Ganadhipa Sankashti Chaturthi 2023: आज संकष्टी चतुर्थी है. हिंदू धर्म में इसका खास महत्व होता है. हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को यह व्रत रखा जाता है. मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है. मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी पर नियमानुसार पूजा-अर्चना करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं. गजानन की कृपा से भक्त को सुख-समृद्धि, धन, वैभव, यश, और ऐश्वर्य मिलता है. इसके साथ ही विघ्नहर्ता अपने भक्तों के सारे दुख हर लेते हैं.  ऐसे में आइये जानते हैं इस व्रत से जुड़ी कथा....


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मार्गशीष गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा 
एक कथा के अनुसार, "प्राचीन काल में त्रेतायुग में दशरथ नामक एक प्रतापी राजा थे. वे राजा आखेट प्रिय थे. एक बार अनजाने में ही उन्होंने एक श्रवणकुमार नामक ब्राह्मण का आखेट में वध कर दिया. उस ब्राह्मण के अंधे मां-बाप ने राजा को शाप दिया कि जिस प्रकार हम लोग पुत्रशोक में मर रहे हैं, उसी भांति तुम्हारा भी पुत्रशोक में मरण होगा. इससे राजा को बहुत चिंता हुई. उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया. फलस्वरूप जगदीश्वर ने राम रूप में अवतार लिया. भगवती लक्ष्मी जानकी के रूप में अवतरित हुईं. 


पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम, सीता और लक्ष्मण सहित वन को गए, जहां उन्होंने खर-दूषण आदि अनेक राक्षस व राक्षसियों का वध किया. इससे क्रोधित होकर रावण ने सीताजी का अपहरण कर लिया. सीता जी की खोज में भगवान राम ने पंचवटी का त्याग कर दिया और ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचकर सुग्रीव के साथ मैत्री की. तत्पश्चात सीता जी की खोज में हनुमान आदि वानर तत्पर हुए. ढूंढते-ढूंढते वानरों ने गिद्धराज संपाती को देखा. इन वानरों को देखकर संपाती ने पूछा कि कौन हो? इस वन में कैसे आये हो? तुम्हें किसने भेजा है? यहां पर तुम्हारा आना किस प्रकार हुआ है.


संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु के अवतार दशरथ नंदन रामजी, सीता और लक्ष्मण जी के साथ दंडकवन में आए हैं. वहां पर उनकी पत्नी सीताजी का अपरहण कर लिया गया है. हे मित्र! इस बात को हम लोग नहीं जानते कि सीता कहां है?


उनकी बात सुनकर संपाती ने कहा कि तुम सब रामचंद्र के सेवक होने के नाते हमारे मित्र हो. जानकी जी का जिसने हरण किया है और वह जिस स्थान पर है वह मुझे मालूम है. सीता जी के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपने प्राण गंवा चुका है. यहां से थोड़ी ही दूर पर समुद्र है और समुद्र के उस पार राक्षस नगरी है. वहां अशोक के पेड़ के नीचे सीता जी बैठी हुई है. रावण द्वारा अपह्रत सीता जी अभी भी मुझे दिखाई दे रही हैं. मैं आपसे सत्य कह रहा हूं कि सभी वानरों में हनुमान जी अत्यंत पराक्रमशाली है. अतः उन्हें वहां जाना चाहिए. केवल हनुमान जी ही अपने पराक्रम से समुद्र लांघ सकते हैं. अन्य कोई भी इस कार्य में समर्थ नहीं है.


संपाती की बात सुनकर हनुमान जी ने पूछा कि हे संपाती! इस विशाल समुद्र को मैं किस प्रकार पार कर सकता हूं? जब हमारे सब वानर उस पार जाने में असमर्थ हैं तो मैं ही अकेला कैसे पार जा सकता हूं? हनुमान जी की बात सुनकर संपाति ने उत्तर दिया कि हे मित्र, आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत कीजिए. उस व्रत के प्रभाव से आप समुद्र को क्षणभर में पार कर लेंगे. संपाती के आदेश से संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को हनुमान जी ने किया. जिसके प्रभाव से हनुमान जी क्षणभर में समुद्र को लांघ गए." मान्यता है कि इसके सामान सुखदायक कोई दूसरा व्रत नहीं हैं.  


Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है.  सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक पहुंचाई गई हैं. हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है. इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी. ZEE UPUK इसकी जिम्मेदारी नहीं लेगा. 


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