यूपी में महाभारत काल का वो मंदिर जहां शिवलिंग तीन बार बदलता है रंग, नकुल-सहदेव ने भी की थी पूजा
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यूपी में महाभारत काल का वो मंदिर जहां शिवलिंग तीन बार बदलता है रंग, नकुल-सहदेव ने भी की थी पूजा

History of Achaleshwar Dham: भारत में ऐसे कई मंदिर हैं. जहां कुछ अनोखा होता है. वहां से जुड़े रहस्य लोगों को सदियों से आकर्षित करते आ रहे हैं. ऐसा ही एक अनोखा मंदिर अलीगढ़ मे है. ये है शहर के बीचोंबीच स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर. इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है.

History of Achaleshwar Dham

Achleshwar Mahadev Mandir Mystery: अलीगढ़ शहर के बीचों-बीच अचल सरोवर के किनारे देवो के देव अचलेश्वर महादेव विराजमान हैं. इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से मिलता है. इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है.  भक्त जब भी कोई शुभ कार्य शुरू करते हैं तो भोले जी का आशीर्वाद लेने जरूर आते हैं.  ऐसा कहते हैं कि हर रोज अलीगढ़ के श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग 24 घंटे में दो बार रंग बदलता है। कभी काला, तो कभी गेरूआ रंग में शिवलिंग नजर आता है. अचलेश्वर महादेव मंदिर अलीगढ़ का सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं. 

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सावन में उमड़ती है भीड़
अचलेश्वर महादेव मंदिर अलीगढ़ का सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं.  यहां पर सावन के महीने में शिवजी के लिए श्रद्धा का सैलाब देखते ही बनता है. इस मंदिर के आसपास 50 से अधिक मंदिर हैं. अचलेश्वर मंदिर के पास में अचल सरोवर हैं.  शाम को आरती गूंजने से पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है.  सरोवर की गुमटी पर भगवान शिव की विशालकाय मूर्ति स्थापित है.

शिवलिंग बदलता है रंग
श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग हर रोज 24 घंटे में तीन बार रंग बदलता है. कभी शिवलिंग काला, तो कभी गेरूआ रंग में नजर आता है.  शिवलिंग की जलहरी की भी विशेष मान्यता है.  गर्मी में अगर बारिश न हो रही हो, तो जलहरी को पानी से भरने पर जल्द से जल्द बारिश हो जाती है. मनोकामना पूरी होने पर भक्त मंदिर की जलहरी को जल और दूध से भरते हैं. शिवलिंग के रंग बदलने के पीछे की वजह क्या है? यह कोई नहीं जानता. वैज्ञानिक भी अब तक शिवलिंग के इस तरह से रंग बदलने का कारण समझ नहीं पाए हैं.  सावन माह में शिवलिंग का रंग बदलाना देखना अपने आप में एक बेहद पुण्यकारी है.

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यहां आए थे नकुल और सहदेव
इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है. धार्मिक मान्यता अनुसार जब पांडव के अज्ञातवास के दौरान यहां पर पांडव के दोनों छोटे भाई नकुल और सहदेव यहां आए थे. उन्होंने अचल सरोवर में स्नान किया था. स्नान करने के बाद बाबा अचलेश्वरधाम की पूजा-अर्चना की थी. तभी से इस मंदिर की धार्मिक मान्यता बढ़ती चली गई. 

ऐसे स्थापित हुआ श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर
भगवान शिव की प्रतिमा जमीन से निकली हुई है. मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है.  लगभग 5000 साल पहले की बात है, सिंधिया परिवार की महारानी को सपना आया कि अलीगढ़ में अचल सरोवर के पास एक शिवलिंग जमीन में दबा हुआ है, उसे निकाल कर स्थापित किया जाए.  वहां की खुदाई के लिए मजदूर लग गए. ऐसा कहते हैं कि जब शिवलिंग को जमीन में से निकालने के लिए खुदाई हुई, तो एक मजदूर का फावड़ा शिवलिंग पर लग गया. जिससे शिवलिंग में से पहले खून की धारा निकली और फिर दूध की धारा निकली. कहते हैं कि यहां जो भक्त सच्ची भावना से जो मांगता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है.   

पांच हजार साल पहले मंदिर का जीर्णोद्धार 
अचलेश्वरधाम बाबा सिद्धपीठ हैं, जो भी मन से मनौती मांगता है, अवश्य पूर्ण होती है. अचलसरोवर में बने गोमुखों से हरदुआगंज स्थित बरौठा गंग नहर से गंगा जल आता था.  

ये है मंदिर की विशेषता
मंदिर के अंदर पार्वती, नंदी और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित हैं.  शिवलिंग काफी नीचे स्थापित है.  इसमें आठ मन तक दूध आ जाता है. जब किसी भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है तो वह भगवान शिव का दूध से दुग्धाभिषेक करते हैं. अचलेश्वर महादेव मंदिर के आस-पास श्री गिलहराज मंदिर है, जहां हनुमानजी गिलहरी के रूप में विराजमान है। नौ देवी मंदिर, दाऊजी मंदिर, गायत्री मंदिर, गौरा देवी और नटराज आदि मंदिर भी यहां माजूद हैं.

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