Chaitra Navaratri 2023: बलरामपुर का शक्तिपीठ देवीपाटन जानिए क्यों है खास, CM योगी ने किया पूजन अर्चन
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand1622203

Chaitra Navaratri 2023: बलरामपुर का शक्तिपीठ देवीपाटन जानिए क्यों है खास, CM योगी ने किया पूजन अर्चन

UP News: बलरामपुर में 51 शक्तिपीठों में से एक सिद्धपीठ है मां पाटेश्वरी का दरबार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मां के दरबार में पूजा पाठ किया. आइए बताते हैं शक्तिपीठ देवीपाटन जानिए क्यों है खास?

Chaitra Navaratri 2023: बलरामपुर का शक्तिपीठ देवीपाटन जानिए क्यों है खास, CM योगी ने किया पूजन अर्चन

राजीव शर्मा/बलरामपुर: उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में 51 शक्तिपीठों में से एक सिद्धपीठ है मां पाटेश्वरी का दरबार है. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नवरात्रि पर मां के दरबार में पूजा पाठ किया. आपको बता दें कि दूर-दूर से भक्त आते हैं और मां के पास लेकर अपनी अरदास लगाते हैं. इक्यावन शक्तिपीठों में से एक सिद्धपीठ देवीपाटन मंदिर बलरामपुर के तुलसीपुर क्षेत्र में स्थित है.

आपको बता दें कि नवरात्रि के अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने मां पाटेश्वरी देवी के दरबार में पूजन अर्चन कर मां का आशीर्वाद लिया. आपको बता दें कि 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ देवीपाटन का अपना एक अलग ही स्थान है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस शक्तिपीठ का सीधा संबंध देवी सती व भगवान शंकर और गोखक्षनाथ के पीठाधीश्वर गुरु गोरक्षनाथ महराज से जुड़ा हुआ है. इस शक्तिपीठ से लोगों की असीम आस्था जुड़ी हुई है. जहां लोग अपनी अरदास लेकर मां के दरबार में दर्शन पूजन के लिए आते हैं. वहीं, दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं में ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. मां पाटेश्वरी के दरबार से कोई भी भक्त निराश होकर नहीं लौटता है.

दरअसल, देवीपाटन मंदिर से जुड़ी मान्यताओं और आस्था के बारे में सिद्धपीठ मां पाटेश्वरी मंदिर के महंत मिथलेश नाथ योगी ने जानकारी दी. उन्होंने बताया कि मां पाटेश्वरी के दरबार में देश के कोने-कोने से भक्त अपनी मुराद लेकर आते हैं. वहीं, नेपाल से भी बड़े पैमाने पर मां के भक्त अपनी हाजिरी लगाने मां की दर पर आते हैं. यही नहीं लोगों की इस दरबार से ऐसी असीम आस्था जुड़ी है कि लोग अपने बच्चों का मुंडन संस्कार, वैवाहिक कार्यक्रम, सहित तमाम मांगलिक कार्य और रस्मों को मां पाटेश्वरी देवी के दरबार में सम्पन्न कराते हैं.

जानिए शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं की मानें तो भगवान शिव की पत्नी देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया था, लेकिन उस यज्ञ में भगवान शंकर को आमंत्रित तक नहीं किया गया, जिससे क्रोधित होकर देवी सती भगवान शंकर के अपमान को बर्दाश्त न सकीं. इसके बाद उन्होंने जलते हुए यज्ञ कुंड में अपने शरीर को समर्पित कर दिया था.

इस बात की पता जब कैलाश पति भगवान शंकर को हुई, तो वह स्वयं यज्ञ स्थल पहुंचे. महादेव ने क्रोधित में देवी सती के शव को अग्नि से निकाल लिया. शव को अपने कंधे पर लेकर वह ताण्डव करने लगे, जिसे पुराणों में शिव तांडव के नाम से जाना जाता है. भगवान शिव के तांडव से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई, जिसके बाद बह्मा के आग्रह पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को विच्छेदित कर दिया. ताकि शिव का क्रोध शांत हो सके.

विच्छेदन के बाद देवी सती के शरीर के भाग जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई. मान्यताओं के अनुसार बलरामपुर जिले के तुलसीपुर क्षेत्र में ही देवी सती का वाम स्कंद के साथ पट गिरा था. इसीलिए इस शक्तिपीठ का नाम पाटन पड़ा और यहां विराजमान देवी को मां पाटेश्वरी के नाम से जाना जाता है.

शक्तिपीठ देवीपाटन और नेपाल के रतननाथ जी महाराज का संबंध
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां पाटेश्वरी के परम भक्त और सिद्ध महत्मा श्री रतननाथ जी महराज हुआ करते थे, जो अपनी सिद्ध शक्तियों की सहायता से एक ही समय में नेपाल राष्ट्र के दांग चौखड़ा और देवीपाटन में विराजमान मां पाटेश्वरी की एक साथ पूजा किया करते थे. उनकी तपस्या व पूजा से प्रसन्न होकर मां पाटेश्वरी ने उन्हें वरदान दिया कि मेरे साथ अब आपकी भी पूजा होगी, लेकिन अब आपको यहां आने की आवश्यक्ता नहीं होगी.

अब आपकी सवारी आएगी, जिसके बाद से भारत के पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से शक्तिपीठ देवीपाटन रतननाथ जी महाराज की सवारी आती है. रतननाथ जी की सवारी चैत्र नवरात्रि में द्वितीया के दिन देवीपाटन के लिए प्रस्थान करती है, जो पंचमी के दिन देवीपाटन पहुंचकर अपना स्थान ग्रहण करती है. नवमी तक यहीं विराजमान रहती है. तत्पश्चात नवमी की मध्य रात्रि को ये सवारी दोबारा नेपाल के लिए प्रस्थान कर जाती है.

Trending news