गजनवी से औरंगजेब तक मथुरा में 3 बार तोड़ा गया श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर, जानें 1600 सालों का इतिहास

Sri Krishna Janmabhoomi Shahi Idgah Masjid Mathura: इन दिनों मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह मस्जिद मामला चर्चा में है. इस जगह पर मालिकाना हक के लिए दो पक्षों में कोर्ट में विवाद भी चल रहा है. जिस जगह पर श्री कृष्ण जन्मस्थान है, वहां पांच हजार साल पहले मल्‍लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव में राजा कंस का कारागार हुआ करता था. इसी कारागार में भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था. मंदिर को पूरे इतिहास में कई बार नष्ट किया गया और कई बार बनाया गया. ऐसे में आइये श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बने मंदिर का इतिहास जानते हैं.

Thu, 01 Aug 2024-5:01 pm,
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श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ने बनवाया था पहला मंदिर

लोकमान्यता के अनुसार, कारागार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता का एक मंदिर बनवाया था. यहां से कई शिलालेख भी मिले थे, जिन पर ब्राह्मी-लिपि में लिखा हुआ है. जिसके जरिए पता चलता है कि शोडास के राज्य काल में यहां वसु नामक व्यक्ति था. जिसने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, उसका तोरण-द्वार और वेदिका बनवाया था. 

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विक्रमादित्य के शासन काल में बना दूसरी बार मंदिर

इतिहासकार मानते हैं कि सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में 400 ई में इसी जगह दूसरे मंदिर का निर्माण कराया गया, जो बेहद भव्य था. तब यहां हिंदू धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी विकास हुआ. इस दौरान यहां आसपास बौद्ध और जैन के भी विहार और मंदिर बने. यहां मिले अवशेषों से पता चलता है कि इन श्रीकृष्ण जन्मभूमि उस समय न केवल हिंदू बल्कि बौद्ध और जैनियों के भी आस्था का केंद्र था. इतिहासकारों के अनुसार, मंदिर पर महमूद गजनवी ने सन 1017 ई. में आक्रमण किया था. गजनवी ने मंदिर को लूटने के बाद तोड़ दिया था. 

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विजयपाल देव के शासनकाल में तीसरी बार बना, सिकंदर लोदी ने नष्ट किया

तीसरी बार यह मंदिर 1150 ई. में राजा विजयपाल देव के शासनकाल के दौरान बना. इसका जिक्र खुदाई में प्राप्त संस्कृत में लिखे शिलालेख में मिलता है. इसका निर्माण जज्ज नाम के एक शख्स ने करवाया था. जिसे 16वीं शताब्दी के शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर दिया गया था. 

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चौथी बार ओरछा के राजा के राजा ने मंदिर बनवाया, औरंगजेब ने नष्ट किया

इसके करीब 125 साल बाद जब जहांगीर का शासनकाल था, तब ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया. कहा जाता है कि इस मंदिर की भव्यता देखकर औरंगजेब हैरान रह गया था और चिढ़ में आकर सन 1669 में नष्ट करवा दिया था. 

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औरंगजेब ने मंदिर के एक भाग पर बनवाया ईदगाह

तभी औरंगजब ने इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण कराया था. यहां मिले अवशेषों से पता चलता है कि मंदि‍र के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा मौजूद था. मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने में एक कुआं भी था, जिसके जरिए परिसर में बने फव्‍वारे को चलाया जाता था. अभी भी यहां कुएं और बुर्ज के अवशेष मौजूद हैं.   

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बिड़ला ने ली मंदिर के पुनर्रुद्धार की जिम्मेदारी

इसके बाद वर्ष 1815 में  ब्रिटिश शासनकाल में इस जगह नीलामी की गई. तब बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया. वर्ष 1940 में एक बार पंडित मदन मोहन मालवीय यहां आए. जब उन्होंने श्रीकृष्ण जन्मस्थान की हालत देखी तो व्यथित हो उठे. 1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए. वह भी इस पावन धरती की दुर्दशा देख दुखी हो गई. इसी दौरान महामना मालवीय ने बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक लेटर लिखा. जिसके बाद बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया और 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की. 

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फरवरी 1982 में पूरा हुआ काम

हालांकि, कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी, जिसके चलते निर्माण कार्य में रुकावट आई. जब 1953 में  फैसला आया तब यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य शुरू हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ. 

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