बिना दांतों वाले नवाब के लिए बनाये गए थे कबाब, आज `टुंडे कबाबी` हैं लखनऊ की शान
इस स्वाद का ही असर है कि शाहरुख खान, अनुपम खेर, आशा भौंसले जैसे और सुरेश रैना जैसे बड़े बड़े नाम टुंडे कबाब खाने यहां आ चुके हैं.
लखनऊ: नॉनवेज के शौकीन लोगों के लिए लखनऊ के टुंडे कबाब खाना किसी मन मांगी मुराद पूरा होने से कम नहीं है. 110 साल से ज्यादा पुराना लखनऊ के टुंडे कबाब के स्वाद के आगे देश भर के बड़े- बड़े खानसामे और फाइव स्टार होटल्स के शेफ भी फीके पड़ जाते हैं. देश- विदेश से यहां नामी- गिरामी हस्तियां मुगलिया जायके की पहचान लखनऊ के टुंडे कबाबी का स्वाद चखने के लिए आती हैं.
उत्तर प्रदेश- उत्तराखंड आपके लिए हर रोज यूपी के अलग-अलग शहरों के लोकल फूड के बारे में बताएगा जो वहां पर काफी फेमस हैं. जब कभी भी आप उन जगहों पर जाएं तो उसका भरपूर लुत्फ उठाएं. हम आपको बता रहे हैं ऐसे लोकल फूड के बारे में जो यहां पर बाहर से आने वाला जरूर खाना चाहेगा. बात करते हैं लखनऊ के कबाब की....
पुराने शहर की गलियों में कबाब की दुकानें
लखनऊ की टुंडे कबाबी दुकान अपने स्वादिष्ट गलौटी कबाब, कोरमा और बिरयानी के लिए सालों से फेमस है. यहां के कबाब इतने सॉफ्ट होते हैं कि मुंह में जाते ही पिघल जाते हैं. यहां के स्वादिष्ट खाने का राज यही है कि यहां की महिलाएं खाना बनाने के लिए घर में ही अलग से मसाले तैयार करती हैं. टुंडे कबाब की कई दुकानें आपको लखनऊ के पुराने इलाके की गलियों में देखने को मिल जाएगी.
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बिना दातों वाले नवाबों के लिए बने कबाब
बताया जाता है कि ये कबाब बिना दांतों वाले नवाब के लिए बनाए गये थे. इसके लिए गोश्त को बारीक पीसकर और उसमें पपीते मिलाकर ऐसा कबाब बनाया गया जो मुंह में डालते ही घुल जाए और पेट दुरुस्त रखने और स्वाद के लिए उसमें चुन-चुन कर मसाले मिलाए गए. इसके बाद हाजी परिवार भोपाल से लखनऊ आ गया और अकबरी गेट के पास गली में छोटी सी दुकान शुरू कर दी गई. इन कबाबों की खासियत है कि इनमें 120 मसाले डाले जाते हैं.
देश भर में कई आउटलेट्स
टुंडे कबाबी लखनऊ का एक स्ट्रीट फूड ज्वाइंट है जहां एक साइड में बाहर से ही लोग कबाब पैक करा कर ले जा सकते हैं और दूसरी तरफ से अंदर रेस्टोरेंट में बैठकर खा भी सकते हैं. वैसे तो टुंडे कबाब के देश भर में कई आउटलेट्स हैं लेकिन असली मजा तो ऑरिजिनल में ही है. यहां पर आपको कई वैराइटी के कबाब मिलेंगे, जिनमें से गलौटी कबाब का स्वाद बेहद जबर्दस्त है.अमीनाबाद के अलावा कपूरगंज और सहारागंज में भी टुंडे कबाबी की ब्रांचेज है.
1905 से शुरू हुआ सफर
जब 1905 में पहली बार यहां अकबरी गेट में एक छोटी सी दुकान खोली गई थी हालांकि टुंडे कबाब का किस्सा तो इससे भी एक सदी पुराना है. हाजी जी के इन कबाबों की शोहरत इतनी तेजी से फैली की पूरे शहर भर के लोग यहां कबाबों का स्वाद लेने आने लगे.
टुंडे नाम पड़ने के पीछे की दिलचस्प कहानी
इन कबाबों के टुंडे नाम पड़ने के पीछे भी दिलचस्प किस्सा बताया जाता है. असल में टुंडे उसे कहा जाता है जिसका हाथ न हो, रईस अहमद के वालिद हाजी मुराद अली पतंग उड़ाने के बहुत शौकीन थे. एक बार पतंग के चक्कर में उनका हाथ टूट गया. बाद में उनका हाथ काटना पड़ा. पतंग का शौक तो चला ही गया था तो मुराद अली पिता के साथ दुकान पर ही बैठने लगे. टुंडे होने की वजह से जो उनके यहां जो कबाब खाने आते वो टुंडे के कबाब बोलने लगे और यहीं से नाम पड़ गया टुंडे कबाब.
हाजी परिवार ने किसी को नहीं बताया मसालों का राज
खास बात ये है कि दुकान चलाने वाले रईस अहमद यानि हाजी जी के परिवार के अलावा और कोई दूसरा शख्स इसे बनाने की खास विधि और इसमें मिलाए जाने वाले मसालों के बारे में नहीं जानता. हाजी परिवार ने इस सीक्रेट को आज तक किसी को भी नहीं बताया यहां तक की अपने परिवार की बेटियों को भी नहीं. यही कारण है कि जो कबाब का जो स्वाद यहां मिलता है वो पूरे देश में और कहीं नहीं मिलता.
बंद कमरे में कूट-छानकर तैयार होता है मसाला
ऐसा कहा जाता है कोई इसकी रेसीपी न जान सके इसलिए उन्हें अलग-अलग दुकानों से खरीदा जाता है और फिर घर में ही एक बंद कमरे में पुरुष सदस्य उन्हें कूट छानकर तैयार करते हैं. इन मसालों में से कुछ तो ईरान और दूसरे देशों से भी मंगाए जाते हैं.
बॉलीवुड के सितारे भी हैं कबाब के फैन
खास बात ये है कि इन टुंडे कबाबों की प्रसिद्धी बेशक पूरी देश दुनिया में हो लेकिन हाजी परिवार ने इनकी कीमतें आज भी ऐसी रखी हैं कि आम या खास किसी की जेब पर ज्यादा असर नहीं पड़ता. इस स्वाद का ही असर है कि शाहरुख खान, अनुपम खेर, आशा भौंसले जैसे और सुरेश रैना जैसे बड़े बड़े नाम टुंडे कबाब खाने यहां आ चुके हैं.
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