Atalji Birth Anniversary: 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है. अगर आज वो जीवित होते तो सेंचुरी पूरी कर रहे होते. भौतिक रूप से भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी सहजता वक्तृत्व शैली और विरोधियों के प्रति भी सम्मान का भाव आज भी सभी की यादों में जिंदा है. पढ़िए
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Atalji Birth Anniversary: अटल बिहारी वायपेयी...एक ऐसे नेता जो अपनी साफगोई के लिए मशहूर रहे. ना तो किसी की आलोचना करने से चूके और ना ही किसी की सराहना करने से पीछे हटे. आज के दौर में जहां आज सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच कटुता चरम पर रहती है. वहीं अटल बिहारी वाजपेयी इसके बिल्कुल विपरीत थे. ऐसे मौके पर वो शिद्दत से याद किए जाते हैं. अक्सर उन्हें अटल जी ही कहा और लिखा जाता रहा. अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती है. आज बेशक वो हमारे बीच भौतिक रूप से नहीं हैं, लेकिन उनकी सहजता वक्तृत्व शैली और विरोधियों के प्रति भी सम्मान का भाव आज भी सभी की यादों में है. ऐसे में आइए जानते हैं उनके कुछ अनसुने किस्से, जो आज भी याद किए जाते हैं.
ये बात 1962 की है, जब भारत-चीन युद्ध के बीच अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग कर दी थी. फिर न सिर्फ जवाहर लाल नेहरू ने उनकी मांग को पूरा किया, बल्कि इस मुद्दे पर बहस भी करवा दी थी. हालांकि, वे बचाव की मुद्रा में थे. खबरों की मानें तो अटल जी ने अपने किसी भी विरोधी की आलोचना या विरोध करने का आधार सिर्फ वैचारिक ही रखा. ऐसे कई किस्से मशहूर हैं.
नाराज हो गए थे अटल जी
एक किस्सा 1977 का भी है, जब केंद्र में पहली बार मोरारजी देसाई की अगुवाई में गैर कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई थी. उस वक्त अटल जी विदेश मंत्री बने थे. तब उनके कमरे में रखी मेज-कुर्सी के पीछे की दीवार पर लगी नेहरू की तस्वीर को हटा दिया गया था. जिसके बाद अटल जी नाराज हो गए थे और दोबारा उस तस्वीर को लगाने के निर्देश दे दिए थे. ऐसा कहा जाता है जब 1971 में भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था तो उन्होंने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को 'अभिनव चंडी दुर्गा' कहकर संबोधित किया था, जिसे आज भी याद किया जाता है.
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खुले दिल से करते थे तारीफ
अपने वैचारिक विरोधियों की तारीफ करने से भी अटल जी कभी नहीं चूकते थे. साथ ही उन्हें उनके अच्छे कामों का श्रेय भी देते थे. ऐसा ही एक वाक्या पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के निधन के तीन दिन बाद 26 दिसंबर 2004 को सामने आया था. तब अटल जी ग्वालियर में लेखकों की एक परिचर्चा में शामिल हुए थे. इस मौके पर उन्होंने भारत के परमाणु कार्यक्रम के 'असली जनक' होने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री राव को दे दिया था. उस दौरान अटल जी थोड़े भावुक भी हो गए थे.
क्या बोले थे अटल जी?
कहते हैं जब 1996 में (13 दिन के लिए) उन्होंने प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था, तब उन्हें अपने पूर्ववर्ती (राव) का एक पत्र मिला, जिसमें उनसे देश का परमाणु कार्यक्रम जारी रहने देने का आग्रह किया गया था. तब अटल जी ने बताया था कि राव ने मुझसे इसे सार्वजनिक न करने को कहा था, लेकिन अब जब कि उनका देहांत हो चुका है और वे इस दुनिया में नहीं हैं तो मैं इस बात को सबके सामने रखना चाहता हूं. अपने खास अंदाज में उन्होंने बताया था कि राव ने मुझसे कहा था कि बम तैयार है. मुझे बस धमाका करना है और मैंने मौका नहीं गंवाया.
सोनिया का राजनीतिक सफर
कहा तो ये भी जाता है कि सोनिया गांधी को एक कुशल राजनेता के तौर पर स्थापित करने में अटल जी की अहम भूमिका रही. जून 2001 में संयुक्त राष्ट्र एड्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल को अमेरिका जाना था. इस प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व के लिए अटल जी ने सोनिया गांधी को चुना. यह सोनिया की सियासी राह के लिए मील का एक पत्थर साबित हुआ. हालांकि, अटल जी के इस फैसले से बीजेपी-एनडीए में नाराजगी देखने को मिली थी.
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