विकास दुबे और उसके साथियों के एनकाउंटर मामले में UP पुलिस और STF टीम को मिली क्लीन चिट
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand970135

विकास दुबे और उसके साथियों के एनकाउंटर मामले में UP पुलिस और STF टीम को मिली क्लीन चिट

 सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग की रिपोर्ट गुरुवार को विधानसभा के पटल पर रखी गई. 

फाइल फोटो.

लखनऊ: बिकरू कांड के बाद विकास दुबे और उसके पांच साथियों को मुठभेड़ में मार गिराने के मामले में यूपी पुलिस और एसटीएफ की टीमों को क्लीन चिट मिल गई है. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग की रिपोर्ट गुरुवार को विधानसभा के पटल पर रखी गई. 

सवालों से घिरी यूपी पुलिस को मिली बड़ी राहत 
रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सवालों में घिरी यूपी पुलिस को बड़ी राहत मिली है. दरअसल विकास दुबे की गाड़ी पलटने और और प्रभात मिश्रा उर्फ कार्तिकेय की मुठभेड़ को लेकर पुलिस व एसटीएफ पर कई गंभीर आरोप लगे थे. 

सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की हुई थी हत्या 
दो जुलाई 2020 की रात कानपुर के बिकरू गांव में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी. इस जघन्य कांड के बाद पुलिस ने तीन जुलाई से 10 जुलाई 2020 के बीच कुख्यात विकास दुबे, उसके गैंग के प्रेम प्रकाश पांडेय, अतुल दुबे, अमर दुबे, प्रवीण दुबे उर्फ बउवा व प्रभात उर्फ कार्तिकेय को मुठभेड़ में मार गिराया था.

आयोग ने 8 बिंदुओं पर की जांच, पुलिस के दावों के खिलाफ एक भी गवाह सामने नहीं आया
तीन सदस्यीय आयोग ने 10 जुलाई 2020 को कानपुर में मुख्य आरोपी विकास दुबे के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की घटना समेत कुल आठ बिंदुओं पर जांच की. न्यायिक आयोग में हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति शशिकांत अग्रवाल व सेवानिवृत्त डीजीपी केएल गुप्ता बतौर सदस्य शामिल थे. आयोग की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि विकास दुबे व उसके साथियों के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की घटनाओं में पुलिस के दावों के खिलाफ एक भी गवाह सामने नहीं आया.

आयोग ने अप्रैल 2021 में सौंपी थी जांच रिपोर्ट
विकास दुबे की पत्नी रिचा दुबे ने सुप्रीम कोर्ट में पति को फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने की याचिका तो दाखिल की थी, लेकिन वह आयोग के सामने नहीं आईं.  मुठभेड़ में घायल हुए पुलिसकर्मियों की मेडिकल रिपोर्ट उनके बयानों के मुताबिक मिली है. आयोग ने यह भी कहा है कि पुलिस मुठभेड़ की घटनाओं की मजिस्ट्रियल जांच में भी यही सामने आया. आयोग ने अप्रैल 2021 में अपनी जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी थी. जिसे गुरुवार को पटल पर रखा गया. 

पुलिस, प्रशासन और राजस्व के अधिकारियों के बीच की मिलीभगत का जिक्र
आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में कुख्यात विकास दुबे, पुलिस, प्रशासन और राजस्व के अधिकारियों के बीच की मिलीभगत का जिक्र किया है. आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक विकास दुबे व उसके गैंग को स्थानीय पुलिस से लेकर राजस्व व प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण था. जो भी विकास के खिलाफ शिकायत या मुकदमा दर्ज करवाता था तो पुलिस शिकायतकर्ता को ही प्रताड़ित करती थी. अगर वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर मुकदमा दर्ज होता था तो स्थानीय पुलिस उस मामले को अपने स्तर से खत्म कर देती थी.विकास का नाम सर्किल के टॉप 10 अपराधियों में था लेकिन जिला की टॉप 10 सूची में नहीं था। इससे पता चलता है कि उसका जिले में खासा रसूख था। 

'पद चाहिए तो विकास दुबे से मिलना पड़ता'
रिपोर्ट के मुताबिक विकास के गैंग के लोग इलाके की शांति समिति में शामिल थे और सांप्रदायिक मामलों का निपटारा करवाते थे. विकास की पत्नी जिला पंचायत सदस्य व भाई की पत्नी प्रधान चुनी गई थीं, लेकिन दोनों लखनऊ में रहती थीं. अगर किसी व्यक्ति को किसी मामले में मदद चाहिए होती थी तो उसे विकास दुबे से ही मिलना पड़ता था.

आयोग ने रिपोर्ट में राज्य की मशीनरी पर भी उठाए सवाल
स्थानीय पुलिस विकास के खिलाफ दर्ज हुए मुकदमों को विवेचना स्तर से ही निपटा देती थी. संगीन धाराओं को निकाल दिया जाता था. ज्यादातर मामलों में कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल नहीं होता था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राज्य की मशीनरी पर भी सवाल उठाए हैं. रिपोर्ट में कहा है कि विकास दुबे के खिलाफ 64 मुकदमे होने के बावजूद उसके मामलों में सजा दिलाने के लिए कभी विशेष अभियोजन अधिकारी नियुक्त कराने को कोई प्रयास नहीं हुआ.

राज्य की तरफ से कभी भी उसकी जमानत खारिज करने के लिए कोई प्रार्थना पत्र कोर्ट में दाखिल नहीं किया गया. न ही कभी कोर्ट ने उसके खिलाफ ऊपर की अदालत में गई. 

WATCH LIVE TV

Trending news