लखनऊ: भारतीय इतिहास में पुरुष क्रांतिकारियों का जिक्र तो खूब होता है मगर किसी महिला क्रांतिकारी या सैनिक की कहानियां कम ही बताई जाती हैं. आज हम आपको एक ऐसी ही महिला सैनिक की कहानी बताने जा रहे हैं. इन्होंने अपने शौर्य से अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था. हम बात कर रहे हैं दलित समुदाय से आने वाली ऊदा देवी पासी की. आज ऊदा देवी का शहीदी दिवस है. ऊदा देवी के पराक्रम से दलितों और महिलाओं के शौर्य का पता चलता है. आज ही के दिन वे अंग्रेजो से कड़ा लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थीं. 


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बेगम हजरत महल की सेना में थीं शामिल
ऊदा देवी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल की सेना में थीं. जब 1857 में भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ तो अंग्रजों ने लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को देश निकाला दे दिया. नवाब की अनुपस्थिति में बेगम हजरत महल ने मोर्चा संभाल. देश की आन के लिए इस युद्ध में ऊदा देवी ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. 


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पीपल के पेड़ से बनाया अंग्रेजों को निशाना
अंग्रजों से लड़ाई के दौरान ऊदा देवी अंग्रेजो को चकमा देने के लिए एक पीपल के पेड़ पर चढ़ गईं और वहीं से उन्होंने अंग्रेजों को निशाना बनाना शुरू किया. पेड़ से ही उन्होंने करीब 36 अंग्रेजों को निशाना बनाया. जब इस जगह पर कैप्टन वायलस और डाउसन पहुंचे तो उन्हें अंग्रेज सैनिकों की लाशों को देखकर आश्चर्य हुआ. उसी समय डाउसन की नजर पीपल के पेड़ पर पड़ी. डाउसन ने देखा कि पेड़ पर बैठा सैनिक ऊपर से ही गोलियां बरसा रहा है. जब नीचे से अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें गोली मारी तो ऊदा देवी पेड़ से नीचे गिर पड़ीं. उनका पूरा शरीर लहूलुहान हो चुका था. जब उनका लाल जैकेट उनके शरीर पर से हटाया गया तब अंग्रेजों को पता चला कि ये सैनिक कोई पुरुष नहीं, बल्कि महिला है. ऊदा देवी का बलिदान देश की महिलाओं और दलित समुदाय से आने वाले लोगो के लिए प्रेरणा का स्रोत है.


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