यहां बना है दूसरा केदार मंदिर, महाभारत युद्ध में यहीं धुले थे पांडवों के पाप
पंचकेदार में महादेव के पांच अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. मदमहेश्वर में नाभि की पूजा की जाती है. मान्यता है कि यहां दर्शन और पूजन करने से भगवान शिव की कृपा बरसती है.
पंचकेदारों में द्वितीय केदार भगवान मदमहेश्वर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए विधि-विधान से खोल दिए गए. इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे. देवडोली के पहुंचने के बाद कपाट खोलने की प्रक्रिया शुरू हुई. मदमहेश्वर भगवान की देवडोली के पहुंचने के बाद सुबह 10 बजे से कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू हुई. विधिवत पूजा-अर्चना के बाद कपाट खोले गए. ग्रीष्मकाल के छह महीने श्रद्धालु यहीं भगवान मदमहेश्वर के दर्शन करेंगे.
भगवान मदमहेश्वर मंदिर का महत्व
पंच केदार में इन्हें दूसरे केदार के रूप में पूजा जाता है. भगवान शिव के बैल स्वरूप की नाभि की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस मंदिर को महाभारतकाल में पांडवों ने बनवाया था. हिंदू धर्म में इसकी बहुत ज्यादा मान्यता है.
प्रायश्चित करने निकले पांडव
लोक कथाओं के अनुसार, पांडवों ने कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान किए गए अपने पापों के प्रायश्चित करने का मन बनाया और महादेव का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी खोज शुरू की. शिव बैल (नंदी) के रूप में गढ़वाल क्षेत्र में छिप गए. इसी बीच बैल ने अपना सिर चट्टानों के बीच छुपा लिया.
पंड़ावों के पाप हुए थे क्षमा
नंदी के रूप में छिपे महादेव को भीम ने पहचान लिया. जिसके बाद भीम उसकी पुंछ पकड़कर खींचने लगे तो बैल का धड़ सिर से अलग हो गया और उस बैल का धड़ शिवलिंग में बदल गया और कुछ समय के बाद शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए. भगवान शिव ने पंड़ावों के पाप क्षमा कर दिए और स्वर्ग का मार्ग बताकर अंतर्ध्यान हो गए.
माना जाता है मुक्ति स्थल
महादेव के अंतर्ध्यान होने के बाद पांडवों ने उस शिवलिंग की पूजा-अर्चना की और आज वही शिवलिंग केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है. यहां पांडवों को स्वर्ग जाने का रास्ता स्वयं शिव जी ने दिखाया था इसलिए हिन्दू धर्म में केदार स्थल को मुक्ति स्थल माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि अगर कोई केदार दर्शन का संकल्प लेकर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए तो उस जीव को दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता है.
ये हैं पंचकेदार
पंचकेदार को केदारनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ और कल्पेश्वर के नाम से जाना जाता है. केदारनाथ में भगवान शिव के पीठ की पूजा होती है. दूसरे केदार यानी मदमहेश्वर में भोले बाबा के नाभि की पूजा होती है. तुंगनाथ में महादेव की भुजाओं की पूजा होती है. रुद्रनाथ में भगवान के मुख के दर्शन होते हैं. वहीं कल्पेश्वर में महादेव की जटाओं की पूजा होती है.
महादेव की कृपा
बात करें मदमहेश्वर की तो ये मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में चौखम्बा पर्वत की तलहटी पर स्थित है. यहां जाने के लिए ऊखीमठ से कालीमठ और फिर वहां से मनसुना गांव होते हुए 26 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है. मान्यता है कि यहां दर्शन और पूजन करने से महादेव की कृपा बरसती है और सुखी जीवन मिलता है.
मां पार्वती संग महादेव
हिंदू मान्यता के अनुसार, प्रकृति की गोद में बसे इसी मंदिर में महादेव और माता पार्वती ने रात्रि बिताई थी. मदमहेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा के लिए दक्षिण भारत के लिंगायत ब्राह्मण पुजारी नियुक्त होते हैं. मंदिर के पास बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर, लिंगम मदमेश्वर, अर्धनारीश्वर व भीम के मंदिर भी दर्शनीय हैं. ये मंदिर सर्दियों में बंद रहता है. मध्यमहेश्वर मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय मई से जून के बीच है.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां लोक कथाओं पर आधारित है. Zeeupuk इसकी किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है.