बिजनौर: बिजनौर का नूपपुर विधानसभा सीट यहां के नगीना लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पड़ता है. वर्ष 1964 में परिसीमन (Delimitation Commission 1964) के बाद यह असेंबली सीट अस्तित्व में आई और पहला चुनाव 1967 में हुआ. फिर 1976 के परिसीमन में इस सीट को समाप्त कर दिया गया और स्योहारा विधानसभा सीट का गठन हुआ. इसके बाद 2007 तक स्योहारा विधानसभा सीट अस्तित्व में रही. वर्ष 2008 में एक बार फिर परिसीमन हुआ और स्योहारा विधानसभा सीट को भंग कर नूरपुर ​असेंबली सीट को वापस गठित कर दिया गया. 


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इसके बाद 2012 में नूरपुर निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को पहली बार विधानसभा चुनाव में मतदान करने का मौका मिला. नूरपुर विधानसभा क्षेत्र में इंटर और डिग्री कॉलेज हैं, लेकिन गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए नाकाफी हैं. स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी कुछ खास विकसित नहीं है यह क्षेत्र. छोटी-मोटी परेशानियों के लिए डॉक्टर मिल जाते हैं, लेकिन​​ किसी इमरजेंसी या गंभीर बीमारी के इलाज के लिए लोगों को जिला मुख्यालय, मेरठ या मुरादाबाद का रुख करना पड़ता है. 


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नूरपुर असेंबली सीट पर धार्मिक-जातिगत समीकरण
भारतीय निर्वाचन आयोग के आंकड़ों की मानें तो नूरपुर विधानसभा सीट पर कुल 2,69,545 मतदाता हैं. इनमें 1,46,996 पुरुष और 1,22,546 महिला मतदाता हैं. यह सीट मुस्लिम बहुल है. यहां पर 1 लाख 20 हजार मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि 40 हजार दलित मतदाता हैं, इसके अलावा करीब 60 हजार राजपूत वोटर्स हैं. 


नूरपुर सीट का राजनीतिक इतिहास, 2017 के नतीजे
नूरपुर सीट पर 1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के. सिंह जीते, 1969 के चुनाव में भारतीय क्रांति दल के शिव नाथ सिंह विधायक बने. इसके बाद नूरपुर हो गया स्योहरा विधानसभा सीट. स्योहारा सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है. 1991 में इस सीट से बीजेपी के महावीर सिंह विधायक चुने गए. 1993 में हुए मध्यावधि चुनाव में महावीर सिंह फिर से विधायक बने. 1997 में बीजेपी के वेदप्रकाश ने इस सीट पर कब्जा जमा लिया. 


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2002 के चुनाव में यह सीट बसपा की झोली में चली गई, कुतुबद्दीन अंसारी चुनाव जीतकर विधायक बने. इसके बाद 2007 में बसपा ने ठाकुर यशपाल सिंह को उतारा, वह चुनाव जीते और मायावती सरकार में मंत्री बने. अब स्योहरा एक बार फिर नूरपुर विधानसभा सीट हुआ. इसके बाद 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लोकेंद्र सिंह विधायक बने. उन्होंने 2012 में बसपा उम्मीदवार मोहम्मद उस्मान को 5000 से थोड़े अधिक मतों से हराया. लोकेंद्र सिंह को 47,566 मत मिले जबकि मो. उस्मान को 42,093 वोट. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार लोकेंद्र सिंह ने सपा के नईमुल हसन को 10 हजार वोटों से हराया. लोकेंद्र को 79,172 तो नईमुल को 66,436 वोट मिले.


लेकिन 21 फरवरी 2018 को लखनऊ जाते समय सड़क दुर्घटना में भाजपा विधायक लोकेंद्र सिंह की मृत्यु हो गई. इस सीट पर 28 मई 2018 को उपचुनाव हुआ और 31 मई को मतगणना. भाजपा ने अपने दिवंगत विधायक की पत्नी अवनी सिंह को टिकट दिया. लेकिन उन्हें सपा उम्मीदवार नईमुल हसन से हार का सामना करना पड़ा. अवनी सिंह को अपने पति से 10 हजार वोट ज्यादा मिले थे, लेकिन सपा प्रत्याशी नईमुल के खाते में बसपा के वोट ट्रांसफर हो गए और वह चुनाव जीतने में सफल रहे. अवनी को 89,213 और नईमुल को 94,875 मत​ मिले. वह 6211 मतों से विजयी रहे.


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वर्तमान विधायक नईमुल हसन के बारे में
नईमुल छात्र राजनीति से उभरे नेता हैं. वह 2000 में दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने उन्हें नूरपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया, फिर ऐन वक्त पर टिकट काट दिया. वह चुनाव नहीं लड़े लेकिन सपा सरकार में उन्हें मंत्री पद मिला. नईमुल युवा हैं और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के करीबी हैं. अखिलेश सरकार के दौरान उनकी पत्नी स्योहारा नगरपालिका की अध्यक्ष रहीं. साल 2017 के चुनाव में नईमुल को नूरपुर से सपा ने टिकट दिया, लेकिन उन्हें भाजपा के लोकेंद्र सिंह से हार मिली. नईमुल ने इस हार का बदला लोकेंद्र सिंह की असामयिक मृत्यु के उपरांत नूरपुर सीट पर हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी अवनी सिंह को हराकर लिया. वर्तमान में वह इस सीट से विधायक हैं. 


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