उत्तर प्रदेश में दुग्ध उत्पादन अर्थात डेयरी उद्योग से जुड़ी काफी संभावनाएं हैं. हालांकि घास के अभाव में कई बार पशुपालक पशुओं को आवारा छोड़ देते हैं जबकि यही पशु दुग्ध उत्पाद के साथ जैविक खाद के रूप में आमदनी का नया जरिया दे सकते हैं. ऐसी चुनौतियों को दूर करने के लिए बहराइच डीएम ने एक ऐसी पहल की है जो किसानों और पशुपालकों की तकदीर बदल सकती है.
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राजीव शर्मा/बहराइच: किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कई योजनाएं संचालित करती है. इनकी सफलता का पूरा दारोमदार ग्राउंड जीरो पर तैनात प्रशासनिक अधिकारियों पर होता है. इसकी बानगी बहराइच में देखने को मिली. यहां डीएम डॉ दिनेश चन्द्र की एक मुहिम इन दिनों प्रदेश भर में चर्चा का विषय बनी हुई है. ख़ास बात यह है कि ये मुहिम घास यानी स्थानीय भाषा में कहें तो पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे से जुड़ी है.
दरअसल डीएम साहब अपने बंगले में अमेरिकन घास उगवा रहे हैं. अब आपको लग रहा होगा कि आखिर एक डीएम को ऐसी भी क्या जरुरत पड़ी कि उन्हें खुद घास उगाना पड़ रहा है. बहराइच ही नहीं उत्तर भारत में आवारा पशुओं या कहें ऐरा प्रथा एक बड़ी समस्या है. इससे न सिर्फ फसलों को नुकसान होता है बल्कि पशुधन की भी बर्बादी होती है. इस समस्या की बड़ी वजह घास की कमी होना भी है. इसी बात को ध्यान में रखकर डीएम डॉ दिनेश चन्द्र ने अपने सरकारी आवास के कई एकड़ जमीन पर अपने हाथों अमेरिकन घास (नेपियर ग्रास) उगाई है. यहां पर अच्छे खासे भू-भाग पर नेपियर घास लहलहा रही है. बरसात आने के साथ खाली पड़ी जमीन पर उन्होंने रविवार को भी घास की बुआई की.
जिले में 100 हेक्टेयर में होगी बुआई
डॉ. दिनेश चन्द्र ने बताया कि मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. बलवन्त सिंह व डीडी ऐग्री के प्रयास से नेपियर ग्रास की बुआई जनपद में प्रारम्भ हुई है. वर्तमान समय में लगभग 50 हेक्टेयर क्षेत्र में नेपियर घास बोई गई है. इस साल 100 हेक्टेयर में इस घास बुआई का लक्ष्य रखा गया है. डीएम डॉ. चन्द्र ने मौके पर मौजूद उप निदेशक कृषि टीपी शाही को निर्देश दिया है कि एग्रीकल्चर सेमिनार के दौरान प्रतीकात्मक रूप से नेपियर घास के बीज का वितरण प्रगतिशील कृषकों को कराया जाए. इससे जनपद के किसानों को नेपियर घास की अहमियत पता चलेगी.
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डीएम डॉ. चन्द्र ने जनपद के सभी छोटे बड़े किसानों से अपील की है कि सभी अपनी क्षमता के मुताबिक नेपियर घास की बुआई कर पशुओं के लिए हरे चारे का प्रबन्ध करें. घास की कमी होगी पूरी डीएम की इस मुहिम से कई फायदे होंगे. एक ओर जहां घास की कमी दूर होने से पशुपालन को बढ़ावा मिलेगा वहीं इसका सीधा असर दुग्ध और डेयरी उद्योग पर पड़ेगा. अर्थात किसानों को आय का एक नया वैकल्पिक स्रोत मिलेगा.
नेपियर घास से जुड़ी कुछ अहम बातें
एक बार लगाने के बाद लगभग चार से पांच वर्षों तक साल भर में तीन से चार बार कटाई की जा सकती है.
नेपियर घास में 12 से 14 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा पायी जाती है जो पशुओं के लिए लाभदायक है.
इस घास को छोटे सी जगह तथा मेंड़ पर भी बोया जा सकता है. यानी बडे किसानों से लेकर छोटे किसान भी इसे उगा सकते हैं.
नेपियर घास सर्वप्रथम वर्ष 1901 में दक्षिण अमेरिका में उगाई गई थी जबकि भारत में पहली बार 1912 में इसकी बोआई की गई थी.
अब तक जानकारी के अभाव में कृषक इसकी ओर आकृषित नहीं हो सके. बोआई के लिए उपयुक्त समय वर्षाऋतु है.
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