कौन है परवेज मुशर्रफ की संपत्ति का नया मालिक?, बागपत में पुश्तैनी हवेली और दो हेक्टेयर जमीन नीलाम
Baghpat News: पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की संपत्ति की नीलामी प्रक्रिया पूरी हो गई है. मुशर्रफ का पुश्तैनी मकान और जमीन बिक जाने के बाद अब उनका बागपत से नाम खत्म हो गया.
कुलदीप चौहान/Baghpat News: पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति व सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ के परिवार की 13 बीघे जमीन यूपी के बागपत में थी. भारत सरकार ने 13 बीघे जमीन को शत्रु संपत्ति घोषित कर नीलामी की प्रक्रिया पूरी कर ली गई. परवेज मुशर्रफ के परिवार की 13 बीघे जमीन करीब एक करोड़ 38 लाख रुपये में नीलाम कर दी गई. जल्द ही परवेज मुशर्रफ की यह जमीन नए मालिक को ट्रांसफर कर दी जाएगी. तो आइये जानते हैं परवेज मुशर्रफ की इस जमीन का अब नया मालिक कौन हो गया?.
पुश्तैनी हवेली और दो हेक्टेयर जमीन नीलाम
दरअसल, देश बंटवारे के समय बहुत से लोग पाकिस्तान चले गए. ऐसे में उनकी संपत्तियां यहीं रह गई. भारत सरकार इन संपत्तियों को सत्रु संपत्ति घोषित कर दिया है. बंटवारे से पहले परवेज मुशर्रफ का परिवार बागपत के कोताना गांव में रहता था. मुशर्रफ के परिवार की 13 बीघे जमीन भी थी. यह संपत्ति गृह मंत्रालय के अधीन हैं. इसलिए गुरुवार को गृह मंत्रालय की देखरेख में नीलामी कराई गई. परवेज मुशर्रफ की पुश्तैनी हवेली और कुछ जमीन को करीब एक करोड़ 38 लाख रुपये में नीलाम कर दिया गया. तीन लोगों ने मिलकर इस संपत्ति को खरीद लिया है.
दिल्ली में रहता था परिवार
परवेज मुशर्रफ के माता-पिता बागपत के कोताना गांव में ही रहते थे. बाद में वह दिल्ली चले गए थे. कोताना गांव के लोगों का कहना है कि परवेज मुशर्रफ के पिता यहां से दिल्ली जाने के बाद भी गांव आते रहते थे. उनका पूरा परिवार पाकिस्तान चला जाने के बाद यहां संपत्तियों की देखरेख करने वाला कोई नहीं था. गांव वालों ने बताया कि मुशर्रफ के परिवार के नूरू मियां पाकिस्तान जाने से मना कर दिया था. वह यहीं बस गए थे. अब संपत्तियों की नीलामी के बाद मुशर्रफ परिवार के नूरू मियां का भी नाम बागपत से खत्म हो गया.
परवेज मुशर्रफ कभी नहीं आए बागपत
गांव वालों का कहना है कि मुशर्रफ की हवेली के अलावा यहां करीब दो हेक्टेयर जमीन थी. परवेश मुशर्रफ का जन्म दिल्ली में हुआ था. वह बागपत के कोताना गांव कभी नहीं गए थे. हालांकि, उनके माता-पिता यहीं रहते थे. 1947 में विभाजन के बाद परिवार पाकिस्तान चले जाने के बाद 1965 में नूरू मियां कोताना गांव आए थे. हालांकि बाद में वह भी पाकिस्तान चले गए थे.
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