यूपी के इस शहर में चमत्‍कारी कुंड! तीन बार डुबकी लगाने से भर जाती है निसंतानों की सूनी कोख

काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है. हालांकि, इसे जन्‍मदायनी कहें तो गलत नहीं होगा. जी हां यूं तो बनारस में देखने और जानने के लिए बहुत कुछ है. लेकिन यहां एक अनोखा कुंड भी है, जिसे निसंतान औरतों की खुशियां भरने का सौभाग्‍य प्राप्‍त है.

अमितेश पांडेय Mon, 09 Sep 2024-2:26 pm,
1/10

काशी का लोलार्क कुंड

दरअसल हम जिस कुंड की बात कर रहे हैं उसका नाम लोलार्क कुंड है. कहा जाता है कि बनारस के इस कुंड में सूर्य की किरणें सबसे पहले पहुंचती हैं. इसीलिए इसे सूर्य कुंड के नाम भी जाना जाता है. 

2/10

भादो माह की षष्‍ठी तिथि पर स्‍नान का महत्‍व

मान्‍यता है कि लोलार्क कुंड में स्‍नान करने मात्र से चर्म रोग से मुक्ति मिल जाती है. इसके अलावा इस कुंड में स्‍नान करने से संतान की प्राप्ति भी होती है. भादो माह की षष्ठी तिथि को इसी मान्यता के साथ स्नान करने के लिए भारी भीड़ जुटती है. 

 

3/10

संतान की प्राप्ति

मान्यता है कि संतान प्राप्ति की कामना के साथ सच्चे मन और श्रद्धा के साथ कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है. 

4/10

तीनों दिशाओं में सीढ़‍ियां

कुंड में उतरने के लिए उत्तर, दक्षिण और पश्चिम तीनों दिशाओं से लंबी सीढ़ियां बनाई गई हैं. इसके पूर्वी दिशा में एक बड़ी सी दीवार है. 

5/10

तीन बार डुबकी लगाने की परंपरा

यहां के पुरोहित का कहना है कि जिन विवाहित महिलाओं की गोद सूनी होती है, उन दंपति को लोलार्क छठ के दिन काशी के भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में तीन बार डुबकी लगाकर स्नान करना चाहिए. 

6/10

फल दान करना चाहिए

इसके बाद दंपति को एक फल का दान कुंड में करना चाहिए. इस दौरान दंपति को अपने भीगे कपड़े भी यहीं छोड़ देना चाहिए. कुंड में स्नान के बाद दंपति को लोलाकेश्वर महादेव का दर्शन करना चाहिए.

7/10

ये है पौराणिक मान्‍यता

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान सूर्य ने यहां सैकड़ों साल तपस्या कर शिवलिंग की स्थापना की थी, जो लोलाकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. 

8/10

अहिल्‍याबाई ने पुन: निर्माण करवाया

एक दूसरी कथा यह भी है कि इसी जगह पर भगवान सूर्य के रथ का पहिया गिरा था, जिसके कारण कुंड का निर्माण हुआ. बाद में रानी अहिल्याबाई ने इस कुंड का पुनः निर्माण कराया था.

9/10

राजा गढ़वाल ने स्‍नान किया

कहा जाता है कि 9वीं सताब्दी से कुंड में स्नान की परंपरा चली आ रही है. यहां राजा गढ़वाल नरेश ने अपनी सातों रानियों के साथ स्नान किया था, जिसके बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हुई. 

 

10/10

डिस्क्लेमर

यह कहानी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. जी यूपीयूके इसकी पुष्टि नहीं करता है. 

 

ZEENEWS TRENDING STORIES

By continuing to use the site, you agree to the use of cookies. You can find out more by Tapping this link