Kalinjar Mahotsav: कालिंजर महोत्सव का इतिहास एक हजार साल पुराना, ऐसा अभेद्य किला जिसे कोई भी ढहा नहीं पाया
बांदा में हर साल आयोजित होने वाले कालिंजर महोत्सव का आज सीएम योगी आदित्यनाथ ने उद्घाटन किया. इस मौके बांदा के कालिंजर को कई अहम सौगात दी गई हैं. आइए जानते हैं कालिंजर के कतकी मेले का क्या है इतिहास और उससे जुड़ी मान्यता
बांदा: यूपी के एक हजार पुराने कालिंजर महोत्सव का शुक्रवार को आगाज हो गया. सीएम योगी आदित्यनाथ ने बांदा में इस महोत्सव का उद्घाटन किया. इस मौके पर सीएम ने महाराणा प्रताप चौक में निर्मित महाराणा प्रताप की प्रतिमा का अनावरण भी किया. जनपद मुख्यालय में ही सीएम ने महाराजा खेत सिंह खंगार की प्रतिमा का अनावरण भी किया है. कालिंजर किला पहुंच कर सीएम ने जनसभा को भी संबोधित किया.
ऐतिहासिक कालिंजर महोत्सव तीन दिन तक चलेगा. कोरोना काल के इस साल कालिंजर दुर्ग का कतकी मेला आयोजित किया गया है. इस मेले का 1000 साल पुराना इतिहास है. समय के साथ भले ही मेलों की की लोकप्रियता कम हुई हो लेकिन अजेय दुर्ग कालिंजर में हर साल कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर लगने वाला कतकी मेला आज भी दुनिया भर में लोकप्रिय है. यहां भारत ही नहीं विदेश पर्यटक भी आते हैं. बताया जाता है कि इस दुर्ग में चंदेल शासक परिमर्दिदेव ने अपने कार्यकाल 1165 -1202 के बीच मेले की शुरुआत की थी.
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पौराणिक काल से जारी है परंपरा
बताया जाता है कि कालिंजर पौराणिक काल से ही सांस्कृतिक मेलों और तीर्थाटन का केंद्र रहा है. प्रसिद्ध नाटककार वत्सराज द्वारा रचित नाटक रूपक षटकम में कालिंजर महोत्सव वर्णन मिलता है. उनके शासनकाल में हर साल वत्सराज दो नाटकों का मंचन कालिंजर महोत्सव के दौरान किया जाता था. मदनवर्मन के समय पद्मावती नामक नर्तकी का उल्लेख कालिंजर से जुड़े इतिहास में मिलता है. बताया जाता है कि पद्मावती का नृत्य उस समय कालिंजर महोत्सव का प्रमुख आकर्षक था. एक हजार साल पुरानी यह परंपरा आज भी कतकी मेले की शक्ल में मौजूद है. इस मेले में बुंदेलखंड के अलग-अलग जिलों से लोग आते हैं और भगवान नीलकंठेश्वर के दर्शन कर पूजा अर्चना करते हैं.
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