषणा नहीं की है लेकिन, राजनीतिक दलों ने अभी से अपनी कमर कस ली है.


क्यों जरूरी हैं उपचुनाव?
जैसा लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन रहा उसके बाद तो हर चुनाव पार्टी के लिए साख का सवाल है. पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत भी तेजी से कम हुआ. एक के बाद एक हार और लगातार गिरते वोट प्रतिशत से बसपा का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी दांव पर है. अभी चार राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी होने से उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचा हुआ है. अगर अभी समीक्षा हो जाए तो उससे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन जाएगा. ऐसे में उसके लिए अपना प्रदर्शन सुधारना बेहद जरूरी है. 


अपने कैडर वोट को बचाने की चुनौती
पार्टी की साख के साथ ही बसपा के सामने अपने कैडर वोट को बचाने की भी बड़ी चुनौती है. पहले बीजेपी ने दलित वोट बैंक में सेंध लगाई फिर INDIA ने भी नहीं छोड़ा. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में आजाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर भी जीत चुके हैं, जबकि बसपा एक भी सीट नहीं जीती. ऐसे में बसपा के परम्परागत दलित वोटर्स पर सभी की निगाह टिकी हुई है. यही वजह है कि पार्टी को लगता है कि उपचुनाव नहीं लड़ा तो बचा हुआ दलित वोट बैंक भी चला जाएगा.


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