Kanpur Shiv Mandir: वैसे तो यूपी में कई प्राचीन शिव मंदिर हैं, जिनकी कहानियां लोगों को अचंभे में डाल देती है. ऐसा ही एक प्राचीन शिव मंदिर कानपुर देहात में भी है. जिसका रहस्य सभी की समझ से परे है. हालांकि इस मंदिर की अपनी मान्यताएं हैं. मान्यता है कि यहां सावन में जल चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. बताया जाता है कि यहां हर रोज सुबह मंदिर खुलने से पहले ही भगवान शिव की पूजा होती है. हालांकि यह पूजा कौन करता है, इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है. माना जाता है कि यहां एक अदृश्य आत्मा हर रोज सबसे पहले आकर महादेव की पूजा करती है. 


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सावन में जल चढ़ाने का महत्व 
इस प्राचीन शिव मंदिर में बिना गंगा जल चढ़ाए कांवड़ियों की मन्नतें पूरी नहीं होती. इसके अलावा जो श्रद्धालु पूरी श्रद्धा के साथ यहां शिवलिंग पर जल चढ़ाता है. उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाती है. इन्हीं मान्यताओं के चलते सावन में यहां कांवड़ियों की अच्छी खासी भीड़ रहती है. दूर-दूर से शिवभक्त अपनी मुराद लेकर महादेव के इस दरबार में हाजिरी लगाते हैं.


अदृश्य आत्मा करती है पूजा
यह मंदिर कानपुर शहर से दूर बनीपारा गांव में बाणेश्वर शिव मंदिर के नाम से मशहूर है. पौराणिक कथाओं की मानें तो बनीपारा के बाणेश्वर शिव मंदिर की स्‍थापना सतयुग में हुई थी. यहां राजा बाणेश्वर की बेटी सबसे पहले भगवान शिव की पूजा करती थी. तब से अब तक इस शिवलिंग पर सबसे पहले सुबह कौन पूजा करता है, इसका रहस्य आज तक किसी को समझ में नहीं आया. स्थानीय लोगों की आस्था है कि सावन के सोमवार उपवास रखने के बाद यहां जल चढ़ाने मात्र से भक्तों की मुराद पूरी हो जाती है.


दैत्यराज वाणासुर की राजधानी  
ये शिव मंदिर का पौराणिक महत्व के साथ भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र भी है. सतयुग से इसका इतिहास जुड़ा है. रिपोट्स के मुताबिक, सिठऊपुरवा (श्रोणितपुर) दैत्यराज वाणासुर की राजधानी थी. मंदिर में दैत्यराज बलि के पुत्र वाणासुर ने विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी. श्रीकृष्ण वाणासुर युद्ध के बाद स्थल ध्वस्त हो गया था. परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने इसका जीर्णोद्धार कराकर वाणपुरा जन्मेजय नाम रखा था. अपभ्रंश रूप में बनीपारा जिनई हो गया. मंदिर के पास शिव तालाब, टीला, ऊषा बुर्ज, विष्णु व रेवंत की मूर्तियां पौराणिकता को प्रमाणित करती हैं.


मंदिर नष्ट करने में मुगल शासक असफल
कहा जाता है कि इस मंदिर को नष्ट करने के लिए मुगल शासकों ने बहुत कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सके. मंदिर से जुड़ी एक कथा के मुताबिक, राजा बाणेश्वर सतयुग से द्वापरयुग तक राजा रहे हैं. बाणेश्वर ने महादेव की घोर तपस्या की थी. जिससे खुश होकर भोलेनाथ ने बाणेश्वर को दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा तो बाणेश्वर ने महादेव को ही मांग लिया. इसके बाद भगवान शिव ने ये शिवलिंग दिया. जिसके बाद इस शिवलिंग को बाणेश्वर ने ही यहां स्‍थापित कर मंदिर बनवाया.


Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां लोक मान्यताओं/ पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं. इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. Zeeupuk इसकी किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है.


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