मथुरा: होली का त्योहार नजदीक है, हर किसी को इसका बेसब्री से इंतजार होता है. रंगों का हमारे जीवन में एक अलग महत्व है. इसके बिना खुशियां अधूरी सी लगती हैं इसलिए होली को पूरे देश में बड़े हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है. श्री कृष्ण प्रेमी उनके प्रिय त्योहार को उत्साह से न मनाएं, ऐसा तो पूरे हिंदुस्तान में कहीं भी हो नहीं सकता. वहीं, होली की बात जब भी होती है, तो ब्रजधाम का जिक्र होना लाजमी है. अगर आपको होली का असली मजा लेना है, तो फिर होली पर ब्रज की गलियों में घूम आइए. 


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यहां की होली की पूरी दुनिया दीवानी है. चाहे वो बरसाना की लट्ठमार होली हो या नंदगांव की लड्डू होली. इन सब के बारे में तो आपने सुना ही होगा, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ब्रज में कीचड़ से भी होली खेली जाती है. होली रंगों का त्योहार है यह तो सभी जानते हैं, लेकिन यहां गोबर और कीचड़ की भी होली खेली जाती है.


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इस गांव में खेली जाती है कीचड़ से होली
होली के समय देश में किसी भी जगह जब बच्चे होली के सूखे रंगों से होली खेलते-खेलते पानी और कीचड़ से होली खेलने लगते हैं, तो उन्हें बड़ों से डांट सुननी पड़ती है. लेकिन क्या हो जब बड़े ही कीचड़ में पूरी तरह सराबोर हो जाएं. ब्रज के एक गांव में होली पर कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है.


वैसे तो पूरे ब्रज मंडल में होली खेलने का अलग ही तरीका है, लेकिन मथुरा के नौहझील इलाके में होली के दूसरे दिन की होली कुछ अलग होती है. दूज के दिन यहां कीचड़ से होली खेली जाती है. यहां बाकायदा नवयुवकों और हुरयारिनों की टोलियां गली-मोहल्लों में घूम-घूमकर कीचड़ से होली खेलते हैं. 


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बरसों से चली आ रही यह परंपरा
कीचड़ की होली खेलने वाले हुरियारों और हुरयारिनों की दहशत से कस्बे का मार्केट पूरी तरह बंद रहता है. लोगों में दहशत का आलम ये होता है कि बाजार से लगे हुए गांवों से कोई भी व्यक्ति कस्बे में नहीं आता. दोपहर तक यातायात पूरी तरह बंद रहता है. होली के शौकीन लोग ट्रैक्टरों से 2 दिन पहले ही मिट्टी इकट्ठा कर कीचड़ की व्यवस्था कर लेते हैं.


इस होली में मोहल्ले की महिलाओं समेत बाकी सभी को कीचड़ में पूरी तरह सराबोर कर देते हैं. अगर कोई व्यक्ति गलती से भी कस्बे में आ जाए, तो ये लोग उसका भी यही हाल करते हैं. यह परंपरा बरसों से चली आ रही है.


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