Atique Ahmed : कभी जरायम की दुनिया का बादशाह रहा अतीक अहमद जेल में अपने गुनाहों की सजा भुगत रहा है. एक दौर था जब प्रयागराज (Prayagraj) का नाम इलाहाबाद हुआ करता था. ये कहानी अस्सी के दशक की है जब तत्कालीन इलाहाबाद में माहौल तेजी से बदल रहा था. तब इलाहाबाद की पहचान शिक्षा के गढ़ के रुप में बन रही थी.
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Atiq Ahmed: कभी जरायम की दुनिया का बादशाह रहा अतीक अहमद जेल में अपने गुनाहों की सजा भुगत रहा है. एक दौर था जब प्रयागराज का नाम इलाहाबाद हुआ करता था. ये कहानी अस्सी के दशक की है जब तत्कालीन इलाहाबाद में माहौल तेजी से बदल रहा था. तब इलाहाबाद की पहचान शिक्षा के गढ़ के रुप में बन रही थी. तब इलाके के लड़कों में अमीर बनने खूब होड़ थी. इसके लिए वो कुछ भी कर सकते थे. इन सबके बीच चकिया मोहल्ले का तांगेवाले का लड़का अचानक सुर्खियों में आ गया.
फिरोज तांगेवाले के लड़के की ऐसे हुई जुर्म की दुनिया में एंट्री
आपको बता दें कि मात्र 17 साल की उम्र में फिरोज तांगेवाले के लड़के अतीक की जरायम के दुनिया में एंट्री हुई. तब अतीक पर हत्या का आरोप लगा था. इसके बाद अतीक के डर और आतंक इलाके में फैलने लगा. डर की आड़ में अतीक अहमद का रंगदारी का धंधा बड़ी तेजी से चल निकला. उस समय अतीक के अलावा एक और नाम 'चांद बाबा' काफी चर्चीत था. पुराने शहर के इस गुंडा का खौफ ऐसा था कि चौक और रानीमंडी में पुलिस तक जाने से डरते थे. तब अतीक लगभग 22 साल का था. अतीक को पुलिस नेता दोनों का शह मिलने लगा.
होने लगी थी सियासी गलियारों में मजबूती से दखल
पुलिस और नेता दोनों का शह मिलने पर अतीक गुंडागर्दी में अपना पैर जमाना शुरु कर दिया, जो लोग चांद बाबा से परेशान थे, उन्होंने अतीक को बढ़ावा देना शुरु कर दिया. फिर क्या था अतीक ने अपना गिरोह तैयार कर लिया. देखते ही देखते ये गिरोह चांद बाबा के गैंग से ज्यादा अतीक का गैंग खतरनाक हो चला. उसके बाद वीर बहादुर सिंह का समय आया. तब देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. साल 1986 के आसपास यूपी में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी. इसी दौरान एक दिन अचानक पुलिस अतीक को उठा ले गई, लेकिन दिल्ली से एक कॉल आई और अतीक छूट गया. माना जाता है कि इसके बाद अतीक ने सियासत गलियारों में पैठ बनाना और दखल देना शुरू कर दिया.
जरायम की दुनिया का नहीं छोड़ पाया रास्ता
मामला धीरे-धीरे बढ़ता ही गया, जो आगे चलकर अतीक के लिए बाहुबली और अपराध की दुनिया के लिए संजीवनी बनने वाला था. अतीक को समझ आ चुका था कि सियासत में मजबूत पकड़ बहुत जरूरी है. इसके बाद अतीक ने गुनाहों के रास्ते पर चलकर सियासत में मजबूत पकड़ बना ली. सवाल ये था कि सियासत में ऊंचाई पाने और सफेद पोश बनने के बाबजूद जरायम की दुनिया का काला रास्ता नहीं छोड़ पाया.
राह में आने वाले लोगों के देनी पड़ी जान
अतीक अपनी बुलंदियों पर था. खौफ और आतंक से भरी जरायम की दुनियां में अतीक लंबी छलांगे मार रहा था. लेकिन उसे नहीं पता था कि हर चीज का एक दिन हिसाब होता है. उसे लगा की उसका अतीत आगे उसके रास्ते का रोड़ा बन सकता है. इसके बाद उसने सियासत में मजबूत दखल दी, तब भी गुनाह का रास्ता नहीं छोड़ा. उसके रास्ते में जो आया उसे जान से हाथ धोना पड़ा.
एक दौर ऐसा भी था जब अतीक अहमद ने अपराध की दुनिया में ऐसा हंगामा खड़ा किया कि पुलिस तक के लिए नासूर बन गया. हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे मामलों में मुकदमों की फाइल दर फाइल खड़ी होती जा रही थी. मगर अतीक का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा था. ऐसे ही दौर में अतीक ने ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला कि पुलिस चाहकर भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाई.
मुकदमों की लिस्ट हो चुकी थी लंबी
बात अस्सी के दशक की है जब मुकदमों की लम्बी फेहरिस्त अतीक के खिलाफ तैयार हो चुकी थी. ऐसे में वो एक दिन बुर्के में अपने साथी के साथ पहुंचा और पुराने मामले में सरेंडर कर दिया. जेल जाते ही पुलिस उस पर भिड़ गई और रासुका लगा दिया. बाहर संदेश ये गया कि पुलिस अतीक का उत्पीड़न कर रही है. जिसके बाद उसके पक्ष में सहानूभूति पैदा हो गई. हालांकि एक साल जेल में रहने के बाद वो बाहर आया और 1989 के चुनाव में उसने इलाहाबाद पश्चिमी से निर्दलीय पर्चा भर दिया.
अगर ऐसा न होता तो अतीक के आतंक कायम न होता
इस चुनाव में अतीक का सामना पुराने गैंगस्टर चांद बाबा से था, जिससे उसकी कई दफे गैंगवार हो चुकी थी. लेकिन अतीक ने इस चुनाव में धनबल बाहुबल का ऐसा खेल खेला कि चांद बाबा हार गया. अतीक इसके साथ ही "माननीय" बन गया. चुनाव के कुछ महीनों बाद ही चांद बाबा की हत्या हो गई.धीरे धीरे अतीक ने चांदबाबा के पूरे गैंग का सफाया कर दिया. हालत ये हुई कि लोग इलाहाबाद पश्चिमी सीट से टिकट लेने तक को मना करने लगे.
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