पितृ पक्ष में पितरों के नाम का श्राद्ध, तर्पण और दान करने से पितर प्रसन्न होते हैं। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार, यह अनुष्ठान पितृ दोष से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
गरुड़ पुराण के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु एकादशी के दिन होती है, तो उसकी आत्मा सीधे स्वर्ग लोक में जाती है. इस दिन मृत्यु को मोक्ष का द्वार माना जाता है, क्योंकि व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है.
हालांकि, एकादशी के दिन स्वर्ग लोक में भंडारा बंद रहता है. इस कारण, एकादशी के दिन स्वर्ग में जाने वाली आत्मा को भोजन नहीं मिलता और उसे भूखा रहना पड़ता है, क्योंकि स्वर्ग में भी सभी एकादशी का व्रत रखते हैं.
मृत्यु के बाद, यमदूत आत्मा को यमलोक ले जाते हैं, जहां उसके पाप और पुण्य का लेखा-जोखा होता है. 24 घंटे बाद आत्मा को घर वापस छोड़ दिया जाता है, लेकिन आत्मा अपने शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती, क्योंकि वह यमदूतों के नियंत्रण में रहती है.
पितृ पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है. इसके साथ ही, पितरों के लिए श्राद्ध और दान करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इंदिरा एकादशी का व्रत करने और पितरों का श्राद्ध करने से सात पीढ़ियों के पितर तृप्त हो जाते हैं. जिससे परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है.
शुक्ल पक्ष के 15 दिन देवताओं के दिन माने जाते हैं, जबकि कृष्ण पक्ष के 15 दिन पितरों के दिन माने जाते हैं. देवताओं के दिन उत्तरायण और पितरों के दिन दक्षिणायन काल कहलाते हैं.
गीता के अनुसार, शुक्ल पक्ष में मृत्यु होने पर व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है. जबकि, कृष्ण पक्ष में मृत्यु होने पर व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है.
भागवद् गीता की ही तरह गरुड़ पुराण में भी यही कहा गया है कि एकादशी के दिन मृत्यु को प्राप्त होने वाला व्यक्ति सीधे स्वर्ग जाता है और जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त होता है
यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.