Bahraich Latest News in Hindi: उत्तर प्रदेश का हर जिला अपने आप में एक अनोखा और गौरवशाली इतिहास अपने अंदर समाए हुए है. भगवान ब्रह्मा द्वारा बसाई गई इस जगह को ऋषियों और साधुओं के लिए पूजा स्थल के रूप में विकसित किया गया था. इसलिए बहराइच को गंधर्व वन का हिस्सा माना जाता है. आज भी जिले का पूर्वोत्तर इलाका कई सौ वर्ग किलोमीटर  क्षेत्र तक वन से ढका हुआ है. अपने इन्हीं घने जंगलों के कारण पहले इसका नाम ब्रह्माच पड़ा था. आपको बता दें कि बहराइच की पावन धरती पर महाराजा जनक के गुरु ऋषि अष्टावक्र भी यहां पर रहते थे. 


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भर राजवंश का शास
इतिहासकारों के अनुसार यहां पर भर राजवंश राज करता था. इस कारण इस धरती का नाम भारिच पड़ गया था. जो समय के साथ साथ बहराइच पड़ गया. भारत में आने वाले फेमस चीनी मेहमान ह्वेनसांग और फाह्यान के साथ अरब से भारत आने वाले पहले मेहमान इब्न-बतूता को भी इस जगह ने अपनी सुंदरता के मोह में फंसा लिया था. 


सोलह महाजनपदों में से एक
प्राचील काल के भारत में मौजूद 16 महाजनपदों में से एक महाजनपद कोसल महाजनपद का हिस्सा था. उस समय कोसल महाजनपद की राजधानी श्रावस्ती हुआ करती थी. ज्ञात हो कि श्रावस्ती बहराइच का ही एक विस्तार है. इसके साथ ही बहराइच में ही हजरत गाज़ी सय्यद सलार मसूद गाज़ी और सुहेल देव के बीच भीषण युद्ध हुआ था. 


1857 क्रांति के दौरान
देश के पहले स्वतंत्रकता संग्राम के दौरान बहराइच ने अपनी भूमिका बड़ी बखूबी से निभाई थी. जब 1856 में जनरल आउटम ने अवध पर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन घोषित किया था तो बहराइच एक विभाजन का केंद्र था. इसको संभालने के लिए कंपनी की तरफ से विंगफील्ड को आयुक्त बनाया गया था. 


स्वतंत्रता संग्राम में योगदान 
कांग्रेस पार्टी की स्थापना के बाद 1920 में बहराइच में भी स्वतंत्रता संग्राम की आग सुलगी थी. जब 1926 में श्रीमति सरोजनी नायडू ने बहराइच का दौरा किया था. तो वहां के सभी कर्मचारियों ने स्वयं शासन की मांग करते हुए अंगेजी शासन का विरोध किया था. 


भौगोलिक स्थिति
बहराइच 1991 में बहराइच को एक जिले के रूप में मान्यता मिली थी. बहराइच के उत्तर में नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा है. तो वहीं इसके दक्षिण में बाराबंकी और सीतापुर जिले, पश्चिम में खीरी और गोंडा जिला और पूर्वी हिस्से में श्रावस्ती जिला है. 


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