उत्तराखंड के मंदिरों में यात्रियों के लिए वैष्णो देवी और तिरूपति बालाजी की तर्ज पर व्यवस्था बनाने से पहले ही विरोध शुरू हो गया है.
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देहरादून: बदरीनाथ केदारनाथ सहित उत्तराखंड के 51 मंदिरों को श्राइन बोर्ड के अंतर्गत लाने का विरोध शुरू हो गया है. श्राइन बोर्ड के प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. 4 दिसंबर से शुरू होने वाले विधान सभा सत्र में इसे पास करवाकर कानून बना दिया जाएगा. राज्य सरकार के इस फैसले का तीर्थ पुरोहितों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. चार धाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष आचार्य शिव प्रसाद ममगाई ने सरकार के फैसले का विरोध करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है.
उत्तराखंड के मंदिरों में यात्रियों के लिए वैष्णो देवी और तिरूपति बालाजी की तर्ज पर व्यवस्था बनाने से पहले ही विरोध शुरू हो गया है. विरोध को राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी हवा देनी शुरू कर दी है. बुधवार को राज्य कैबिनेट ने बदरीनाथ केदारनाथ धाम में आने वाले यात्रियों की सुविधओं को ध्यान में रखते हुये श्राइन बोर्ड के प्रस्ताव को मंजूरी दी. लेकिन, इसकी जानकारी सार्वजनिक होते ही बदरीनाथ केदारनाथ सहित राज्य के कई मंदिरों के तीर्थ पुरोहितों ने सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी है.
चार धाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष और राज्य मंत्री का दर्जा रखने वाले आचार्य शिव प्रसाद ममगाई ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मिलकर इस्तीफा दे दिया है. आचार्य ममगाई का कहना है कि सरकार ने उनसे कोई बातचीत नहीं की. जबकि, वो चार धाम यात्रा से जुड़े महत्वपूर्ण पद पर हैं. बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस नेता गणेश गोदियाल ने कहा है कि ये सरकार तीर्थ पुरोहितों के हकों के साथ खिलवाड़ कर रही है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने सरकार के फैसले को गैर जरूरी बताया है.
वहीं, बीजेपी प्रदेश मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन ने कहा है कि वो किसी के साथ अन्याय नहीं होने देंगें. सरकार तीर्थ पुरोहितों से बातचीत करके उनकी समस्याओं को सुन रही है. वास्तव में श्राइन बोर्ड एक्ट पास हो जाने से राज्य के 51 बड़े और पौराणिक मंदिर इसकी परिधि में आ जाएंगे. इस एक्ट के बनने से यात्रा को सुचारू बनाने की कोशिश हो सकती है. साथ ही मंदिरों के भीतर और आसपास तीर्थ पुरोहितों की मनमानी और दबदबा भी खत्म हो जाएगा.
बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति और गंगोत्री यमनोत्री मंदिर समिति सहित यात्रा से जुड़ी बाकी समितियों का भी इस बोर्ड में विलय हो जाएगा. इसके बाद पूरी तरह से यात्रा का जिम्मा प्रशासन के पास आ जाएगा. तीर्थ पुरोहितों को आशंका है कि उनके अधिकार भी प्रशासन की इच्छा पर ही निर्भर हो जाएंगे. हालांकि, सरकार ने पुजारियों की शिकायत को सुनने के लिए समिति गठित करने की बात भी कही है. अब देखना ये है कि सरकार श्राइन बोर्ड एक्ट को किस तरह से विधान सभा से पास करवाती है.