Utpanna Ekadashi Vrat Katha: उत्पन्ना एकादशी पर व्रत रखने से मिट जाएंगे सारे पाप, पूजा के बाद जरूर करें कथा का पाठ
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Utpanna Ekadashi Vrat Katha: उत्पन्ना एकादशी पर व्रत रखने से मिट जाएंगे सारे पाप, पूजा के बाद जरूर करें कथा का पाठ

Utpanna Ekadashi Vrat Katha: मार्गशीर्ष (अगहन) की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी  कहा जाता है, इसे पहली एकादशी माना गया है. उत्पन्ना एकादशी व्रत में पूजा के बाद कथा जरूर पढ़नी चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्ण फल प्राप्त होता है.  

Utpanna Ekadashi Vrat Katha: उत्पन्ना एकादशी पर व्रत रखने से मिट जाएंगे सारे पाप, पूजा के बाद जरूर करें कथा का पाठ

Utpanna Ekadashi Vrat Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास में दो बार एकादशी तिथि आती है. इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व माना गया है. मान्यता है कि इस व्रत से पिछले जन्म के पाप मिट जाते हैं और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. मार्गशीर्ष (अगहन) की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी  कहा जाता है, इसे पहली एकादशी माना गया है. इसलिए जो लोग इस  व्रत की शुरुआत करना चाहते हैं वो इस दिन से कर सकते हैं. उत्पन्ना एकादशी व्रत में पूजा के बाद कथा जरूर पढ़नी चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्ण फल प्राप्त होता है.  

इस साल कब है उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi 2023) 
इस साल उत्पन्ना एकादशी तिथि 8 दिसंबर 2023 को सुबह 5 बजकर 6 मिनट पर शुरू होगी जो 9 दिसंबर सुबह 6 बजकर 31 मिनट तक रहेगी. उदयातिथि के अनुसार उत्पन्ना एकादशी का व्रत 8 दिसंबर को रखा जाएगा. 

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा (Utpanna Ekadashi Vrat Katha) 
सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ. वह बड़ा बलवान और भयानक था. उसने इंद्र, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित कर दिया. इसके बाद इंद्र सहित सभी देवता भयभीत होकर भगवान शिव के पास पहुंचे और सारा वृत्तांत कहा. उन्होंने कहा मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्यु लोक में फिर रहे हैं. तब भगवान शिव ने कहा- हे देवताओं! आप भगवान विष्णु की शरण में जाओ. वे ही तुम्हारे दुखों को दूर कर सकते हैं. इसके बाद सभी देवता क्षीरसागर में पहुंचे. वहां भगवान को शयन करते देख हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे, 

कि हे देवताओं द्वारा स्तुति करने योग्य प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है, देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन! आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। दैत्यों से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं. आप इस संसार के कर्ता, माता-पिता, उत्पत्ति और पालनकर्ता और संहार करने वाले हैं. सबको शांति प्रदान करने वाले हैं. आकाश और पाताल भी आप ही हैं. सबके पितामह ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, अग्नि, सामग्री, होम, आहुति, मंत्र, तंत्र, जप, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता भी आप ही हैं, आप सर्वव्यापक हैं. आपके सिवा तीनों लोकों में चर तथा अचर कुछ भी नहीं है. हे भगवन्! दैत्यों ने हमको जीतकर स्वर्ग से भ्रष्ट कर दिया है और हम सब देवता इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे हैं, आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें. 

इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताअओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहाँ है? यह सब मुझसे कहो. भगवान के ऐसे वचन सुनकर इंद्र बोले- भगवन! प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था उसके महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ. उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है. उसी ने सब देवताओं को स्वर्ग से निकालकर वहां अपना अधिकार जमा लिया है. उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है. सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है. स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है, हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए.

यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा. तुम चंद्रावती नगरी जाओ. इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया. उस समय जब दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था. उसकी भयानक गर्जना सुनकर सभी देवता भय के मारे चारों दिशाओं में भागने लगे. जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े. भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से बींध डाला. बहुत-से दैत्य मारे गए, केवल मुर बचा रहा. वह भगवान के साथ युद्ध करता रहा. भगवान जो-जो तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता. उसका शरीर छिन्न‍-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा. दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ.

10 हजार साल तक चला युद्ध
10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा किंतु मुर नहीं हारा. थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए. वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए. यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था. भगवान विष्णु वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए. मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ. तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई. देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया. श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी. आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं. 

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