Pitru Paksha 2023: श्रीमद्भगवतगीता के अनुसार क्यों लगता है पितृदोष, पितरों को कैसे मिलेगी मुक्ति?
Sharadh Paksha 2023: पितृदोष होने की कई वजह हो सकती हैं. सनातन धर्म में पितरों को देवताओं के बराबर माना जाता है, कई बार पितरों को मुक्ति नहीं मिलती और पितृदोष लग जाता है. जानें किस वजह से लगता है पितृदोष?...
According Shrimad Bhagwat Geeta: बुजुर्ग एक कहावत कहते थे मामा से बढ़कर कोई मेहमान नहीं और पितरो से बढ़कर कोई भगवान नहीं. कहते हैं देवताओं को भोग लगाओ न लगाओ पर पितरों को कभी नाराज मत करो. पितरों के दोष से परिवार की समृद्धि रुक जाती है, वंश आगे बढ़ने में मुश्किलें आती हैं. परिवार में किसी का भी स्वास्थय ठीक नहीं रहता. इसलिए अपने बुजुर्गों की जीते जी भी सेवा करनी चाहिए और उनकी मृत्यु के बाद भी कुछ नियमों का पालन जरूर करना चाहिए. ऐसा ही एक प्रसंग श्रीमद्भगवतगीता में भी लिखा गया है.
महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन कौरवों पर शस्त्र उठाने से मना कर देते हैं. अर्जुन कहते हैं - अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः, स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः इसका अर्थ है कि, हे कृष्ण ! अगर हमारे कुल में अधर्म बढ़ जाएगा तो कुल की सभी स्त्रियां अपना सदाचार छोड़ देंगी. वह दूषित हो जाएंगी और ये स्त्रियां अनचाही संतानों को जन्म देंगी. ऋषि मुनियों ने हमारे कल्याण के लिए कुछ नियम बनाए हैं. धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों के लिए परिवार की स्त्री का चरित्र अच्छा होना चाहिए, अगर परिवार या कुल के पुरुष अधर्म करेंगे तो स्त्री अपने चरित्र को छोड़कर ऐसी संतानों को जन्म देंगी जो पितरों का कल्याण नहीं कर सकेंगे.
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अर्जुन आगे कहते हैं
सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च , पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः- हे कृष्ण! हमारे धर्म में पितरों का पिंडदान करना बहुत ही जरुरी है. पितृ पक्ष में अपने पितरों को भोजन और पानी देना हमारा कर्त्तव्य है. अगर पितरों का पिंडदान नहीं किया जाता या उन्हें कभी भी भोजन और जल नहीं मिलता तो पितृ स्वर्ग नहीं जा पाते और उन्हें मुक्ति नहीं मिलती. वह प्रेत बनकर भटकते हैं और परिवार की तरक्की में बाधा उत्पन होती है. लेकिन केवल वहीं संतान अपने पितरों का उद्धार कर सकती है जो सदाचार से पैदा हुई हो. अगर समाज में अनचाही संताने होंगी तो वह धर्म का ज्ञान नहीं ले पाएंगी और न ही उन्हें कोई धार्मिक नियम पता होगा. ऐसे में वृद्ध जनों को जीते जी भी कष्ट मिलता है और पितर बनने के बाद भी आत्मा भटकती है. इसलिए परिवार में पुरुषों को अधर्मी और स्त्री को चरित्रहीन नहीं होना चाहिए.
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