स्टडी में यह पाया गया है कि Ace-2 नाम के जीन ने कोरोना के प्रति प्रोटेक्टिव कवर दिया है. यह साउथ एशिया में 60% और यूरोप में 20% पाया गया है. इस स्टडी का रिजल्ट यह निकला कि पहला जीन जो निएंडरथल से मिला है उसका असर बांग्लादेश या भारत में नहीं है.
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नई दिल्ली: कुछ समय पहले जर्मनी में एक रिसर्च में यह बात सामने आई थी कि भारतीयों में निएंडरथल मानव के जीन्स हैं. रिसर्च में कहा गया था कि यही वजह है कि देश में कोरोना से ज्यादा तबाही देखने को मिल रही है. लेकिन इंडियन साइंटिस्ट ने इस बात को झूठा साबित कर दिया है. बताया जा रहा है कि भारत समेत साउथ एशिया में निएंडरथल के DNA सेगमेंट कम ही हैं. ये सेगमेंट यूरोप के लोगों में ज्यादा पाए जाते हैं. भारत और साउथ एशिया के कई और देशों में लोगों की बॉडी में Ace-2 नाम का जीन है जो कोरोना वायरस से बचाव करता है.
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BHU के वैज्ञानिक भी थे शोध में शामिल
भारत के वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है कि जर्मनी में हुई यह रिसर्च निराधार है. BHU के IMS, CCMB हैदराबाद, CSIR और बांग्लादेश समते कई देशों के साइंटिस्ट ने मिलकर यह रिसर्च की है. इंटरनेशनल जर्नल में भी यह रिसर्च पब्लिश की जा चुकी है. इसमें साइंटिस्ट ने दावा किया है कि निएंडरथल मानव के DNA का प्रभाव साउथ एशिया के लोगों में काफी कम रहा है. इस वजह से यहां का मृत्यु दर यूरोपीय देशों के मुकाबले कम है. वहीं, यूरोप में निएंडरथल के DNA सेगमेंट साउथ एशिया से ज्यादा पाए गए हैं. यही वजह थी कि यूरोपीय देशों में कोरोना का ज्यादा प्रभाव पड़ा.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, BHU के साइंटिस्ट ने जानकारी दी है कि आदिमानव के साथ जब इंसान इंटरमिक्स हुए तो उस दौरान आदिमानव का DNA इंसानों के अंदर भी आ गया. यह वही DNA है जो कोरोना से संक्रमित करने में मदद कर रहा है. साउथ एशिया में यह 50% और यूरोप में 16% पाया गया था. यानी की साउथ एशियंस पर इसका ज्यादा एफेक्ट था. हालांकि, जमीनी हकीकत यह है कि यूरोप देशों के मुकाबले यहां इंफेक्शन की प्रति 10 लाख की आबादी और मृत्यु दर दोनों कम थे.
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साउथ एशिया में नहीं है निएंडरथल के जीन का असर
स्टडी में यह पाया गया है कि Ace-2 नाम के जीन ने कोरोना के प्रति प्रोटेक्टिव कवर दिया है. यह साउथ एशिया में 60% और यूरोप में 20% पाया गया है. इस स्टडी का रिजल्ट यह निकला कि पहला जीन जो निएंडरथल से मिला है उसका असर बांग्लादेश या भारत में नहीं है.
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