'मौत की सुरंग' में कैसे कटे दिन-रात, मजदूरों ने सुनाई पानी से लेकर टॉयलेट तक की पूरी कहानी
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'मौत की सुरंग' में कैसे कटे दिन-रात, मजदूरों ने सुनाई पानी से लेकर टॉयलेट तक की पूरी कहानी

Uttarakhand Tunnel Collapse: सिलक्यारा टनल में फंसे मजदूरों को निकाला जा चुका है. लोगों जानना चाह रहे हैं कि इन 16 दिनों तक मजदूरों कैसे सुरंग में रहे. 

Uttarakhand Tunnel Collapse

Uttarakhand Tunnel Collapse: 12 नवंबर को उत्तराखंड के उत्तराकाशी जिले के सिलक्यारा में एक सुरंग धंस गई और मलबा गिरने से बाहर आने का रास्ता बंद हो गया. इस हादसे में 41 मजदूर सुरंग में फंस गए थे, जो 17 दिनों तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद मंगलवार (28 नवंबर) को बाहर आए. फिलहाल सभी श्रमिक स्वस्थ्य हैं और ऋषिकेश के AIIMS में भर्ती हैं. यहां उनका जांच-परीक्षण किया जाएगा. इस पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान लोगों के मन में कई सवाल उठ रहे थे, जैसे- 16 दिनों तक उनका रूटीन क्या था? वो खाना क्या खाते थे? वो शौच के लिए कहां जाते थे? कैसे और कहां नहाते थे? और एक सुरंग में समय कैसे काटते थे? तो आइये जानते हैं कि सिलक्यारा टनल में फंसे हुए मजदूरों की पूरी दिनचर्या कैसी थी. 

"अंधेरा नहीं डिगा सका हौसला"
मशहूर शायर शकील आजमी की लिखीं लाइनें 'हार हो जाती है जब मान लिया जाता है, जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है'. सुरंग में फंसे मजदूरों पर बिल्कुल ठीक बैठती हैं. 17 दिनों तक सुरंग में फंसे रहने के बावजूद किसी ने हौसला नहीं छोड़ा और जीने की आस बनाए रखी, जिसका नतीजा आज हम सबके सामने हैं. रेस्क्यू किए गए श्रमिक विश्वजीत कुमार वर्मा ने बताया कि जब मलबा गिरा तो हमें पता चल गया कि हम फंस गए हैं. सभी हमें निकालने के प्रयास में लगे रहे. ऑक्सीजन से लेकर खाने-पीने की सारी व्यवस्था की गई. विश्वजीत ने कहा कि पहले 10-15 घंटे हमें दिक्कत का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में पाइप द्वारा खाना उपलब्ध कराया गया और माइक लगाया गया. हमारी परिवार से बात होने लगी थी, जिससे चलते हौसला नहीं डिगा. 

झारखंड के चमरा ने बताया कैसे काटे दिन 
सुरंग में फंसे 41 लोगों में 15 मजदूर झारखंड के रहने वाले थे. झारखंड के ही खूंटी निवासी चमरा ओरांव ने बताया कि 12 नवंबर को जब मलबा गिरा तो हम समझ गए थे कि लंबे समय तक यहां से नहीं निकल पाएंगे. हमारे पास खाने-पीने को भी कुछ नहीं था. ना ही फोन में नेटवर्क था कि हम किसी से बात कर सकें. पहले दिन हम सभी डरे थे. सब भगवान से प्रार्थना कर रहे थे. इस दौरान हमने भगवान पर भरोसा बनाए रखा और उम्मीद नहीं छोड़ी. 13 नवंबर को हमें खाना मिला. यह देखकर हमें यकीन हो गया कि कोई न कोई साइट पर आ चुका है. अब हमें भरोसा हो गया था कि अब हम बच जाएंगे. 

ओरांव ने कहा कि 16 दिनों का लंबा समय काटना बेहद मुश्किल था. हमारे पास फोन था, लेकिन नेटवर्क नहीं था. ऐसे में हमने टाइम बिताने के लिए फोन पर लूडो या कागज से बनाए गए प्ले कार्ड खेला करते थे. वहीं सराकर द्वारा टनल में भेजे जा रहे भोजन के जरिए जिंदगी काट रहे थे. वहीं, नहाने और शौच के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि नहाने के लिए पानी का नेचुरल स्रोत था. शौच के लिए हमने एक जगह बना रखी थी. 

मनोबल ऊंचा रखने के लिए योग किया
बिहार के एक श्रमिक सबा अहमद ने बताया कि कई दिनों तक सुरंग में फंसे होने के बाद भी उन्हें कभी कोई डर या घबराहट महसूस नहीं हुई. उन्होंने कहा, ‘‘हम भाइयों की तरह थे, हम एक साथ थे. रात के खाने के बाद सुरंग में टहलते थे. अहमद ने बताया कि जिस सुरंग में फंसे थे, उसके दो किलोमीटर से अधिक के हिस्से में सुबह की सैर करते थे और योग का अभ्यास भी करते थे. 

मजदूरों को बिना पहिये वाले स्ट्रेचर के जरिये निकाला गया बाहर 
सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूर मंगलवार की रात जैसे ही बाहर निकले, देशवासियों ने राहत की सांस ली. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी के अनुसार 60 मीटर के बचाव शॉफ्ट में स्टील के पाइप से इन मजदूरों को बिना पहिये वाले स्ट्रेचर के जरिये बाहर निकाला गया. श्रमिकों को एक-एक करके 800 मिमी के उन पाइपों से बनाए गए रास्ते से बाहर निकाला गया, जिन्हें अवरूद्ध सुरंग में फैले 60 मीटर मलबे में ड्रिल करके अंदर डाला गया था. राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के जवानों द्वारा मजदूरों को बाहर निकाले जाने के दौरान धामी और वी के सिंह भी मौजूद थे. 

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