संगम में गंगा-यमुना के साथ कुछ मिनटों के लिए रहस्यमयी दूधिया धारा कहां से आई?
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संगम में गंगा-यमुना के साथ कुछ मिनटों के लिए रहस्यमयी दूधिया धारा कहां से आई?

संगमनगरी में सूर्यग्रहण से एक ठीक एक दिन पहले गंगा और यमुना नदियों के साथ ही एक रहस्यमयी तीसरे रंग की धारा भी दिखाई दी. थोड़ी देर तक दोनों नदियों के साथ दिखाई दी इस धारा को देखकर सभी हैरान रह गए.

संगम तट पर दूधिया धारा

मोहम्मद गुफरान/प्रयागराज: संगमनगरी में सूर्यग्रहण से एक ठीक एक दिन पहले गंगा और यमुना नदियों के साथ ही एक रहस्यमयी तीसरे रंग की धारा भी दिखाई दी. थोड़ी देर तक दोनों नदियों के साथ दिखाई दी इस धारा को देखकर सभी हैरान रह गए. ज्यादातर संगमनगरी वासी अब इसे सदियों पहले लुप्त हो गई संगम की तीसरी नदी सरस्वती की धारा बता रहे हैं. उनका कहना है कि 10 से 20 वर्षों में एक बार सरस्वती नदी की सफेद धारा दिखाई देती ही है. 

कुछ मिनटों तक दिखी दूधिया धारा 
इस दौरान वहां मौजूद एक नाविक ने इसकी कुछ तस्वीरें अपने मोबाइल फोन पर रिकार्ड कर लीं. ये तस्वीरें अब सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं और इन्हें लेकर लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं. ज्यादातर लोग इसे विलुप्त हो चुकी नदी सरस्वती की धारा मान रहे हैं. हालांकि वैज्ञानिकों का दावा संतों और आम लोगों से अलग है. 
ये धारा कुछ भी हो, फिलहाल संगमनगरी में इस पर रहस्य बरकरार है. सवाल ये उठरहा है कि दो नदियों के बीच ये दूधिया रंग की धारा कुछ मिनटों के लिए आई कहां से?

संतों ने माना सरस्वती नदी की धार 
योग गुरु आनंद गिरी भी इस धारा को गंगा यमुना के बीच विराजमान अदृश्य सरस्वती की धारा ही मान रहे हैं. उनके मुताबिक संगम पर दिखने वाली ये सफेद धारा विलुप्त सरस्वती की ही है. स्वामी आनंद गिरी का कहना है कि ये कुछ और नहीं बल्कि विलुप्त हो चुकी सरस्वती की धारा थी. देवी सरस्वती दस बीस सालों में कुछ पल के लिए यहां अपने भक्तों को दर्शन देती हैं. धार्मिक ग्रंथों में भी यहां सरस्वती के होने का जिक्र है इसीलिये इस जगह को त्रिवेणी भी कहा गया है.

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भूगोल जानने वाले कर रहे हैं अलग दावा 
वहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्रोफेसर का मत बिल्कुल अलग है. उनका कहना है कि ऐसी घटनाएं किसी ठोस वैज्ञानिक वजहों से ही होती हैं. ऐसी धारा किसी रासायनिक वजह से देखने को मिली है. संभव है कि संगम पर माघ मेले में चूना ब्लीचिंग पाउडर या कोई दूसरा केमिकल रखा गया रहा हो, जिसे लॉकडाउन के दौरान गड्ढा बनाकर वहीं डाल दिया गया हो. ऐसे में पानी बढ़ने से ये चूना धारा से मिलकर अलग नजर आने लगा हो. इसके साथ ही सनातन धर्म के जानकर ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय भी इस धारा को सरस्वती की धारा मानने को तैयार नहीं है. उनका कहना है कि सनातन धर्म के मूताबिक कलयुग में सरस्वती संतो और विद्वानों की ज्ञान वाणी के जरिये प्रयागराज में वास करती है. 

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