Sports News: बैडमिंटन की स्टेट गोल्ड मेडल चैंपियन का दर्द छलका है. वह आर्थिक मदद के लिए नेताओं और अधिकारियों के चक्कर लगा रही हैं.
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जितेन्द्र सोनी/जालौन: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के जालौन (Jalaun) के अमीटा गांव की रहने वाली गोल्ड मैडलिस्ट स्वाति ने एक पत्र और बयान जारी किया है. उन्होंने बताया कि 'मैं बैडमिंटन की स्टेट खिलाड़ी हूं और मेरी आर्थिक हालत खराब है. एकेडमी को लेकर सरकार से मदद की जरूरत है. कई बार डीएम और नेताओं से मिले लेकिन कोई भी मदद करने को तैयार न हुआ स्टेट लेवल पर गोल्ड जीतने के बाद भी स्पोर्ट्स किट के लिए तरस रहे हैं'. सवाल ये है कि उसे कब तक स्पोर्ट्स किट नसीब होगी.
स्वाति खुद को अकेला महसूस कर रही
आपको बता दें कि जब स्वाति ने 2022 में गोल्ड जीता था, तो उनके घर पर बधाइयों का तांता हुआ था. लोग उनके और मेडल के साथ फोटो खिंचवा रहे थे. एक हाथ न होने के बाबजूद दिव्यांग स्वाति ने अपना जौहर दिखाया था. अब वही स्वाति अपना अगला टूर्नामेंट खेलने में भी असमर्थ हैं. फिलहाल, वो अधिकारियों के कार्यालय और नेताओं से मदद की गुहार लगाने को मजबूर हैं. वहीं, महिला सशक्तिकरण के दौर में स्वाति खुद को अकेला महसूस कर रही हैं.
ओलंपिक में देश के लिए मेडल लाने का सपना
आपको बता दें कि स्वाति ने 24 जून 2022 को यूपी से स्टेट लेवल पर बैडमिंटन खेला था, जिसमें उसने अपने प्रतिद्वंदी को हराकर मुकाबले में गोल्ड मेडल जीता था. स्वाति की इस जीत को लेकर उसके माता पिता काफी खुश थे. उन्होंने सोचा था कि बेटी आगे चलकर ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेकर देश के लिए मेडल लाएगी. फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. स्वाति ने अपने हालात बयां करते हुए बताया कि एक महीने के बाद मार्च महीने में उसे नेशनल खेलना है. वहीं, उसे कोई सुविधा नहीं मिल पा रही हैं.
सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ती नजर आ रही ये प्रतिभा
फिलहाल, उन्होंने मिडिया से अपने दर्द को साझा किया किया है. इस दौरान उन्होंने कहा कि मैं ओलंपिक में हिस्सा लेकर देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना चाहती हूं, लेकिन उसने हालात बताते हुए कहा कि मुझे एकेडमी और स्पोर्ट्स किट की सुविधा तक नहीं मिल पा रही है. जानकारी के मुताबिक यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया था. इसके बावजूद अब तक उन्हें कोई आर्थिक मदद नहीं मिल सकी है. जहां सरकार "खेलों इंडिया बढ़ो इंडिया का नारा दे रही है, ऐसे में नेशनल लेवल की प्रतिभाएं सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ती नजर आ रही है.