Gopashtami 2022: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी मनाई जाती है. इस दौरान यानि गोपाष्टमी के दिन उपवास रखा जाता है. गोमाता को समर्पित इस पर्व में गायों की पूजा की जाती है.  शास्त्रों के अनुसार, गौ माता में सभी देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए उनकी पूजा करने से भक्त को सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है. इस साल गोपाष्टमी 1 नवंबर, मंगलवार यानी आज है. यह त्योहार विशेष रूप से वृंदावन और मथुरा में धूमधाम से मनाया जाता है.


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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन गायों का दर्शन-पूजन करना चाहिए. इसके बाद गोमाता को नैवेद्य अर्पण करते हुए नैवेद्य में गायों को रुचिकर आहार प्रदान करना चाहिए.दरअसल सनातन धर्म व संस्कृति के एक अभिन्न हिस्सा माने जाने वाली गाय को, भारत में माता के रूप में पूजा जाता है। गौ (गाय) माता में सभी देवी-देवताओं का वास माना जाता है। गोपाअष्टमी यह पर्व गौ माता को ही समर्पित होता है. 


सनातन धर्म में गाय का स्थान ऊंचा
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक गोपाष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा शुरू किया गया था. इसका इतिहास 5000 साल पुराना है. भारतीय संस्कृति में गाय माता को सबसे उच्च दर्जा प्राप्त है. वह अपने दूध से हमारा पोषण करती है, इसलिए उसे माता की तरह पूजते हैं. गौ सेवा करने से मनुष्य को मोक्ष और परमपद की प्राप्ति होती है, ऐसा पुराणों में वर्णन है. हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी मनाई जाती है. गोपाष्टमी से संबंधित कथा का वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णन है. 


ये है गोपाष्टमी की कथा
श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, श्री कृष्ण ने जब 6 वर्ष  की आयु में कदम रखा तो उन्होंने मां यशोदा से उन्होंने गाय चराने की इच्छा जताई. उन्होंने कहा कि मैया अब मैं बड़ा हो गया हूं और अब गोपाल बनना चाहता हूं. उस समय गायपालकों को गोपाल कहा जाता था. इस पर यशोदा ने उन्हें समझाते हुए कहा कि शुभ-मुहूर्त आने पर मैं तुम्हें जरूर गोपाल बनाउंगी.


कैसे शुरू हुआ गोपूजन
कहा जाता है कि उस समय शाण्डिल्य ऋषि भी उनके यहां पहुंच गए. उन्होंने श्री कृष्ण की जन्मपत्री देखी और कहा कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गौचारण का शुभ-मुहूर्त निकाला. इसके बाद मां यशोदा ने उनका श्रृंगार किया और जैसे ही उन्हें जूतियां पहनाने लगीं. तब कान्हा ने जूतियां पहनने से मना कर दिया. कान्हा ने कहा कि ‘मेरी गईयां भी तो नंगे पैर ही रहती हैं, फिर मैं जूती कैसे पहनूं. 


इसलिए कहा जाता है गोपाल
गायों का रक्षक होने के कारण ही भगवान श्री कृष्ण का नाम ‘गोविंद’ पड़ा. गोपालन के कारण उन्हें गोपाल भी कहा जाने लगा. उन्होंने इसी दिन से गोपूजन करके गोपाष्टमी व्रत की नींव रखी. 


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