स्वच्छता अभियान को बढ़ावा देने वाला माहौल और ऐसी कई चीजें हैं जो देश के बाकी प्राथमिक स्कूलों के लिये स्वप्न सरीखी हैं. इस स्कूल को आदर्श पाठशाला बनाने का ज्यादातर श्रेय यहां के प्रधानाध्यापक देवब्रत त्रिपाठी को जाता है.
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लखनऊ: देश में सरकारी बेसिक स्कूलों की स्थिति को लेकर व्याप्त चिंता के बीच उत्तर प्रदेश के फतेहपुर स्थित एक गांव की प्राथमिक पाठशाला एक मिसाल पेश कर रही है. फतेहपुर जिले के बेहद पिछड़े गांव अर्जुनपुर गढ़ा में स्थित इस पाठशाला में विद्यार्थियों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था के साथ-साथ बड़ा डाइनिंग हॉल, बड़ा बगीचा, स्वच्छता अभियान को बढ़ावा देने वाला माहौल और ऐसी कई चीजें हैं जो देश के बाकी प्राथमिक स्कूलों के लिये स्वप्न सरीखी हैं. इस स्कूल को आदर्श पाठशाला बनाने का ज्यादातर श्रेय यहां के प्रधानाध्यापक देवब्रत त्रिपाठी को जाता है.
जहां एक तरफ लोग स्कूल में सुविधाएं बढ़ाने के लिये सरकार से आस लगाते हैं, वहीं त्रिपाठी ने इसे व्यक्तिगत जिम्मेदारी समझते हुए पाठशाला को तमाम ऐसी सुविधाओं से लैस किया, जिनसे कोई स्कूल आदर्श विद्यालय में तब्दील हो सकता है. प्रधानाध्यापक के तौर पर सेवारत त्रिपाठी ने ‘भाषा’ को बताया कि 10 सितम्बर 1982 को प्राथमिक विद्यालय अर्जुनपुर गढ़ा में बतौर सहायक अध्यापक उनकी नियुक्ति हुई. तब इसका भवन जर्जर था और उसमें भी ग्रामीणों का अवैध कब्जा था. उन्होंने अधिकारियों के मार्फत प्रयास किये, जिससे स्कूल की चहारदीवारी का निर्माण हुआ और कब्जा खत्म हो सका.
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अन्य सरकारी स्कूलों की तरह इस प्राथमिक पाठशाला में भी विद्यार्थियों की तादाद बढ़ाना कोई कम बड़ी चुनौती नहीं थी. त्रिपाठी के मुताबिक, इसके लिये शिक्षा व्यवस्था को मनोवैज्ञानिक तरीके से ऐसा रूप दिया गया कि बच्चों को पढ़ाई बोझ ना लगे. परिसर को कौतूहलपूर्ण बनाने के लिये फुलवारी तैयार की गयी, जिसमें फलदार वृक्ष लगाये गये. इसकी देखभाल वह खुद करते हैं. बच्चों को बागवानी से जोड़ने के मकसद से इस बगीचे में कई चीजें उगायी जाती हैं.
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अर्जुनपुर गढ़ा के प्रधान धर्मराज यादव के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में गांव के इस प्राथमिक विद्यालय की तस्वीर बदल गयी है. विद्यालय को अवैध कब्जामुक्त कराने में त्रिपाठी का अहम योगदान है. पहले स्कूल में गिने-चुने छात्र ही थे, अब यह तादाद बढ़ी है. जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी शिवेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि हमारा प्रयास रहता है कि जनपद स्तर पर न्यूनतम एक मॉडल स्कूल आवश्यक रूप से स्थापित किया जाए, जिससे परिषदीय शिक्षा प्रणाली के प्रति आकर्षण बढ़े. प्रधानाध्यापक देवब्रत त्रिपाठी की स्कूल के प्रति व्यक्तिगत लगनशीलता सराहनीय है और यह स्कूल एक आदर्श पेश कर सका है.
विकास की दौड़ में बहुत पिछड़े बुंदेलखण्ड से सटे फतेहपुर के गांव अर्जुनपुर गढ़ा में स्थित इस प्राथमिक पाठशाला में बच्चों को दोपहर का भोजन कराने के लिये एक विशाल डाइनिंग हॉल बनवाया गया है, जिसमें करीब 200 बच्चे साथ बैठकर खाना खा सकते हैं. विद्यालय में बच्चों को स्वच्छता के लिये प्रेरित किया जाता है. जो बच्चे घर से नहाकर नहीं आते हैं, उन्हें विद्यालय में स्नान करवाने के लिये साबुन, तौलिये, कंघा, तेल इत्यादि की व्यवस्था है.
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त्रिपाठी ने बताया कि अक्सर पानी की किल्लत से जूझने वाले इस इलाके में पूर्व में, स्कूल के छात्रों और शिक्षकों को कुएं से खींचकर पानी लाना पड़ता था. उन्होंने विद्यालय में हैण्डपम्प लगवाया और सबमर्सिबल मोटर की व्यवस्था की. छह कमरों वाले इस स्कूल की कक्षाओं और फर्श पर टाइल्स भी लगवाये गये हैं. कक्षा तीन, चार और पांच के विद्यार्थियों के बैठने के लिये फर्नीचर की व्यवस्था है, जो उन्होंने खुद ही की है. त्रिपाठी ने कहा कि शिक्षक के प्रति श्रद्धा भावना जगाये रखने के लिये स्कूल में सेवानिवृत शिक्षकों के सम्मान की परम्परा डाली गयी है. पाठशाला परिसर में मां सरस्वती और इस क्षेत्र में साक्षरता की अलख जगाने वाले संत सोमानंद की प्रतिमा स्थापित की गई है.
(इनपुटः भाषा)