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रामनगरी अयोध्या के नजदीक वो गांव, जहां सैकड़ों सालों से नहीं मनाई जा रही दिवाली

रोशनी का त्योहार दीपावली आने में अब कुछ दिन ही बाकी रह गए हैं. घरों में साज-सजावट से लेकर खरीदारी की तैयारियां चल रही हैं. पटाखों और मिठाई के बाजार भी सजने लगे हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश का एक गांव ऐसा भी है, जहां दिवाली के दिन जश्न की जगह मातम पसरा रहता है.

दिवाली 2024 कब है?

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दिवाली 2024 कब है?

हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक दिवाली इस साल 1 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी. हिंदू पंचांग के मुताबिक, कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर 2024 को दोपहर 03:52 बजे शुरू होगी और अगले दिन यानी 1 नवंबर 2024 को शाम 06:16 बजे समाप्त होगी.

 

दिवाली उत्सव

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दिवाली उत्सव

भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर लोगों ने दीपक जलाकर उत्सव मनाया था. त्रेता युग की यह परंपरा आज भी धूमधाम से मनाई जाती है.

नहीं मनाई जाती दिवाली

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नहीं मनाई जाती दिवाली

लेकिन क्या आपको मालूम है उत्तर प्रदेश में एक ऐसी जगह मौजूद है, जहां बरसों बीत गए हैं लेकिन आज तक दिवाली नहीं मनाई जाती है. यहां दीपोत्सव के दिन मातम सा माहौल छाया रहता है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो आजादी के बाद से यहां दीपावली का कोई भी उत्सव नहीं मनाया गया है.

 

कहां स्थित है

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कहां स्थित है

ये जगह है उत्तर प्रदेश के गोंडा के वजीरगंज विकास खंड की ग्राम पंचायत डुमरियाडीह के यादवपुरवा गांव. अयोध्या से इस जगह की 50 किलोमीटर ही है. यहां की आबादी करीब 300 है. लेकिन त्योहार के दिन भी यहां कोई जश्न नहीं दिखता.

 

नहीं मनाते जश्न

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नहीं मनाते जश्न

दिवाली के दिन यहां लोग घरों में ही कैद रहते हैं. न कोई मिठाई बांटता है न कोई जश्न. दिवाली न मनाने की परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. 

 

क्यों नहीं मनती दिवाली

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क्यों नहीं मनती दिवाली

ग्रामीणों की मानें तो इस गांव में दीवाली के मौके बहुत पहले एक अनहोनी हो गई थी. गांव का एक नौजवान इसी त्योहार वाले दिन चल बसा. तभी से यहां के लोग दिवाली नहीं मनाते हैं. 

 

अनहोनी का डर

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अनहोनी का डर

गांव वालों का कहना है कि अगर कोई दीपावली का त्योहार मनाने का प्रयास करता है तो कोई अनहोनी हो जाती है. उस डर का असर आज भी है. जब इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया गया तो इसका खमियाजा भुगतना पड़ा.

 

परेशानी का करना पड़ा सामना

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परेशानी का करना पड़ा सामना

ऐसा करने पर कई लोग गांव के बीमार हो गए यही नहीं बच्चों को भी परेशानी झेलनी पड़ी. इसके बाद से एक बात ठानी गई कि भले कुछ हो जाये, मगर दीवाली वाले दिन इसे नहीं मनाया जाएगा.

 

त्योहार न मनाने का दुख

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त्योहार न मनाने का दुख

गांव वालों का कहना है कि दिवाली के त्योहार का जश्न चारों तरफ रहता है, ऐसे में इसे न मनाने के चलते दुख होता है. लेकिन इस गांव में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परंपरा आज भी कायम है. यहां आम दिनों की तरह ही माहौल रहता है.

 

डिस्क्लेमर

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डिस्क्लेमर

लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की जिम्मेदारी हमारी नहीं है.एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.