कल्याण सिंह का जन्म अलीगढ़ के अतरौली में हुआ था. 5 जनवरी 1932 को जन्मे कल्याण सिंह ने बीए तक पढ़ाई की और फिर एक कद्दावर नेता बनने की ओर कदम बढ़ाया.
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का लंबी बीमारी के बाद आज निधन हो गया. कल्याण सिंह का जन्म अलीगढ़ के अतरौली में हुआ था. 5 जनवरी 1932 को जन्मे कल्याण सिंह ने बीए तक पढ़ाई की और फिर एक कद्दावर नेता बनने की ओर कदम बढ़ाया. उन्होंने भारतीय जनसंघ जॉइन किया. 1951 में ही जनसंघ की शुरुआत हो गई और 1952 के चुनाव में पार्टी को 3 सीटें मिलीं. इसके बाद 1962 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ को 14 सीटें मिलीं. यानी 5 साल के अंदर ही जनसंघ ने अच्छी ग्रोथ कर ली थी.
हरीशचंद्र श्रीवास्तव ही कल्याण सिंह को ढूंढकर लाए थे
लेकिन अगर उत्तर प्रदेश में मजबूती चाहिए तो जाहिर था कि जनसंघ के पास पिछड़े वर्ग के कुछ अच्छे लोग हों. अब ऐसे चेहरे ढूंढने की जिम्मेदारी मिली हरीशचंद्र श्रीवास्तव को. वे उस समय के कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे. जब उन्होंने पिछड़े वर्ग के नेता की खोज शुरू की तो मालूम हुआ कि अलीगढ़ में एक लोध लड़का है. बड़ा तेज-तर्रार है और नाम है कल्याण सिंह.
लोधी जाति की थी अच्छी आबादी
अलीगढ़ से गोरखपुर तक लोधी जाति की अच्छी-खासी आबादी थी. माना जाता था कि यादव और कुर्मी के बाद लोधी ही आते हैं. ऐसे में कल्याण सिंह को अपनी पर्सानिलिटी के साथ लोधी होने का भी फायदा मिल गया. इसके बाद कल्याण सिंह को कहा गया कि सक्रियता बढ़ाएं और पार्टी को जिताएं, जिसके बाद वह काम पर लग गए. 1962 में पहली बार उन्होंने अतरौली सीट से चुनाव लड़ा. उस समय वह महज 30 साल के थे.
अतरौली से लड़ा पहला चुनाव
हालांकि, उन्हें जीत हासिल नहीं हुई. सोशलिस्ट पार्टी के बाबू सिंह ने उन्हें हरा दिया. लेकिन कल्याण सिंह हार मानने वालों में से नहीं थे. 5 साल उन्होंने खूब काम किया, पसीना बहाया और फिर चुनाव में उतरे. इस बार कल्याण सिंह जीत गए और बाबू सिंह को जितने वोट मिले थे, उससे भी करीब 5 हज़ार वोट ज़्यादा कल्याण सिंह को मिले. करीब 26 हज़ार वोट. कांग्रेस प्रत्याशी को हराना उस समय बड़ी जीत थी.
भाजपा के टिकट से लगातार जीते कल्याण सिंह
इसके बाद 1969, 1974 और 1977 के चुनाव में भी उन्होंने अतरौली में अपना परचम लहराया. 4 बार लगातार विधायक बने. पहली 3 बार जनसंघ के टिकट पर, चौथी बार जनता पार्टी के टिकट पर. हालांकि, 1980 के विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह की जीत का सिलसिला थम गया. कांग्रेस के अनवर खान के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद नई-नवेली भाजपा के टिकट पर 1985 के विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह ने जोरदार वापसी की. तब से लेकर 2004 के विधानसभा चुनाव तक कल्याण सिंह अतरौली से लगातार विधायक बनते रहे.
दो बार बने यूपी के मुख्यमंत्री
साल 1991 में यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कल्याण सिंह को पिछड़ों का चेहरा बनाकर राजनीति की प्रयोगशाला में उतार दिया. कल्याण सिंह की छवि पिछड़ों के नेता के साथ-साथ एक फायर ब्रांड हिंदू नेता के तौर पर मजबूत हुई. कल्याण सिंह 2 बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे. वह भाजपा के यूपी में पहले सीएम भी थे. पहले कार्यकाल में 24 जून 1991 से 6 दिसम्बर 1992 तक और दूसरी बार 21 सितंबर 1997 से 12 नवंबर 1999 तक मुख्यमंत्री रहे.
'हिंदू हृदय सम्राट’ थे कल्याण सिंह
‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहलाने वाले कल्याण सिंह की गिनती अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की नींव प्रशस्त करने वालों में होती है. 6 दिसंबर, 1992 को जब बाबरी विध्वंस हुआ तो उस समय कल्याण सिंह सूबे के मुख्यमंत्री थे. इस घटना के बाद उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी, लेकिन कल्याण सिंह ताउम्र कारसेवकों पर गोली नहीं चलवाने के अपने फैसले को सही मानते हुए उस पर अडिग रहे. वह उत्तर प्रदेश की सियासत का केंद्र रह चुके हैं और कई नेता उनका सानिध्य पाकर पनपे हैं. उनका पूरा राजनीतिक करियर कई उतार-चढ़ाव का साक्षी रहा.
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