सीता जी ने क्यों किया था ससुर राजा दशरथ का श्राद्ध, रेत मात्र से पिंडदान कर लिया आशीर्वाद
Pitru Paksha 2024: रामायण काल में जब पुत्र वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु हो गई थी, तब वनवास पर गए उनके बड़े बेटे भगवान राम, लक्ष्मण की अनुपस्थिति में बहू सीता ने यह पिंडदान की रस्म निभाई थी.
Pitru Paksha 2024: पितृपक्ष के दौरान पिंड दान करने गया जी में और अनेकों दूसरी जगह पर जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि मरे हुए व्यक्ति का पिंडदान करने से उसकी आत्मा को शांति मिलती है. यदि सच्चे मन से पितरों की सद्गति की कामना पितृपक्ष में की जाए तो पितृदेवता उससे भी संतुष्ट हो जाते हैं. जैसा कि वायु पुराण में उल्लेखित है कि सीता जी ने श्रद्धापूर्वक बिना किसी सामग्री का प्रयोग कर मात्र रेत द्वारा दशरथ जी का पिण्डदान कर उनका आशीर्वाद लिया.
वाल्मीकि रामायण में प्रसंग
वाल्मीकि रामायण में एक प्रसंग आता है कि वनवास काल में पितृपक्ष के दौरान राम-लक्ष्मण और सीता पितृपक्ष के दौरान गया धाम पहुंचे थे. वहां श्राद्धकर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने राम-लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए, लेकिन दोपहर तक लौटे नहीं. दोपहर हो गई थी और पिंडदान का समय निकलता जा रहा था. सीता जी भी परेशान थीं.
दशरथ ने सीता जी से मांगा पिण्डदान
शास्त्रों के अनुसार सीता जी से दशरथ की आत्मा ने पिण्ड मांगा. अब सीता जी सोचने लगीं कि क्या किया जा. कुछ देर सोचने के बाद सीता जीन ने रेत का पिण्ड बनाया और गाय फल्गु नदी, केतकी के फूल, वट वृक्ष, कौआ को गवाह बनाकर श्रद्धापूर्वक दशरथ जी के निमित्त रेत का पिण्ड दान कर दिया. कुछ देर बाद राम-लक्ष्मण लौटे तो सीता ने बताया कि उन्होंने स्वयं पिंडदान कर दिया है. पर, बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता था, राम ने इसका प्रमाण मांगा.
सीता ने दिया शाप
सीता जी ने फल्गु नदी, गाय, केतकी के फूल, वट वृक्ष, कौआ को गवाही देने के लिए कहा तो सभी इससे मुकर गए. वट वृक्ष को छोड़कर सभी ने गवाही देने से मना कर दिया. बाकी सब से क्रोधित होकर सीताजी ने फल्गू नदी को श्राप दे दिया कि तुम सदा सूखी रहोगी जबकि गाय को मैला खाने का श्राप दिया, केतकी के फूल को पितृ पूजन में निषेध का शाप दिया. वटवृक्ष पर प्रसन्न होकर सीता जी ने उसे सदा दूसरों को छाया प्रदान करने व लंबी आयु का वरदान दिया. तब सीता ने दशरथ का ध्यान कर उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की. तब दशरथ ने सीता की प्रार्थना स्वीकारी और कहा कि सही समय पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया. इस पर राम आश्वस्त हुए. इस तरह दशरथ जी को मुक्ति मिल गई.
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