हिंदू धर्म के हर त्योहार में कई रीति-रिवाज होते हैं लेकिन अक्सर हमें इनके पीछे का उद्देश्य पता ही नहीं होता है. नवरात्रि में कलश के सामने गेहूं और जौ को मिट्टी के पात्र में बोया जाता है और इसका पूजन भी किया जाता है. आइए जानते हैं कि जौ बोने के पीछे क्या कारण है.
नवरात्रि में जौ बोने की परंपरा है और इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जौ को सृष्टि की पहली फसल माना गया है और इसे अन्नदेवी या अन्नपूर्णा का प्रतीक माना जाता है.
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की तो उस समय की पहली वनस्पति 'जौ' थी. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन हुई थी.
नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. पहले दिन ही पूजा के कलश के पास मिट्टी में जौ (Navratri Jau) बोए जाते हैं. नवरात्रि समापन के बाद इनको प्रवाहित किया जाता है.
नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना के लिए पूरे विधि-विधान से जौ बोए जाते हैं. इस को पूर्ण फसल भी कहा जाता है. इसे बोने के पीछे मेन रीजन अन्न ब्रह्मा है. इसलिए ही तो कहते हैं कि अन्न का आदर करना चाहिए.
संस्कृत भाषा में इसे यव कहा जाता है. अधिकांश लोग जौ को ज्वारे भी कहते हैं. नवरात्रि के दौरान घर, मंदिर और अन्य पूजा स्थलों पर मिट्टी के बर्तन में जौ बोए जाते हैं. नवरात्रि के समाप्त होने पर इसे किसी पवित्र किसी या तालाब में प्रवाहित करते हैं.
जौ को सृष्टि का पहला अनाज माना जाता है और उसे ब्रह्मा जी का स्वरुप भी मानते हैं. जौ का तेजी से बढ़ना घर में सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.
नवरात्रि के पहले दिन जौ बोने की परंपरा सदियों पुरानी बताई जाती है. लेकिन इसके साथ ही कुछ और बातें भी जुड़ी हुई हैं. जौ जातक के भविष्य में आने वाले संकेतों को भी दर्शाती हैं.
ऐसा कहा जाता है कि जौ जितने बड़े और सीधे उगते हैं, उतनी ही कृपा मां दुर्गा की हम पर होती है. नवरात्रि में जौ की फसल होना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. अगर जौ घनी नहीं उगती है या ठीक से नहीं उगती है काली लगती है इसे घर के लिए अशुभ माना जाता है.
इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं.Zee Upuk इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.