Pradosh Vrat 2024: हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है. प्रदोष व्रत भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित होता है. यह तिथि भोलेनाथ को खुश करने के लिए बड़ी महत्वपूर्ण होती है. अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष का अलग-अलग महत्व होता है. आषाढ़ माह का पहला प्रदोष व्रत 15 जून 2023, गुरुवार यानी कल है. प्रदोष व्रत गुरुवार के दिन पड़ रहा है, इसलिए यह गुरु प्रदोष व्रत कहलाएगा. इस दिन मिथुन संक्रांति है. साथ ही योगिनी एकादशी का पारण किया जाएगा. ऐसे में भोलेनाथ संग सूर्य देव की पूजा से व्रत रखने वाले का बल, मान-सम्मान और सुख में वृद्धि होगी. 


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आषाढ़ गुरु प्रदोष व्रत 2023 मुहूर्त (Ashadha Guru Pradosh Vrat 2023 Muhurat)
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के त्रयोदशी तिथि 15 जून 2023 को सुबह 08:32 बजे शुरू होगी, जिसका समापन 16 जून 2023 को सुबह 08:39 बजे होगा. प्रदोष व्रत में शिव की पूजा सूर्यास्त के बाद की जाती है. ऐसे में गुरुवार को शिव पूजन का समय शाम 07:23 बजे से लेकर रात 09: 24 तक रहेगा. 


प्रदोष व्रत पूजा विधि (Guru Pradosh Vrat 2023 Puja Vidhi)
इस दिन प्रात: सूर्योदय से पूहले उठना चाहिए. 
स्नान आदि के बाद भगवान शिव का स्मरण करें. 
पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर सफेद वस्त्र धारण करें. 
पूजन स्थल को शुद्ध करने के बाद गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार करें. 
अब इस मंडप में पांच रंगों से रंगोली बनाएं. 
प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन में बैठें. 
पूजा के दौरान उतर-पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करें. 
पूजन में भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाएं. 
भोलेनाथ की प्रदोष काल में पूजा किए बिना भोजन ग्रहण न करें. व्रत के दौरान अन्न, नमक, मिर्च आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. 


पूजा सामग्री (Guru Pradosh Vrat 2023 Puja Samgri)
अबीर
गुलाल
चंदन
काले तिल
फूल 
धतूरा
बिल्वपत्र 
शमी पत्र 
जनेऊ
कलावा
दीपक
कपूर
अगरबत्ती 
फल 


गुरु प्रदोष का महत्व 
गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने पर इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है. साथ ही पित्र तृप्ति और भक्ति वृद्धि के लिए भी यह खास होता है.  माना जाता है इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से भक्तों पर भोलेनाथ की विशेष कृपा होती है और व्यक्ति के सभी दुख और कष्ट खत्म हो जाते हैं.  इस व्रत को करने से व्यक्ति के दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष काल में ही भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं. 


Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है.  सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक पहुंचाई गई हैं. हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है. इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी. ZEE UPUK इसकी जिम्मेदारी नहीं लेगा. 


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