स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सहयोगी रहीं कैप्टन सहगल को आज उनके जन्मदिन पर देश कर रहा नमन...
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कुलदीप नागेश्वर पवार/नई दिल्ली: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की पहली महिला रेजीमेंट की कैप्टन के तौर पर अंग्रेजों की नाक में दम करने वाली कैप्टन लक्ष्मी सहगल जन्मी तो मद्रास (चेन्नई) में थीं, पर अपने जीवनकाल में ज्यादातर समय वह यूपी की पहचान ही बनी रहीं. मार्च 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह के बाद वह यूपी के कानपुर में आकर ऐसी बसीं कि फिर इस प्रदेश की ही होकर रह गईं .
आज का दिन और तारीख अपने आप में महत्वपूर्ण है. यह किसी संयोग से कम नहीं है कि जहां एक ओर देश भर में माता - बहनें अपने सुहाग की सलामती और लंबी उम्र की प्रार्थना के लिए करवा चौथ का व्रत कर रही है तो ठीक दूसरी ओर मां भारती की बेटी कैप्टन लक्ष्मी सहगल का आज जन्मदिवस भी है. एक ऐसी बेटी जिसने मां भारती की स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. देश की समस्त नारी शक्ति में आज़ादी के प्राण फूंकती कैप्टन लक्ष्मी की कहानी को आज पढ़ा जाना महत्वपूर्ण है.
गांधीजी से भी रही थीं प्रभावित
मद्रास (चेन्नई) में जन्मी पेशे से डॉक्टर लक्ष्मी सहगल ने मद्रास के मेडिकल कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद वे सिंगापुर में जा बसीं. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो सहगल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं. इस दौरान उन्होंने घायल युद्धबंदियों के लिए काफी काम किया. सन 1943 में अस्थायी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनने वाली कैप्टन लक्ष्मी बचपन से ही राष्ट्रवादी विचारों और आंदोलनों से प्रभावित रही थीं. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में भी राष्ट्रवादिता की स्पष्ट झलक देखने को मिलती थी, जिसके चलते एक समय में गांधीजी के अहिंसा मार्ग से छेड़े गए विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया.
नेताजी से संवाद ने पक्का कराया संकल्प
2 जुलाई सन 1943 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की सिंगापुर यात्रा ने डॉक्टर लक्ष्मी सहगल के जीवन को एक नई दिशा दी. विश्व भर में फैले भारतीयों के भीतर स्वतंत्रता समरांगण का प्राण फूंकने वाले नेताजी जब आजादी की मशाल लिए सिंगापुर पहुंचे तो डॉ. लक्ष्मी भी उनके विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं. नेताजी के साथ हुए उनके करीब 1 घण्टे के संवाद के बाद उन्होंने स्वयं के आजाद हिंद फौज में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की और आजादी के महाबलिदान की यज्ञवेदी पर स्वयं को समर्पित कर दिया. डॉ.लक्ष्मी के भीतर आजादी के स्वप्न को लेकर भरी अति महत्वाकांक्षा और जज्बे को देखकर नेताजी ने उनके नेतृत्व में रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट बनाने की घोषणा कर दी.
500 महिलाओं की फ़ौज का नेतृत्व
आजादी के लिए कई मोर्चों पर कैप्टन लक्ष्मी ने अपनी बटालियन के साथ अंग्रेजों का सामना किया और उन्हें मुंह तोड़ जवाब भी दिया. उन्होंने नेताजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आज़ाद हिंद फौज में 500 महिलाओं की फ़ौज तैयार की जो उस समय में अत्यंत चुनौती भरे और महत्वपूर्ण काम में से एक था. ये विंग एशिया में अपनी तरह की पहली विंग थी जिसमें महिलाओं ने बंदूक की गोलियों से अंग्रेजों को ललकार कर यह बताया कि उनका निशाना भी पुरुषों से कम नहीं है और उनकी बंदूक की गोली से भी पलक झपकते ही दुश्मन के प्राण पखेरू उड़ सकते हैं . आज़ाद हिंद फ़ौज की रानी झांसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत सक्रिय रहीं. बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया जो एशिया में पहली बार किसी महिला को मिला था बावजूद इसके लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा. वह सदैव वंचितों के लिए कार्यरत रही, और अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई के सख्त खिलाफ रही. वह भारत विभाजन के विरोध में भी सदैव अडिगता से खड़ी रहीं. भारत सरकार की ओर से सन 1998 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया. 98 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने ससुराल के शहर कानपुर के हैलेट अस्पताल में ही आखिरी सांस ली.
माँ भारती की इस बेटी को इन दो पंक्तियों के साथ कोटि-कोटि नमन।।
"आज़ादी प्राप्ति की कीमत भी खून ही थी,
और आज़ादी को बनाए रखने की कीमत भी सिर्फ और सिर्फ खून ही है।
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।।"
नेताजी सुभाष चंद्र बोस अमर रहें
कैप्टन लक्ष्मी सहगल अमर रहें
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