Lucknow News/विशाल सिंह: सांसद बनने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव के उत्तर प्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष के लिए विपक्ष में सियासी हलचलें तेज हो गई हैं. समाजवादी पार्टी द्वारा अब दूसरे नामों पर चर्चा की जा रही है. सूत्रों की मानें तो सपा अगले सप्ताह तक यूपी विधानसभा के लिए नए नेता प्रतिपक्ष के नाम पर मुहर लगा सकती है. आपको बता दें कि नए सत्र शुरू होने से पहले विधानसभा के नए नेता प्रतिपक्ष का चुनाव होना जरूरी है. 


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अखिलेश यादव थे पहले नेता प्रतिपक्ष 
लोकसभा चुनाव से पहले करहल विधानसभा सीट से विधायक अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे. लेकिन लोकसभा चुनाव में कन्नौज से सांसद बनने के बाद उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है. इस कारण विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हो गया है. सूत्रों की मानें तो सपा पार्टी के महासचिव शिवपाल यादव का नाम नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में सबसे आगे चल रहा है. 


तीन नामों पर चल रहा है विचार
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अब केंद्र की राजनीति करेंगे तो उनके स्थान पर नेता प्रतिपक्ष कौन होगा इसको लेकर पार्टी में मंथन शुरू हो गया है. पार्टी में फिलहाल तीन नामों पर बहुत गंभीरता से विचार चल रहा है. इनमें शिवपाल सिंह यादव, राम अचल राजभर व इन्द्रजीत सरोज शामिल हैं. तीनों ही पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं. सपा अध्यक्ष यह चाहते हैं कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष ऐसा व्यक्ति बनाया जाए जिससे ‘पीडीए’ की धार और मजबूत हो सके. यही कारण है कि पार्टी पिछड़ा या दलित में से किसी एक को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहती है. सबसे प्रबल दावेदार अखिलेश यादव के चाचा व जसवंतनगर के विधायक शिवपाल हैं.


पहले भी रह चुके हैं विपक्ष के नेता
छह बार के विधायक शिवपाल वर्ष 2009 से 2012 तक नेता प्रतिपक्ष रह भी चुके हैं. सपा वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए जातीय समीकरण भी साध रही है. ऐसे में इस पद के लिए पार्टी अति पिछड़े व दलित नेता के नाम पर भी विचार कर रही है.


दलित नेता में  इन्द्रजीत सरोज प्रमुख दावेदार
दलित नेताओं में पांच बार के विधायक इन्द्रजीत सरोज प्रमुख दावेदार हैं. कौशांबी की मंझनपुर सीट के विधायक इन्द्रजीत बसपा की मायावती सरकार में समाज कल्याण मंत्री रह चुके हैं. इस बार इनका बेटा पुष्पेन्द्र सरोज कौशांबी से सांसद चुना गया है.


तीसरा प्रमुख नाम राम अचल राजभर 
तीसरा नाम अति पिछड़ी जाति में आने वाले अंबेडकरनगर की अकबरपुर सीट के विधायक राम अचल राजभर का चल रहा है. छह बार के विधायक राजभर मायावती की वर्ष 2007 से 2012 की सरकार में परिवहन मंत्री रह चुके हैं. पिछड़ी जातियों में इनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. सपा अध्यक्ष जल्द ही इनमें से किसी एक को नेता विरोधी दल का दायित्व सौंप सकते हैं.


अखिलेश-शिवपाल में क्या हुआ था विवाद
गौरतलब है कि 2016 में तत्कालीन सपा सरकार में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री और शिवपाल सिंह यादव पीडब्ल्यूडी मंत्री थे तो दोनों के बीच सियासी तकरार हो गई थी. मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय के सवाल पर शुरू हुआ सियासी युद्ध खुले तौर पर तब सामने आया था, जब अखिलेश ने उनकी सरकार में मंत्री बलराम यादव और शिवपाल सिंह यादव को मंत्रिपद से बर्खास्त कर दिया था. शिवपाल का धड़ा चाहता था कि अखिलेश मुख्यमंत्री और अध्यक्ष पद में से एक छोड़ दें. खुद मुलायम सिंह यादव भी इसको लेकर कहीं हद तक सहमत थे, लेकिन अखिलेश अड़ गए. शिवपाल की जब नहीं चली तो उन्होंने अलग दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. नतीजा हुआ कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा की करारी हार हुई और बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई.


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