सै. हुसैन अख्तर/रायबरेली: उत्तर प्रदेश सरकार के एक शासनादेश से कोरोनाकाल में अपनों को गंवाने वालों की ज़िंदगी बदल गई है. पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान संक्रमित होकर जान गंवाने वालों के परिजन स्तब्ध थे. उन्हें बताया गया कि चुनाव ड्यूटी के दौरान मौत की परिभाषा में नहीं आने से मुआवज़ा नहीं मिलेगा. सरकार ने एक शासनादेश के ज़रिए इस परिभाषा को ही बदल दिया है.


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आश्रितों को मिलेगा 30 लाख का मुआवजा
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 15 अप्रैल को शुरू हुए और 2 मई को मतगणना हुई थी. इस बीच कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी. चुनावी ड्यूटी करने वाले कई लोग संक्रमित होकर मरने लगे थे. उन्हीं में से शिवगढ़ के रहने वाले शिक्षा मित्र व्यास चंद्र पाठक भी थे. चुनावी ड्यूटी के बाद उनकी तबीयत खराब हुई. जांच में कोरोना पॉज़िटिव मिले और अंत में इलाज के दौरान मौत हो गई. व्यास चंद्र का परिवार इस सदमे से उबर भी नहीं पाया कि उसे एक और झटका तब लगा जब परिवार को कोई भी मुआवज़ा न मिलने की जानकारी हुई. हालांकि, अब तीस लाख मुआवज़ा पाने वालों की लिस्ट में शामिल हैं.


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मौत का समय बढ़ाकर एक महीना किया गया
चुनावी ड्यूटी के कारण संक्रमित होकर जान गंवाने वालों के परिजन मुआवज़ा पाने के हकदार हो सकें, सरकार के एक शासनादेश से यह मुमकिन हो सका है. दरअसल, चुनाव आयोग की गाइडलाइन के मुताबिक चुनाव ड्यूटी कार्मिक किसी भी कारण से ड्यूटी स्थल से लेकर ड्यूटी के बाद घर पहुंचने तक अगर उनकी मृत्यु होती है तो चुनाव आयोग उसे 30 लाख मुआवज़ा देता है. कोरोना के मामले में संक्रमण के तुरंत बाद मौत न होकर कुछ समय बाद मौत की संभावना होती है, ऐसे में चुनाव के दौरान संक्रमित होकर मृत्यु के बावजूद तकनीकि रूप से वह परिभाषा से बाहर थे. राज्य सरकार ने पिछले दिनों एक शासनादेश कर कोरोना के मामले में घर पहुंचने तक के स्थान पर एक महीने के भीतर हुई मौत को जोड़ दिया. चुनाव आयोग को इस बदली परिभाषा के साथ पात्र परिजनों की लिस्ट भी सौंपी है, जिसमें 47 लोग रायबरेली के हैं. इन पीड़ित परिजनों को जल्द ही चुनाव आयोग खाते में रकम ट्रांसफर करेगा.


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बन सकेगा बच्चों का भविष्य
परिजनों के लिए यह कठिन समय था. हालांकि, अब जबकि आर्थिक सहायता मिल सकेगी तो माना जा सकता है कि कमाऊ सदस्य के न रहने पर भी बच्चों का भविष्य बन सकेगा.


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