3 कारण: आखिर क्यों देना पड़ा त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस्तीफा?
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3 कारण: आखिर क्यों देना पड़ा त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस्तीफा?

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भले ही वजह न बताई हो, लेकिन सियासी गलियारों में कुछ वजहें प्रमुखता से चर्चा का विषय बनीं हुई हैं. आइए जानते हैं...

फाइल फोटो

देहरादून:  उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत चार साल पूरा करने  के ठीक पहले अपनी कुर्सी गंवा दी. मंगलवार शाम को उन्होंने राज्यपाल बेबी रानी मौर्या को अपना इस्तीफा सौंप दिया. जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने पद क्यों छोड़ा, तो इसके जवाब उन्होंने कहा कि कारण दिल्ली जाकर पता चलेगा. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भले ही वजह न बताई हो, लेकिन सियासी गलियारों में कुछ वजहें प्रमुखता से चर्चा का विषय बनीं हुई हैं. आइए जानते हैं...

1. गैरसैंण- उत्तराखंड में लंबे समय से गैरसैंण को राजधानी बनाए जाने की मांग चल रही थी. इस बीच त्रिवेंद्र सिंह ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित की और अपना बजट पेश किया. बजट के दौरान उन्होंने गैरसैंण को कमिश्नरेट बनाए जाने की घोषणा की. इसके बाद से मामला बिगड़ना शुरू हो गया. नई कमिश्नरी चमोली, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा और बागेश्वर जिलों को शामिल किया गया. माना जा रहा है कि यह फैसला त्रिवेंद्र सिंह के जाने की बड़ी वजह बनीं. नई कमिश्नरी में अल्मोड़ा और बागेश्वर को कुमाऊं से काट कर मिलाया गया. वहीं, गढ़वाल से  चमोली और रुद्रप्रयाग को मिलाया गया. इस फैसले से  कुमाऊं  और गढ़वाल के नेता नाराज हो गए. खासकर कुमाऊं के, क्योंकि अल्मोढ़ा को सांस्कृतिक राजधानी और कुमाऊं का दिल भी कहा जाता है. वहीं, एक बात ये भी है कि गैरसैंण अभी तक सिर्फ एक तहसील थी, जिसे जिला न बनाकर सीधे कमिश्नरेट बना दिया गया. 

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2. देवस्थानम् बोर्ड- सीएम रहते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जो बड़े फैसले लिए, उनमें देवस्थानम् बोर्ड भी एक है. देवभूमि में स्थित मठों को उन्होंने बोर्ड के अंदर लाने का फैसला लिया. जिसका भी काफी विरोध हुआ. साधु-संतों ने प्रमुखता से अपना विरोध दर्ज कराया. माना जाता है कि इस फैसले को लेकर भाजपा के अंदर भी भारी नाराजगी थी. 

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3. छवि- माना जाता है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की छवि भी उनके इस्तीफे की मुख्य वजहों में से एक है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई विधायकों ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिखकर त्रिवेंद्र सिंह की शिकायतें कीं. कुछ नेताओं का मनाना था कि वह आसनी से उपलब्ध नहीं थे. ऐसे में अगले साल जब राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, तो भाजपा अपने नेताओं की नाराजगी से बचना चाहते थे. अंत में मुख्यमंत्री के चहरे को बदलने का फैसला लिया गया. 

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