बस्ती : अस्पतालों में चल रहा प्लाज्मा और प्लेटलेट्स का खेल! कहीं इलाज में लापरवाही न बन जाए जानलेवा
बस्ती जिले में 40 मरीज डेंगू के हैं. डेंगू के मरीज में प्लेटलेट्स की मांग बढ़ जाती है. इसको लेकर निजी ब्लड बैंक खेलकर मोटी कमाई करते हैं.
राघवेंद्र सिंह\बस्ती : बारिश के बाद बस्ती जनपद में डेंगू के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. वर्तमान में जिले में 40 मरीज डेंगू के हैं. डेंगू के मरीज में प्लेटलेट्स की मांग बढ़ जाती है. इसको लेकर निजी ब्लड बैंकों में बड़ा खेल होता है.
प्लाज्मा निकालने की कोई व्यवस्था नहीं
जिला अस्पताल के सरकारी ब्लड बैंक की बात की जाए तो वहां पर मात्र 53 यूनिट ब्लड मौजूद है. जिला अस्पताल के ब्लड बैंक में प्लेटलेट्स और प्लाज्मा निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है.
ब्लड बैंक में सबसे बड़ा खेल प्लेटलेट्स और प्लाज्मा में होता है. इन दिनों प्लेटलेट्स की ज्यादा मांग है. एक यूनिट ब्लड में 50 से 60 एमएल प्लेटलेट्स निकलता है और 180 एमएल प्लाज्मा एक यूनिट ब्लड से निकलता हैं. दोनों देखने में एक जैसे ही होते हैं.
ब्लड बैंक कर रहे मोटी कमाई
जब किसी को प्लेटलेट्स की जरूरत होती है तो उसमें प्लाज्मा मिलाकर कर दिया जाता है. दोनों मिक्स करके मरीज को चढ़ाने पर नुकसान हो सकता है. इसके अलावा जिस मरीज को प्लेटलेट्स की आवश्यकता होती है उसको सही मात्रा में प्लेटलेट्स नहीं मिल पाता. इसकी वजह से कई-कई बोतल प्लाज्मा चढ़ाना पड़ता है और उससे ब्लड बैंक को मोटी कमाई होती है.
5 से 10 हजार में मिलता है ब्लड
ब्लड से तीन कम्पोनेंट निकलते हैं आरबीसी, प्लेटलेट्स और प्लाज्मा. सूत्रों ने बताया की अगर आपको ब्लड या किसी कम्पोनेंट की आवश्यकता है और आप ब्लड डोनेट नहीं करना चाहते हैं तो 5 से 10 हजार रुपये देकर आसानी से ब्लड ले सकते हैं. यह खेल सरकारी और निजी दोनों ब्लड बैंकों में चलता है. खास बात यह है कि इस खेल के लिए ब्लड को एक्सपायर दिखाया जाता है.
जानें कितने दिन में खराब होते हैं ब्लड
आरबीसी 42 दिन में खराब होता है, प्लेटलेट्स 5 दिन और प्लाज्मा एक साल में एक्सपायर होता है. जितना भी यूनिट ब्लड बैंक में रहता हैं उसमें से हर साल बड़े पैमाने पर खराब दिखाया जाता है. अफसरों की मिलीभगत से खून का यह काला कारोबार बड़े पैमाने पर चलता है.
सीएमओ बोले, ब्लड जांच मेरे दायरे में नहीं
स्थानीय समाज सेवियों का कहना है कि पहले खून का रिश्ता कलंकित होता था, अब खून का धंधा कलंकित हो रहा है. जांच के नाम पर अफसर काम नहीं करते. वहीं, मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) का कहना है कि ब्लड की जांच मेरे दायरे में नहीं है.