Chauri Chaura Incident: भारत को आजादी दिलाने की जगं कुछ समय की बात नहीं थी, बल्कि इसमें कई दशक और कई वीर जवानों का खून और पसीना लगा था. देश जमीन पर जन्मे कई लाल जो भारत मां को आजाद देखने का सपना लेकर आए थे, उन्होंने कई छोटे-बड़े आंदोलनों से देश को स्वतंत्र करने में अपना योगदान दिया. इन्हीं में से एक है 4 फरवरी 1922 को घटी चौरी चौरा घटना. साल 1920 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई थी. इस आंदोलन ने देशवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर दिया था. इसी के साथ अंग्रेजी हुकूमत को समझ आ गया कि उनकी कमान ढीली होने लगी है. इसके 2 साल बाद चौरीचौरा में हुई एक घटना ने आगे के 25 साल की कहानी अपने आप लिख दी.


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असहयोग आंदोलन ने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया था
चौरीचौरा की 100वीं वर्षगांठ पर हम आपको बताते हैं, उस घटना के बारे में जिसने अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया था. दरअसल, अगस्त 1920 में गांधीजी की अगुआई में असहयोग आंदोलन शुरू हुआ था. वजह थी अंग्रेजों द्वारा लाया गया रोलैट एक्ट. असहयोग आंदोलन का मोटिव था अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना और अंग्रेजों का कर नहीं चुकाना. इस दौरान लोगों से कहा गया कि वह स्कूल, कॉलेज, कोर्ट और अंग्रेजी सरकार के दफ्तर जाना छोड़ दें. यह एक देशव्यापी आंदोलन था, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की रीढ़ पर हमला किया था.


आक्रोषित जनता ने थाने में लगाई थी आग
इसके कुछ साल बाद, गोरखपुर के चौरीचौरा में खबर फैली कि दारोगा ने मुंडेरा बाजार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की है. इसके बाद मामले ने तूल पकड़ लिया और आक्रोषित जनता को काबू में करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और फायरिंग की. ऐसा होने पर गुस्साई भीड़ थाने को घेर लिया और आग लगा दी. इस घटना में 3 नागरिक और 22 पुलिसकर्मियों की जान चली गई.


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गांधी जी ने असहयोग आंदोलन खत्म करने का लिया फैसला
गांधी जी इस घटना से आहत हुए और असहयोग आंदोलन खत्म करने का निर्णय लिया. लेकिन उनके इस फैसले से कांग्रेस कार्यकर्ता खुश नहीं थे और गांधी जी का विरोध कर रहे थे. गांधी जी ने अपनी बात रखी कि भारत ऐसी हिंसा से आजाद नहीं हो सकता है. फिर, आंदोलन खत्म कर दिया गया. 16 फरवरी 1922 को महात्मा गांधी ने एक लेख 'चौरी चौरा का अपराध' लिखा, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर आंदोलन खत्म नहीं किया जाता तो ऐसी ही और घटनाएं होतीं.


2 हिस्सों में बंटी कांग्रेस
महात्मा गांधी का विरोध करने के लिए कांग्रेस के कई कार्यकर्ता साथ आ गए, हालांकि गांधी जी का विरोध करने की किसी में हिम्मत नहीं थी. गांधी जी जब जेल गए, तो पार्टी दो हिस्सों में बंटने लगी. एक पक्ष चित्त रंजन दास और मोतीलाल नेहरू का था. दूसरे पक्ष में चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य और सरदार वल्लभ भाई पटेल थे.


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