ये हैं 5 बड़े कथावाचक, जिन्हें सुनने के लिए विदेशों से आते हैं भक्त
इस बार गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई को पड़ रही है. इसी दिन महाभारत के रचयिता ऋषि वेद व्यासजी का जन्म हुआ था, इसीलिए इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं. सनातन धर्म में गुरु को सर्वोपरि रखा गया है. अपने देश में कई ऐसे कथावाचक हुए जो देश ही नहीं दुनिया में छा गए.
रामभद्राचार्य
हिन्दू संत समाज में रामभद्राचार्य जी महाराज का नाम बहुत आदर से लिया जाता है. तुलसीपीठ के संस्थापक पद्यविभूषण जगत गुरु रामभद्राचार्य जी महाराज को 22 भाषाओं का ज्ञान है.
जौनपुर में जन्म हुआ
रामभद्राचार्य महाराज का वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है, उनका जन्म यूपी के जौनपुर जिले में हुआ था. वर्तमान में वह चित्रकूट में रहते हैं. वह रामानंद संप्रदाय के वर्तमान चार जगतगुरु रामानंदाचार्यों में से एक हैं.
मोरारी बापू
कथावाचक मोरारी बापू का जन्म 25 सितंबर 1946 में गुजरात के महुआ के निकट तालगरदजा गांव में हुआ था. वर्तमान में मोरारी बापू श्री चित्रकूटधाम ट्रस्ट तालगरजदा महुआ गुजरात में रहते हैं.
900 से ज्यादा रामकथा
मोरारी बापू राम कथा के लिए देश-विदेश का भ्रमण करते रहते हैं. मोरारी बापू अबतक 900 से अधिक रामकथाओं का वाचन कर चुके हैं.
प्रेमानंद जी महाराज
वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज का जन्म यूपी के कानपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ. प्रेमानंद जी के बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है.
13 साल की उम्र में सन्यास
प्रेमानंद जी महाराज संन्यासी बनने के लिए 13 साल की उम्र में ही घर का त्याग कर दिया था. संन्याली जीवन की शुरुआत में प्रेमानंद जी महाराज का नाम आरयन ब्रह्मचारी रखा गया.
प्रदीप मिश्रा
कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा का जन्म 1980 में सीहोर में हुआ था. उनका उपनाम रघु राम है. उन्होंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है.
ऐसे बने कथावाचक
पंडित प्रदीप मिश्रा ने शुरू में शिव मंदिर से कथा वाचन शुरू किया था. वह शिव मंदिर की सफाई करते थे. इसके बाद वे सीहोर में पहली बार कथावाचक के रूप में मंच संभाला.
जया किशोरी
कथावाचक जया किशोरी का जन्म 13 अप्रैल 1995 को राजस्थान के सुजानगढ़ में हुआ था. अब उनका पूरा परिवार कोलकाता में रहता है. किशोरी उपाधि मिलने से पहले जया अपने नाम के आगे शर्मा लिखती थीं.
किशोरी की उपाधि
जया किशोरी ने महज 9 साल की उम्र में संस्कृत में लिंगाष्टकम, शिव तांडव स्त्रोत, रामाष्टकम जैसे तमाम स्रोत याद कर लिए थे. उनके शुरुआती गुरु गोविंद राम मिश्र ने उन्हें ‘किशोरी जी’ की उपाधि दी थी.