मां दुर्गा को क्यों लेना पड़ा कालरात्रि का वीभत्स रूप, जानें कैसे किया दानव रक्तबीज का वध
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मां दुर्गा को क्यों लेना पड़ा कालरात्रि का वीभत्स रूप, जानें कैसे किया दानव रक्तबीज का वध

दुष्टों के लिए वीभत्स और भक्तों के लिए कल्याणकारी हैं मां कालरात्रि, ऐसे करें पूजा...

मां दुर्गा को क्यों लेना पड़ा कालरात्रि का वीभत्स रूप, जानें कैसे किया दानव रक्तबीज का वध

मिर्जापुर: नवरात्रि के सातवें दिन विन्ध्य पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी की पूजा अर्चना कालरात्रि के रूप में की जाती है. मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, इनका वर्ण अंधकार की भांति काला है, केश बिखरे हुए हैं, कंठ में विद्युत की चमक वाली माला है. मां कालरात्रि के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल व गोल हैं, जिनमें से बिजली की किरणें निकलती रहती हैं. इनकी नासिका से श्वास तथा नि:श्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती हैं. मां का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है. मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ-फल प्रदान करती हैं. इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है. भक्तों को अभय प्रदान करने वाली माता गर्दभ (गधा) पर सवार चार भुजा धारण किये हुए हैं. दुष्टों के लिए माता का रूप भयंकर है, वहीं भक्तों के लिए कल्याणकारी है. मां की महिमा अपरम्पार है, इनके गुणों का बखान देवताओं ने भी किया है. मां का दर्शन-पूजन करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

नवराित्र में मां शक्ति के नौ रूपों की आराधना की जाती है. विंध्य पर्वत पर त्रिकोण पथ पर स्थित मां काली आकाश की ओर अपने खुले मुख से असुरों का रक्तपान करते हुए भक्तों को अभय प्रदान करती हैं. यह रूप उन्होंने दुष्टों के विनाश के लिए बनाया हुआ है. मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुर से जीवन की रक्षा हेतु भगवान विष्णु को निद्रा से जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने मां की स्तुति की थी. यह देवी काल रात्रि ही महामाया हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं। इन्होंने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड़ रखा है. देवी की चार भुजाएं हैं दायीं ओर की उपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। बायीं भुजा में क्रमश: तलवार और खड्ग धारण किया है. 

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मां कालरात्रि की कथा
एक बहुत बड़ा दानव था रक्तबीज. उसने देवों और जनमानस को परेशान कर रखा था. उसकी विशेषता ये थी कि जब उसके खून की बूंद (रक्त) धरती पर गिरती थी तो उससे उसका हूबहू वैसा ही नया रुप बन जाता था. फिर सभी भगवान शिव के पास गए, शिव को‌ पता था कि देवी पार्वती ही उसे खत्म कर सकती हैं. शिव ने देवी से अनुरोध किया. इसके बाद मां ने स्वयं शक्ति संधान किया. मां पार्वती का चेहरा एक दम भयानक डरावना सा दिखने लगा. फिर जब वो एक हाथ से रक्तबीज को मार रहीं थीं तभी दूसरे हाथ में एक मिट्टी के पात्र खप्पर से झेल लेतीं और रक्त को जमीन पर गिरने नहीं देतीं. इस तरह रक्तबीज को मारने‌ वाला माता पार्वती का ये रूप कालरात्रि कहलाया.

जैसा कि नाम से ही पता लगता है मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है. दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की आराधना की जाती है. कालरात्रि मां दुष्टों को, असुरों को मारने वाली हैं, स्वशक्ति (Self Energy) संधान करने वाली हैं. इसी एनर्जी के अंश को आशीर्वाद स्वरुप मां अपने भक्तों को देती हैं.

पूजा और भोग के नियम
शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार पहले कलश की पूजा करनी चाहिए फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए. देवी की पूजा से पहले उनका ध्यान करना चाहिए. अब अगर बात करें भोग की तो, मां को इस रूप में कई प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है. विशेष रूप से मधु और महुआ के रस के साथ गुड़ का भोग होता है. 

तंत्र साधना करने वालों के लिए महत्वपूर्ण दिन
देवी का यह रूप ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है. दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है. सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं. इस दिन मां की आंखे खुलती हैं. दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है. इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दर खुल जाता है.

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