उत्तर प्रदेश में जलालपुर के रहने वाले हाशिम रज़ा जलालपुरी ने मीराबाई की 209 पदावली को 1510 अशआर में तब्दील कर दिया है.
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जलालपुर: मीराबाई ने भगवान श्रीकृष्ण के लिए अपने जज्बात बखूबी बयां किए हैं, इससे हम वाकिफ हैं. मीराबाई ने अपनी शायरी में राजस्थानी, बृज भाषा, अवधी और गुजराती समेत कई भाषआओं का इस्तेमाल किया है. लेकिन उनकी शायरी, मोहब्बत और इबादत को एक उर्दू शायरी के सांचे में ढालने का कारनामा नौजवान शायर हाशिम रज़ा जलालपुरी ने कर दिया है. मीराबाई की सभी 209 पदावली उर्दू शायरी में... ये सुनने में थोड़ा मुश्किल काम लगता है लेकिन ऐसा सच में हुआ है. और इसके लिए 5 साल की कड़ी मेहनत लगी है.
उत्तर प्रदेश में जलालपुर के रहने वाले हाशिम रज़ा जलालपुरी ने मीराबाई की 209 पदावली 1510 अशआर में तब्दील कर दी है. मीराबाई की पदावली किताबों में पढ़ाई जाती है, लेकिन इसका ब्रज भाषा से उर्दू शायरी में अनुवाद करने का काम आसान नहीं था.
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मीराबाई को बड़ी शायरा मानते हैं
इस बारे में हाशिम रज़ा जलालपुरी कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही मीराबाई की पदावली बेहद पंसद है और वो उन्हें सबसे बड़ी शायरा मानते रहे हैं. इसलिए जैसे ही उन्होंने मीराबाई की पदावली का उर्दू अनुवाद करने का मन बनाया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.
अब कबीर के दोहों को उर्दू रूप देंगे हाशिम
हाशिम रज़ा जलालपुरी कहते हैं कि जो बात मीराबाई ने उस जमाने में कही, उसको लोग सिर्फ ब्रज भाषा में ही पढ़ते हैं लेकिन मीराबाई की बातें सभी लोगों तक पहुंचे इसके लिए अलग अलग जबानों में उनकी पदावली का तर्जुमा जरूरी है. उर्दू ऐसी जुबान है जिससे बड़े पैमाने पर लोग जुड़े हैं. इसके साथ उन्होंने हिंदी के जानकारों के लिए भी देवनागरी में यह शायरी लिखी है जो आसानी से पढ़ी जा सकती है. साथ ही वो बताते हैं कि अब उनकी कोशिश कबीर जी के दोहों को उर्दू तर्जुमे के साथ दुनिया के सामने लाने की है.
इससे पहले मशहूर शायर अनवर जलालपुरी ने भगवदगीता का तर्जुमा उर्दू शायरी में किया था जो तारीख़ में दर्ज है.
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