लखनऊ: उत्तर प्रदेश में शिक्षकों के मुद्दे को लेकर सियासत तेज हो गई है, सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सरकार को घेरने के बाद अब नगीना सांसद चंद्रशेखर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को घेरा है. नगीना के सांसद चंद्रशेखर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर 69 हजार शिक्षक भर्ती में आरक्षण की अनियमितता का मुद्दा फिर से उठाया है. साथ ही शिक्षककों की डिजिटल अटेंडेंस को अव्यवहारिक बताते हुए वापस लेने की मांग की है.  


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चंद्रशेखर ने क्या लिखा ?
"अवगत कराना है कि उत्तर प्रदेश में संपत्र हुई 69000 सहायक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों की अनदेखी की वजह से आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों का मानक के अनुरुप चयन नहीं हो सका है, जिसकी वजह से अभ्यर्थियों का भविष्य अधर में लटक गया है और वह सड़कों पर आंदोलन करने व खून के आंसू रोने को मजबूर हैं."


"आरक्षण विसंगति के संबंध में अभ्यर्थियों की शिकायतों का संज्ञान लेते हुए माननीय राष्ट्रीय पिण्ड़ा वर्ग आयोग ने 29 अप्रैल 2021 को अपनी रिपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप दी थी. जिसमें स्पष्ट किया था कि 69000 शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण के नियमों का ठीक ढंग से अनुपालन नहीं किया गया है. साथ ही प्रभावित अभ्यर्थियों की नियुक्ति व दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने की संस्तुति राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने रिपोर्ट में प्रदेश सरकार को भेजा लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई."


"5 जनवरी 2022 को बेसिक शिक्षा विभाग ने प्रक्रिया में हुई गलती को मानते हुए 6800 आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की सूची प्रकाशित की और नियुक्ति देने की बात कहीं लेकिन 2 साल से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद उन अभ्यर्थियों की नियुक्ति नहीं हो सकी है. महोदय इनमें से अधिकांश अभ्यर्थियों की उम्र सीमा अधिकतम हो चुकी है जिससे यह सरकारी नौकरियों में फार्म भी नहीं भर सकते साथ ही साथ आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है जिससे ये सामान्य जीवन भी नहीं जी पा रहे हैं. मुख्यमंत्री जी से निवेदन है कि उन अभ्यर्थियों की समस्याओं का संज्ञान लेते हुए अधिकारियों को निर्देशित करें."


अखिलेश ने भी साधा निशाना
अखिलेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "कोई शिक्षक देर से स्कूल नहीं पहुँचना चाहता है लेकिन कहीं सार्वजनिक परिवहन देर से चलना इसका कारण बनता है, कहीं रेल का बंद फाटक और कहीं घर से स्कूल के बीच की पचासों किमी की दूरी क्योंकि शिक्षकों के पास स्कूल के पास रहने के लिए न तो सरकारी आवास होते हैं, न दूरस्थ इलाकों में किराये पर घर उपलब्ध होते हैं। इससे अनावश्यक तनाव जन्म लेता है और मानसिक रूप से उलझा अध्यापक कभी जल्दबाज़ी में दुर्घटनाग्रस्त भी हो सकता है, जिसके अनेक उदाहरण मिलते हैं."


'डिजिटल अटेंडेंस समाधान नहीं'
देर से स्कूल पहुँचने या जल्दी स्कूल से वापस जाने के अनेक कारण हो सकते हैं. यहाँ तक कि विद्युत आपूर्ति के बाधित होने या तकनीकी रूप से भी कभी इंटरनेट जैसी सेवाओं के सुचारू संचालन में समस्या आती है. इसीलिए ‘डिजिटल अटेंडेंस’ का विकल्प बिना व्यावहारिक समस्याओं के पुख़्ता समाधान के संभव नहीं है. सबसे बड़ी बात ये है कि इससे शिक्षकों को  भावनात्मक ठेस पहुँचती है, जिससे उनके शिक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. 


'भाजपा ने खोया शिक्षकों का भरोसा'
शिक्षकों पर अविश्वास जताकर भाजपा सरकार ने साबित कर दिया है कि न तो वो शिक्षा का सम्मान करती है, न शिक्षकों का. भाजपा ने अध्यापकों का भरोसा खो दिया है. आशा है इस निर्णय के पीछे विधानसभा के आगामी उपचुनाव में भाजपा की हार का डर कारण नहीं है और उपचुनावों के बाद ये मनमाना आदेश फिर से लागू नहीं होगा. एक शिक्षक परिवार से होने के नाते हम शिक्षकों का दर्द भी समझते हैं और उनकी सही मांगों और एकता की ताक़त को भी. हम सदैव शिक्षकों के साथ हैं, ‘डिजिटल अटेंडेंस’ का आदेश स्थगित नहीं, रद्द होना चाहिए. शिक्षक एकता ज़िंदाबाद!"


क्या बोले राहुल गांधी
राहुल गांधी ने कल रायबरेली दौरे में कहा था कि सरकार को शिक्षकों की लंबित मांगों को सुनना चाहिए. ऑनलाइन अटेंडेंस से जुड़ी आशंकाओं को भी दूर करने के बाद ही उसे अमल में लाए. इसे शिक्षकों को थोपना सही नहीं है.


 


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