पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मेरठ भले ही उन शहरों की लिस्ट में नहीं है जो अपने पर्यटन स्थलों के लिए मशहूर हैं लेकिन रामायण और महाभारत काल से जुड़ी इसकी प्राचीन संस्कृति और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस शहर की भूमिका इसके बारे में ना केवल जानने की ललक जगाती है बल्कि इस क्षेत्र क
राजधानी दिल्ली से केवल 70 किलोमीटर दूर मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रेदश का ऐसा शहर है जो अपने प्राचीन इतिहास, सांस्कृतिक धरोहर और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है. यह शहर भले ही बेहतरीन पर्यटन स्थलों में शुमार नहीं है लेकिन इसका रोचक और लंबा इतिहास फिर भी इसे घूमने के लिहाज से उत्तर प्रदेश का का महत्वपूर्ण जिला बनाता है.
मेरठ का पुराना नाम मयराष्ट्र था, जो मय के प्रदेश का मतलब होता है. मय हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक त्रेतायुग यानी रामायण काल में यहां असुरों का राजा था. रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका यहीं था. इसलिए, मेरठ को रावण की ससुराल भी कहा जाता है.
महाभारत में जिस हस्तिनापुर का जिक्र होता है वह मेरठ का ही क्षेत्र है. द्वापर युग यानी महाभारत काल के अवशेष के रूप में आज भी यहां पांडव टीला, बरनावा में लाक्षागृह की गुफाएं, कर्ण मंदिर, द्रोपदी तालाब, पांडवेश्वर महादेव मंदिर और विदुर कुटी मौजूद हैं. बता दें कि लाक्षागृह यानी लाह के महल में पांडवों को जिंदा जलाकर मार देने का षड्यंत्र रचा गया था.
मौर्य सम्राट अशोक के शासन काल में मेरठ बौद्ध धर्म का केंद्र रहा, शहर की जामा मस्जिद में आज भी बौद्ध संरचनाओं के अवशेष मिलते हैं. दिल्ली रिज पर स्थित अशोक स्तंभ को फिरोज शाह तुगलक मेरठ से ही लाया था. इसके अलावा बादशाह अकबर के शासन काल में मेरठ में तांबे के सिक्के चला करते थे.
10 मई, 1857 को मेरठ की छावनी में ब्रिटिश सेना के भारतीय जवानों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. इस विद्रोह को अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का पहला कदम और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी माना जाता है. इस विद्रोह में शामिल जवानों ने एक दिन में ही मेरठ पर कब्ज़ा कर लिया था और दिल्ली के लाल किले की ओर बढ़ चले थे. इस विद्रोह में आम लोग भी शामिल हुए और इसके साथ ही पूरे देश में व्यापक तौर पर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष शुरू हो गया था.
9 मई 1857 को चर्बी लगे कारतूसों का इस्तेमाल करने से जिन 85 सैनिकों ने मना कर दिया था कोर्ट मार्शल कर उन्हें मेरठ की विक्टोरिया जेल में डाल दिया गया था. यह खबर चिंगारी की तरह देखते ही देखते पूरे मेरठ में फैली तो सदर थाने में तैनात कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में ग्रामीणों ने विक्टोरिया जेल पर धावा बोल 85 भारतीय सैनिकों के साथ 839 क्रांतिकारियों को भी छुड़ा लिया था. बगावत की इस आग में अंग्रेजी हुकूमत का एक अफसर भी मारा गया था. स्वतंत्रता संग्राम में धनसिंह गुर्जर के योगदान के लिए उनकी प्रतिमा सदर थाना परिसर में लगवाई गई है.
9 अगस्त, 1942 को जब भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा हुई थी तो मेरठ के लोगों ने भी इसमें हिस्सा लिया था. इस आंदोलन में गांधी आश्रम के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और नामी स्वतंत्रता सैनानी जे. बी. कृपलानी ने 1920 में अपने शार्गिदों के साथ इस आश्रम की नींव रखी थी. धीरे-धीरे यह आश्रम कांतिकारियों के रुकने की प्रमुख जगह बन गया.
मेरठ का उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में भी बहुत योगदान रहा है. भारतीय सेना ने देश का पहला शॉपिंग मॉल मेरठ कैंट क्षेत्र में ही खोला था. इसके अलावा हिंदुस्तान लीवर का पहला कारखाना भी मेरठ में ही लगा था. स्पोर्ट्स गुड्स के निर्माण के लिए भी मेरठ देशभर में प्रसिद्ध है. यहां तमाम तरह के कल-कारखाने और उद्योग हैं जहां सुईं से लेकर हवाई जहाज के पंख तक बनाए जाते हैं.
अब तक आप यह तो जान ही चुके हैं कि मेरठ का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व कितना ज्यादा है. यहां आज भी ऐसे कई स्थल और अवशेष है जिन्हें देखकर आप अपनी जानकारी बढ़ा सकते हैं. कुछ ऐतिहासिक प्रमुख पर्यटन स्थलों की बात करें तो आप यहां हस्तिनापुर, परिक्षितगढ़ किला, ओघड़नाथ मंदिर, सूरजकुंड पार्क, सरधना चर्च, राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्राहलय, गांधी आश्रम और कंपनी बाग आदि की सैर कर सकते हैं.
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